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पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारतीय राज्यों के विभिन्न विद्युत उपयोगिताओं पर देश के बैंकों के 545,922 करोड़ रुपए बकाया हैं।

यह आंकड़े रक्षा बजट के ढ़ाई गुना के बराबर है; मोटे तौर पर यह रकम इस वित्तीय वर्ष में सड़क निर्माण पर खर्च होने वाली राशि के बराबर एवं भारत के राजकोषीय घाटा का सफाया करने के लिए पर्याप्त है।

यह आंकड़े बिजली सुधार की ओर तत्काल प्रभाव से कार्य करने का इशारा करते हैं। साथ ही यह आंकड़े यह भी स्पष्ट करते हैं कि जहां भारत में स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में खर्चों पर कटौती की जा रही है वहीं किस प्रकार इतनी बड़ी राशि का नुकसान हो रहा है।

2013-14 वित्तीय वर्ष के दौरान बिजली उपयोगिताओं से 62,154 करोड़ रुपए ( 10.3 बिलियन डॉलर ) का नुकसान हुआ है। ऐसा नहीं है कि इतना नुकसान पहली बार नहीं हुआ है। पिछले कई वर्षों से बिजली उपयोगिताओं के कारण देश को वित्तीय नुकसान झेलना पर रहा है।

राज्य उपयोगिताओं द्वारा हो रहा वार्षिक नुकसान, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा आवंटित राशि की तुलना में दोगुना एवं पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा आवंटित राशि के मुकाबले दस गुना अधिक है। यह राशि 300 हल्के लड़ाकू विमान का भुगतान करने के लिए पर्याप्त है।

यदि बिजली आपूर्ति वास्तविक व्यापार के रुप में चल रहा होता जैसा कि कई अन्य देशों में है तो उधारदाताओं को अपनी रकम उबारने की चिंता के साथ अब तक दिवाला घोषित हो चुका होता।

जैसा कि ऋण लेने वाले राज्य सरकारों की स्वामित्व में हैं, वह व्यवहार्य रूप में दिखाया जाना जारी हैं, जैसे कि उनकी स्तर-मान संपत्ति है।

वित्तीय स्वास्थ्य में विफल : भारत के राज्य विद्युत उपयोगिताएं

Source: Performance of State Power Utilities 2009-10 to 2011-12, 2011-12 to 2013-14

क्यों हो रहा है राज्य उपयोगिताओं से नुकसान?

इन उपयोगिताओं का प्राथमिक व्यापार उपभोक्ताओं को बिजली बेचना है - उद्योग , व्यावसायिक प्रतिष्ठान, घरों और कृषि इनके मुख्य ग्राहक हैं।

वित्त वर्ष 2014 के दौरान, आपूर्ति की औसत लागत प्रति यूनिट 5.15 रुपए थी जबकि औसत बिक्री मूल्य प्रति युनिट 4 रुपये था। इसलिए इन उपयोगिताओं पर प्रति यूनिट 1.15 रुपए का घाटा होता है।

भारत के राज्य उपयोगिताओं के लिए बिजली आपूर्ति की लागत , वित्तीय वर्ष 12-14

भारत की उपयोगिताओं के लिए विद्युत आपूर्ति की औसत बिक्री मूल्य, वित्तीय वर्ष 12-14

Source: Performance of State Power Utilities 2011-12 to 2013-14

हालांकि बिजली की बिक्री से होने वाला एक मात्र नुकसान का कारण नहीं है। उपभोक्ताओं के बड़े समूह द्वारा बिजली के लिए बेहद कम या एकदम ही भुगतान न करना इन उपयोगियातों द्वारा होने वाले नुकसान का मुख्य कारण है।

भारतीय बिजली कंपनियों पर बगैर मीटर वाले एवं चोरी कर बिजली लेने वाले ग्राहकों का भी बड़ा बोझ है। साथ ही बद्तर प्रणाली एवं व्यवस्था भी तकनीकि नुकसान का कारण है।

वित्तीय वर्ष 14 को दौरान, उपयोगिताओं द्वारा उत्पन्न बिजली, 22.7 फीसदी नुकसान के लिए ज़िम्मेदार रही थी। यानि कि उपयोगिताओं के एक-पांचवे उत्पादों के लिए कोई राजस्व नहीं मिला है।

कुछ अन्य उपभोक्ता भी हैं जो बिजली की वास्तविक कीमत के बदले बहुत थोड़ी रकम अदा करते हैं। वित्तीय वर्ष 14 में कृषि उपभोक्ताओं द्वारा कुल 22 फीसदी बिजली इस्तेमाल किया गया है लेकिन इन उपभोक्ताओं से केवल 8 फीसदी का राजस्व प्राप्त हुआ है। यह इसलिए क्योंकि कई राज्यों में किसानों के लिए बिजली मुफ्त है एवं कई अन्य राज्यों में बिजली पर भारी सब्सिडी दी जाती है।

संक्षेप में कहा जाए तो 44.7 फीसदी उत्पादों के लिए केवल 8 फीसदी राजस्व प्राप्त होता है। परिणाम स्वरुप दूसरे उपयोगकर्ताओं को अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।

उद्हारण के लिए, हरियाणा में, कृषि उपयोगकर्ता प्रति युनिट के लिए 50 पैसे से भी कम भुगतान करते हैं जबकि औद्योगिक उपयोगकर्ताओं को प्रति युनिट के लिए 5 रुपए से भी अधिक देना पड़ता है।

ऐसा ही चलन आंध्रप्रदेश ( विभाजन से पूर्व ) एवं उत्तर प्रदेश में भी देखने मिला है – कृषि उपयोगकर्ताओं की तुलना में उद्योग उपयोगकर्ताओं को 4 से 10 गुना अधिक भुगतान करना पड़ता है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि किस प्रकार मुंबई जैसे शहरों में उद्योग एवं वाणिज्यिक उपयोगकर्ताओं को अक्सर 10 रुपए प्रति युनिट तक भुगतान करना पड़ता है।

उपभोक्ता श्रेणी के द्वारा अखिल भारतीय बिजली टैरिफ

Source: Lok Sabha

राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उपयोगकर्ताओं प्रति यूनिट के लिए 2 रुपए से भी कम भुगतान करते हैं जबकि औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं, 6 रुपए प्रति युनिट एवं 7 रुपए प्रति युनिट भुगतान करते हैं।

परिणाम – राज्य कंपनियों से उनके अच्छे ग्राहक दूर हो रहे हैं

इस त्रुटिपूर्ण मूल्य निर्धारण ढांचे का एक प्रभाव यह है कि बड़े औद्योगिक उपभोक्ता धीरे-धीरे राज्य बिजली बोर्डों से दूर हो रहे हैं।

बड़े बिजली उपयोगकर्ता अवशोषित उत्पादन संयंत्रों की स्थापना कर सकते है एवं करते हैं - पूर्व योजना आयोग के अनुसार जिससे वर्ष 2012 तक 36,500 मेगावाट क्षमता तक जुड़ी है।

यह उपयोगिताओं की बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग छठा भाग था। उनसे अधिक भुगतान लेने के साथ राज्य बीजली बोर्ड अपने बड़े एवं सर्वश्रेष्ठ उपभोक्ताओं को दूर तो कर ही रहे हैं साथ ही भविष्य में अपने लिए और मुश्किलें पैदा कर रहे हैं।

दूसरा, क्योंकि वे भारी घाटा उठा रहे हैं, उपयोगिताएं, बुनियादी सुविधाओं का उन्नयन नहीं कर सकते हैं और जैसा कि बिजली बिक्री से भी इन्हें खासा नुकसान झेलना पड़ता है इसलिए यह सबसे सस्ते श्रोत द्वारा बिजली देने तकी कोशिश करते हैं - कोल इंडिया से रियायती दर पर कोयले का उपयोग कर उत्पन्न करते हैं।

यानि कि कई निजी क्षेत्र के बिजली संयंत्र जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका कोयला खरीदते हैं, उनके पास बिजली उत्पन्न करने का थोड़ा प्रोत्साहन है।

अप्रैल से सितंबर 2015 के दौरान, केंद्रीय सरकार के स्वामित्व वाली एनटीपीसी के कोयला आधारित बिजली संयंत्र, अपनी क्षमता के 72 फीसदी पर संचालित है जबकि निजी क्षेत्र उपयोगिताएं अपनी क्षमता के 57 फीसदी पर संचालित है।

राज्य - क्षेत्र संयंत्र और बदतर स्थिति में हैं; ईंधन / संचालन के लिए भुगतान करने के लिए हमेशा संभव नहीं है, और वे अपनी क्षमता के 54 फीसदी पर कार्य करते हैं।

आखिर में, नुकसान का अर्थ यह भी है कि राज्य उपयोगिताएं, अक्षय उर्जा के लिए भुगतान नहीं कर सकती और नहीं करेंगी, जोकि पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करता है लेकिन कोयला या परमाणु ऊर्जा की तुलना में अधिक महंगा है। यह कम लागत वाली एक नई तकनीक है।

वर्ष 2015-16 के लिए, केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) ने विभिन्न प्रौद्योगिकियों से उत्पन्न सौर बिजली के लिए रुपये प्रति यूनिट 7-12 का टैरिफ तय कर दिया है ।

एक आर्थिक रूप से अलाभकारी बिजली क्षेत्र का मतलब है अगली पीढ़ी के प्रौद्योगिकियों में निवेश , जैसे कि अक्षय उर्जा।

(अमित भंडारी , एक मीडिया , अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी ने आईआईटी -बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए किया है। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 27 अक्टूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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