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गुजरात के इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर तुषार शाह कहते हैं, “भारतीय किसान सिंचाई के लिए बिजली पर निर्भर हैं। बिजली ज्यादातर रात में ही उपलब्ध होती है, आपूर्ति अक्सर बाधित होती है और वोल्टेज में उतार चढ़ाव होता है। सोलर पंप पूरे दिन बिजली प्रदान करते हैं और आपूर्ति निर्बाध है। परंपरागत सिंचाई पद्धतियों के लिए यह एक अच्छा विकल्प है।

बुनियादी जरूरतों तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए यदि स्वच्छ भारत मिशन और राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम जैसे केंद्र सरकार के बड़े कार्यक्रमों पर भरोसा करते हैं तो अगले 15 सालों में मौजूदा आबंटित राशि के मुकाबले 30 से 40 फीसदी अधिक सरकारी खर्चों की आवश्यकता होगी। यह जानकारी सामाजिक प्रभाव पर केंद्रित एक वैश्विक रणनीति और नीति सलाहकार फर्म ‘डाल्बर्ग’ द्वारा किए गए एक विश्लेषण में सामने आई है।

‘डाल्बर्ग’ का सुझाव है कि हमें विकेन्द्रीकृत समाधान की ओर ध्यान देना चाहिए। इससे व्यय और पारंपरिक तरीकों में लगने वाले समय के बीच से एक रास्ता निकल सकता है।

छोटे और विकेन्द्रित समाधानों के साथ पारंपरिक प्रयासों को पूरा करना तब जरुरी लगता है, जब हम भारत कुछ तथ्यों के संदर्भ में देखते हैं। पानी, बिजली और स्वच्छता में भारत में सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए वर्ष 2030 तक 64 लाख करोड़ रुपए (1 ट्रिलियन डॉलर) खर्च करने की जरूरत है। यह राशि वर्ष 2016-17 के लिए देश के कुल बजट खर्च (19.78 लाख करोड़ रुपए) से तीन गुना से ज्यादा है।

समस्या का पैमाना

भारत में लाखों लोगों तक बुनियादी सुविधाओं की पहुंच नहीं है। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक, 6.34 करोड़ से 7.8 करोड़ भारतीय तक सुरक्षित पेयजल की पहुंच नहीं है। यह संख्या विश्व के किसी अन्य देश की तुलना में बहुत ज्यादा है।

हालांकि, ‘डाल्बर्ग’ का मानना ​​है कि वास्तविक आंकड़ा एक अरब के करीब है। ‘सुरक्षित पीने का पानी’ मतलब उचित निस्पंदन विधि के साथ जल को उपचारित करना है। ‘बेहतर पानी’ का मतलब मानव और जानवरों के कचरे से सुरक्षित पानी, जो इंसान के इस्तेमाल के लिए अयोग्य हो सकता है। देश में 20 करोड़ से अधिक लोगों तक बिजली की पहुंच नहीं है और 50 करोड़ से अधिक भारतीय खुले में शौच करते हैं।

वर्ष 2015 में सिर्फ बद्तर स्वच्छता का आर्थिक भार का अनुमान 6.4 लाख करोड़ (100 बिलियन डॉलर) लगाया गया था। पिरामिड जनसंख्या के आधार पर इनमें से ज्यादातर महिलाओं और बच्चों पर ही थे, जैसा कि जापानी इमारत सामग्री निर्माता ‘एलिक्सिल ग्रुप कारपोरेशन’, ब्रिटेन स्थित एनजीओ ‘वाटर एड’ और वैश्विक सलाहकार फर्म ‘ऑक्सफोर्ड इकॉनॉमिक्स’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है।

सरकार का लक्ष्य और काम

संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में ‘सस्टैनबल डेवलपमेंट गोल’ (एसडीजी) की पहल में विकासशील देशों के लिए कुछ महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इन देशों को यह लक्ष्य वर्ष 2030 तक हासिल करना है। इनमें से एसडीजी 6 (सभी के लिए पानी की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित करना) और एसडीजी 7 ( सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना ) के तहत भारत इन बुनियादी सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, और ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम सहित कई अन्य योजनाओं की शुरुआत की है।

पैसे की कमी संभव

हालांकि विशाल निवेश की आवश्यकता को देखते हुए इन प्रयासों में धन की कमी होने की संभावना है। उदाहरण के लिए, पानी और स्वच्छता पर सरकार के खर्त पर ‘डाल्बर्ग’ का विश्लेषण यह दर्शाता है कि यदि सरकार मौजूदा स्तर पर खर्च करती रही तो 2030 तक 30 से 40 फीसदी तक फंड की कमी हो जाएगी।

इसके अलावा, विस्तारित आबादी के साथ मिलकर काम करने में सरकारी संस्थानों की बाधाओं को देखते हुए, वर्ष 2030 तक पचास करोड़ से अधिक भारतीयों तक सुरक्षित पानी, बिजली, और स्वच्छता सेवाओं की पहुंच संभव नहीं है।

विकेंद्रीकरण-एक उपाय

विकेंद्रीकरण एक समाधान हो सकता है, जो केंद्रीय प्रयासों को लोगों तक पहुंचाए। जहां वर्तमान में सरकारी सिस्टम मौजूद नहीं है, वहां विकेंद्रीकृत समाधान कारगर हो सकते हैं, या फिर ऐसे इलाके, जहां सरकारी सेवाएं मौजूद हैं लेकिन वांछित स्तरों पर प्रदर्शन नहीं करते हैं, विकेन्द्रीकृत प्रणाली के परिणाम सुखद हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए कुछ सामाजिक व्यवसायों पर नजर डाल सकते हैं। जो व्यवसायी पानी का बूथ चलाते हैं, वे उन समुदायों तक सुरक्षित पानी ला रहे हैं, जहां केंद्रीकृत पानी की पाइपलाइनों की पहुंच नहीं है। जल शोधन व्यवसाय, वहां भी समस्या का समाधान प्रदान करते हैं, जहां सरकारी पाइपलाइन तो मौजूद है, लेकिन पानी पीने योग्य नहीं है।

विकेन्द्रित प्रणाली अधिक लागत प्रभावी भी हैं। उदाहरण के लिए, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में सात जल-शोधन उद्यमों से प्राप्त प्राथमिक आंकड़ों पर ‘डाल्बर्ग’ के विश्लेषण से पता चलता है कि ऐसे उद्यमों के जरिए घरों में सुरक्षित पानी लाने के लिए 50 फीसदी से भी कम धन की आवश्यकता होती है ।

इसी तरह, छोटी-ग्रिड प्रणालियों की कीमत काफी कम है। करीब 64,000 रूपए ( 1,000 डॉलर)। इससे सस्ते में दूर दराज में स्थित गांवों तक बिजली लाई जा सकती है। क्योंकि यहां वितरण लाइनों, ट्रांसफार्मर, स्विचिंग उपकरण और कनेक्शन जैसे खर्च खत्म हो जाते हैं।

तुलना के लिए देखें तो एक बुनियादी वितरण लाइन और ट्रांसफार्मर की लागत 200,000 रुपए से ज्यादा है।

सभी क्षेत्रों में केंद्रीकृत सिस्टम द्वारा बच गए काम को पूरा करने के लिए विकेन्द्रीकृत समाधान का तेजी से तरीका खोजा जा रहा है। ये समाधान नए सेटअपों के लिए बहुत कम समय लेते हैं। जैसे, एक नई सौर ऊर्जा आधारित सूक्ष्म-उपयोगिता स्थापित करने के लिए एक या दो सप्ताह। इसमें रखरखाव और सेवा की गुणवत्ता पर बेहतर नियंत्रण रहता है और स्थानीय समुदाय के बीच जवाबदेही भी तय हो जाती है।

पारिस्थितिकी-स्तर की चुनौतियां

हालांकि, निजी क्षेत्र के प्रयासों में पारिस्थितिकी-स्तर की कई चुनौतियां हैं, जो जोखिम बढ़ाती हैं औऱ कार्य पूरे होने के पैमाने को मुश्किल बनाती हैं। संबद्ध व्यावसायिक जोखिमों के कारण औपचारिक संस्थानों से वित्तपोषण कठिन है। सीमित नियामक नियंत्रणों में उप-गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ता विकल्प होते हैं।

सुविधाओं के प्रति ग्राहक का व्यवहार एक और चुनौती है। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में घरेलू, सेवा प्रदाता, सरकारी संस्थानों को कवर करते हुए ‘डाल्बर्ग’ द्वारा आयोजित क्षेत्रीय अनुसंधान का एक निष्कर्ष बताता है कि लोग बुनियादी सेवाओं जैसे कि पानी, स्वच्छता और बिजली को सरकार के मूल जनादेश के रुप में मानते हैं और उम्मीद करते हैं कि सरकार उन्हें प्रदान करे और उन्हें सब्सिडी दें।

इसलिए, विकेन्द्रीकृत मॉडल के माध्यम से वितरित सेवाओं को आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है। विकेंद्रीकृत सेवा प्रदाताओं को उनकी सेवाओं के लिए एक बाजार बनाने के भारी कार्य का सामना करना पड़ता है। साथ ही एक चुनौतीपूर्ण माहौल में अपने कारोबार को लगातार और बढ़ाना पड़ता है।

श्रेष्ठ तालमेल की जरूरत

बुनियादी सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और विकेंद्रीकृत समाधानों का उचित तालमेल कैसे तैयार किया जाए?

तीन तत्व आवश्यक हैं। सबसे पहले, पूरक और प्रतिस्थापन के आधार पर एक स्पष्ट रणनीति होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, परिदृश्यों में छोटे-उपयोगिताओं की भूमिका को चित्रित करना जहां केंद्र सरकार की सेवाएं मौजूद हैं और जहां वे मौजूद नहीं हैं।

दूसरा, परिचालन ढांचा स्पष्ट होना चाहिए। उदाहरण के लिए, विकेन्द्रीकृत छोटे-ग्रिड के लिए पॉलिसी और विनियामक व्यवस्था बिछाने से व्यापार की अनिश्चितता दूर हो जाएगी और निजी निवेश को अधिक बढ़ावा मिलेगा।

तीसरा, परिप्रेक्ष्य को उपयोगकर्ता केंद्रित होना चाहिए और न्यूनतम मानकों के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए जिससे सरकारी अधिकारियों को समाधान प्रदान करने की स्वतंत्रता मिल सके। उद्हारण के लिए, मल संबंधी प्रबंधन के लिए सेवा स्तर के लिए बेंचमार्क सेट करना, लेकिन सेवाएं प्रदान करने के लिए निजी क्षेत्र को संलग्न करने के लिए पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों को सशक्तीकरण और प्रोत्साहित करना।

(भटनागर एसोसिएट पार्टनर और गोयल सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। दोनों सामाजिक प्रभाव पर केंद्रित एक वैश्विक रणनीति और नीति सलाहकार फर्म ‘डाल्बर्ग’ से जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 30 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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