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2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर भारत कई सामाजिक संकेतकों पर छोटी दक्षिण एशियाई पड़ोसियों - कुछ उदाहरणों में पाकिस्तान और बांग्लादेश – से पीछे है।

मानव विकास रिपोर्ट 2015 के अनुसार, 2013 में भारत का 5.238 डॉलर का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ईरान से 65 फीसदी कम था, मालदीव (11,283 डॉलर) से 54 फीसदी कम, श्रीलंका (9426 डॉलर) से 44 फीसदी कम, और भूटान (7167 डॉलर) से 27 फीसदी कम है।

भारत मानव विकास सूचकांक 2015 में दुनिया भर के 188 देशों में भारत को 130वां स्थान दिया गया है - दक्षिण एशिया में ईरान (69), श्रीलंका (73) और मालदीव (104) से नीचे है।

इसी तरह, मानव पूंजी सूचकांक 2016, जिसमें मानव पूंजी के विकास और इसके उपयोग का आकलन किया जाता है, में 130 देशों की सूची में भारत को 105वां स्थान मिला है - श्रीलंका (50), भूटान (91) और बांग्लादेश (104) से नीचे है।

एचडीआई रैंकिंग उन संकेतकों पर ध्यान केंद्रित करता है जो “एक लंबी और स्वस्थ जीवन, ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता और जीवन जीने के एक सभ्य स्तर को प्राप्त करने की क्षमता का नेतृत्व करते है।” मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट 2015 के लिए आंकड़े, 2005 से 2014 के बीच विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से एकत्र किया गया है।

श्रीलंका का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद भारत से 80 फीसदी अधिक

भारत का मातृ मृत्यु दर ईरान, श्रीलंका, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से अधिक

2013 में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 190 मौतों का भारत का मातृ मृत्यु अनुपात ईरान के 23, श्रीलंका के 29, मालदीव के 31, भूटान के 120, बांग्लादेश और पाकिस्तान के 170 के आंकड़ों की तुलना में अधिक था।

भारत का मातृत्व मृत्यु दर दक्षिण एशिया में दूसरा सबसे अधिक

Source: Human Development Report 2015

2013 में, भारत में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर शिशु मृत्यु दर 41.4 था, जो के श्रीलंका 8.2, मालदीव के 8.4, ईरान के 14.4, भूटान के 29.7, नेपाल के 32.2 और बांग्लादेश के 33.2 से नीचे था। केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान का प्रदर्शन बुरा रहा है, इसी प्रकार पांच वर्ष की आयु के भीतर मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्मों पर), जो 2013 में सबसे कम श्रीलंका (9.6) में दर्ज किया गया है। इस संबंध में दूसरा स्थान मालदीव (9.9) का है। भारत में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 52.7 मृत्यु दर्ज की गई है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य एक बड़े बहस का मुद्दा है जैसा कि कुछ लोग तर्क देते हैं कि भारत इसे सहन नहीं कर सकता है।

नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन एक काउंटर तर्क प्रस्तुत करते हैं : "तथ्य यह है कि एक बुनियादी स्तर पर , स्वास्थ्य सेवा एक बहुत श्रम प्रधान गतिविधि है। एक गरीब देश में, मजदूरी कम होती है। एक गरीब देश में स्वास्थ्य पर खर्च करने के लिए पैसे कम हो सकते हैं लेकिन ऐसे ही श्रम प्रधान सेवाएं प्रदान करने के लिए कम खर्च करने की जरूरत भी है (अमीर और उच्च मजदूरी अर्थव्यवस्था के भुगतान करने से बहुत कम)।"

थाईलैंड और रवांडा जैसे विविध देशों में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को लागू किया है, मृत्यु दर में कटौती और जीवन प्रत्याशा को बल मिला है, केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश जैसे भारतीय राज्यों की ओर इशारा करते हुए सेन ने जनवरी, 2015 में गार्जियन कॉलम में तर्क दिया, कि किस प्रकार कुछ राज्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

सेन प्रभावी कार्यान्वयन की सफलता का श्रेय “सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान के लिए पक्की राजनीतिक प्रतिबद्धता, चल रहे व्यावहारिक प्राथमिक स्वास्थ्य, अधिकतम संभव आबादी को कवर कर रहे निवारक सेवाएं, स्वास्थ्य सेवा में अच्छे प्रशासन के लिए खास देख-रेख, और सहायक सार्वजनिक सेवाएं, सभी के लिए प्रभावी स्कूल शिक्षा और सामान्य विकासशील देशों की तुलना में स्वास्थ्य और शिक्षा के वितरण में बड़े तौर पर महिलाओं को शामिल करने” को देते हैं।

कार्यबल में महिलाओं को जोड़ने में भारतीय विशेष रुप से असफल रहे हैं।

भारत की महिला श्रम भागीदारी कम , पाकिस्तान में सुधार दर तेज

2013 में, भारत की महिला श्रम शक्ति की भागीदारी दर - कर्मचारियों की संख्या में महिलाओं का अनुपात – 27 फीसदी था, जबकि वैश्विक औसत 50 फीसदी दर्ज किया गया था, जो कि दक्षिण एशियाई देशों में तीसरा सबसे कम था, केवल अफगानिस्तान (15.8 फीसदी) और पाकिस्तान (24.6 फीसदी) से आगे था, जहां महिलाएं भारत की तुलना में तेज दर से कर्मचारियों की संख्या में शामिल हो रही हैं।

दक्षिण एशिया में भारत की महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी सबसे कम

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आय गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली आबादी

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Source: Human Development Report 2015

मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया में महिला रोजगार में 60 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी कृषि क्षेत्र की है।

भारत के सभी महिला रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 47.2 फीसदी है; भूटान (62.2 फीसदी) और बांग्लादेश (47.2 फीसदी) की तुलना में बेहतर है।

भूटान की आबादी का 2.4 फीसदी से अधिक गरीबी रेखा से नीचे नहीं रहता - 2002 और 2012 के बीच प्रति दिन 1.25 डॉलर की क्रय शक्ति समता के रूप में गिना गया – इस संबंध में आगे मालदीव 6.3 फीसदी, पाकिस्तान में 12.7 फीसदी, भारत 23.6 फीसदी और नेपाल 23.7 फीसदी का स्थान है।

गरीबी रेखा के नीचे 43.3 फीसदी आबादी होने के साथ बांग्लादेश सबसे निचले स्थान पर है।

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 से भारत का गरीबी दर गिरकर 12.4 फीसदी हो गया है, अनुमानित तौर पर 21 फीसदी, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2015 में विस्तार से बताया है।

भारत में प्राथमिक स्कूलों में नामंकन दक्षिण एशिया में तीसरा सबसे अधिक बेहतर

2014 में, भारत का सकल नामांकन अनुपात 113 फीसदी था, जो रान (119 फीसदी), बांग्लादेश (114 फीसदी) और पाकिस्तान (114 फीसदी) के बाद तीसरा सबसे बेहतर था।

दक्षिण एशिया में साक्षरता दर

Source: Human Development Report 2015

अपनी 62.8 फीसदी साक्षर आबादी के साथ, 15 वर्ष आयु वर्ग और अधिक, भारत मालदीव (98.4 फीसदी) और श्रीलंका (91.2 फीसदी), ईरान (84.3 फीसदी) से पीछे है।

नोट: मानव विकास रिपोर्ट, दक्षिण एशिया में ईरान को भी शामिल करता है।

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 जुलाई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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