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भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण रोज़ाना होने वाली मौत की संख्या, आतंकवाद से होने वाली सालाना मौत के मुकाबले चार गुना अधिक है।

वर्ष 2014 में कम से कम 139,671 लोग भारत की सड़कों पर दुर्घनाओं का शिकार बनें, यानि कि प्रतिदिन 382 मौत।

तुलना के लिए हम इन आंकड़ों पर नज़र डाल सकते हैं। वर्ष 2014 में आतंकवाद संबंधित घटनाओं के कारण करीब 83 लोगो (नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों ) की मौत हुई थी।

सड़क दुर्घनाएं एवं आतंकवाद से होने वाली मौत की तुलनात्मक अध्ययन

Source: Ministry of Road Transport & Highways, South Asia Terrorism Portal

सड़क पर होने वाली दुर्घनाएं मुख्यत: तीन कारणों से होती हैं – गाड़ी तेज़ चलाना, शराब पी कर गाड़ी चलाना एवं अधिक भार वाली गाड़ियां चलाना।

पैदल चलने एवं साइकल चालकों की मौत की संख्या में होने वाली वृद्धि इस बात का संकेत है कि इन पर्यावरण के अनुकूल मोड के पक्ष में लोगों को मोटर परिवहन से दूर रखने की सारी कोशिशे नाकाम हैं।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार दो सालों में सड़क दुर्घनाओं की संख्या में गिरावट होने के बाद वर्ष 2014 में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में फिर वृद्धि देखी गई है।

माना जाता है कि सड़क पर होने वाली अधिकतर घटनाएं, करीब एक तिहाई , ड्राइवर की गलती के कारण के होती हैं। इन गलतियों में तेज़ रफ्तार में गाड़ी चलाना, शराब पी कर गाड़ी चलाना, सड़क के गलत दिशा में चलना, एवं गाड़ी चलाते वक्त ठीक प्रकार सिगनल न देना शामिल हैं।

नीचे दिए गए पांच बिंदुओं का पालन कर देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है।

1. तेज रफ्तार के कारण होती हैं अधिक दुर्घटनाएं

सड़क दुर्घटनाओं के लिए सबसे अधिक ज़िम्मेदार तेजी से गाड़ी चलाना ही है।

वर्ष 2014 में हुई कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 57,844 घटनाएं ( 41 फीसदी ) तेज़ वाहन चलाने के कारण हुई है।

ऐसा नहीं है कि केवल वर्ष 2014 में ही तेज स्पीड के कारण इतनी बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं। इससे पहले भी तेज रफ्तार कई सड़क दुर्घनाओं के लिए ज़िम्मेदार रही है।

तेज़ गति एवं शराब पी कर गाड़ी चलाना अधिक खतरनाक

Source: Road Accidents in India, 2011, 2012, 2013 & 2014

तेज़ गति पर नियंत्रण पाने से सड़क पर होने वाली कई दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

एएए फाउंडेशन ( एक अमेरिकी संघ सड़क सुरक्षा के लिए समर्पित ) द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन के अनुसार , यदि 37 किमी / घंटा की रफ्तार से चलने वाली कार किसी पैदल चलने वाले को टक्कर मार दे तो उस पर 10 फीसदी मौत का खतरा होता है। यह खतरा गति तेज होने के साथ बढ़ता जाता है।

सुरक्षा एवं रफ्तार

Source: AAA Foundation

आंकड़ों से स्पष्ट है कि यदि इस दिशा में सही कदम उठाए गए तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।

वर्ष 2014 में भारत की राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों, जिनकी सड़क नेटवर्क में 5 फीसदी की हिस्सेदारी है, सड़क पर हुई कुल दुर्घटनाओं में 63 फीसदी की हिस्सेदारी दर्ज की गई है।

आमतौर पर शहर की सीमा के भीतर की तुलना में राजमार्गों पर रफ्तार अधिक होती है एवं ढीले प्रवर्तन के कारण अक्सर इसका उल्लंघन किया जाता है।

राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर हुई मौत

Source: Road Accidents in India 2014

2.भारी लादन, ट्रकों में क्षमता से अधिक सामान लाद देने से भी होती है 100 मौत रोज़ाना

भारी लादन, विशेष कर ट्रकों में अत्यधिक सामान लाद देने से उन्हें नियंत्रित करना कठिन हो जाता है खास कर जब उन्हें ब्रेक लगाने की आवश्यकता हो। हालांकि भारतीय राजमार्गों पर ऐसी ट्रकें खूब देखने को मिलती है। इसी प्रकार ट्रकों पर लदे हुए सामान जो बाहर तक निकले हुए होते हैं ( जैसे कि ट्रकों से बाहर की ओर निकले स्टील के छड़ ) राजमार्गों पर आमतौर पर देखने को मिल जाते हैं जो कि कानूनी रुप से अवैध भी है। इन दोनों कारणों के कारण वर्ष 2014 में सड़कों पर 36,543 मौत हुई हैं।

इन दोनों कारणों पर रोक लगाई जा सकती है और पिछले कुछ वर्षों में इस प्रवृति में गिरावट भी देखने मिली है।

भारी ट्रक यातायात राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर ही देखी जाती है, इन पर बेहतर निगरानी और प्रवर्तन से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

भारी लादन के कारण होने वाली मौतें

Source: Road Accidents in India, 2011, 2012, 2013 & 2014

3.शराब पी कर गाड़ी चलाना – अपनी एवं दूसरों की जान के लिए खतरनाक

मोटर वाहन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र विकास का उदेश्य शराब के नशे में डूबे हुए ड्राइवर को दुर्घटना से बचाना है। लेकिन पैदल चलने वाले/दुपहिया वाहन चालक/छोटे वाहन चलाक जिन्हें शराब पी कर चलाने वाले टक्कर मारते हैं इतने भाग्यशाली नहीं होते हैं।

मध्यप्रदेश एवं बिहार राज्य में शराब पीकर गाड़ी चलाने से सबसे अधिक, करीब एक चौथाई मौत होती है। छोटे राज्यों में हरियाणा एवं उत्तराखंड में शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण होने वाली मौत की संख्या बड़े राज्यों की तुलना में अधिक हैं।

मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में यातायात पुलिस हाई प्रोफाइल मामलों के जवाब में शराब पीकर गाड़ी चलाने के खिलाफ निरंतर अभियान का आयोजन कर रहे हैं। यदि आंकड़ों को देखा जाए तो ऐसे अभियानों की आवश्यकता सबसे अधिक मध्य प्रदेश, बिहार , हरियाणा और उत्तराखंड राज्यों में है।

शराब पी कर गाड़ी चलाने वाले टॉप राज्य

Source: Road Accidents in India 2014

4.हेलमेट पहनना अनिवार्य

देश की सड़कों पर चलने वाली वाहनों में सबसे अधिक संख्या दुपहिया वाहनों की है। इसलिए सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाएं भी सबसे अधिक दुपहिया वाहनों की ही होती हैं।

वर्ष 2014 में सड़क से होने वाली कुल मौतों में से 30 फीसदी दुपहिया वाहन वाले ही थे जबकि साइकल पर चलने वाले लोगों की हिस्सेदारी 3 फीसदी एवं पैदल चलने वाले लोगों की हिस्सेदारी 9 फीसदी दर्ज की गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हेलमेट अनिवार्य रुप से पहन कर चलने से सड़क पर होने वाली क्षति को 72 फीसदी एवं मौत के खतरे को 39 फीसदी रोका जा सकता है। देश में कुछ ही शहरों में हेलमेट पहनना अनिवार्य किया गया है और वह भी सिर्फ उनके लिए जो वाहन चालक हैं, पीछे बैठे लोगों के लिए नहीं। साइकल चलाने वालों के लिए भी हेलमेट पहनना अनिवार्य नहीं किया गया है।

भारत की दोपहिया घनत्व, अन्य मध्यम आय वाले देशों जैसे कि वियतनाम , इंडोनेशिया और मलेशिया का अंश है। जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, दुपहिया वाहनों की संख्या भी बढ़ेगी एवं सुरक्षा मुद्दों पर अधिक ध्यान देने की ज़रुरत होगी।

इसे विडंबना ही कहेंगे कि देश के कुछ शहरों जैसे पुणे एवं मदुरई में हेलमेट पहनना अनिवार्य किए जाने के विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा है।

पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों के बीच 16,000 से अधिक लोगों की मृत्यु इस बात का संकेत है कि भारत की सड़कें इन दो वर्गों के लिए अनुकूल नहीं हैं।

वायु प्रदूषण को रोकने के उदेश्य से लोगों को कार एवं बाइकों की जगह पैदल या चलने के लिए प्रेरित करना तब तक सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती जब तक की पैदल चलनेवालों की सुरक्षा की पुष्टि नहीं हो जाती। और यह कुछ सामान्य अनुशासन के साथ उचित फुटपाथ और पैदल यात्री क्रॉसिंगों के बगैर संभव नहीं है।

पैदल चलने वाले यात्रियों की सुरक्षा

Source: Road Accidents in India, 2011, 2012, 2013 & 2014

5. शहरों में अधिक जन परिवहन निर्माण का प्रभाव

वर्ष 2014 में देश के 50 बड़े शहरों में सड़क हादसों में मौत का शिकार होने वाले लोगों की संख्या 16,611 दर्ज की गई है। इनमें से अधिकतर हादसे दिल्ली, चेन्नई एवं बंग्लुरु में हुई हैं।

दिल्ली एवं चेन्नई में सड़क हादसों में होने वाली मौत की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में बड़े शहरों में सड़क उपयोगकर्ताओं पर निगरानी रखना एवं कानून लागू करना अधिक आसान होता है। दिल्ली मेट्रो भी सड़कों को अधिक सुरक्षित बनाने में खास भूमिका निभा सकता है।

जन परिवहन प्रणाली हर रोज़ दो मिलियन से अधिक लोगों को ले जाने एवं ले आने का काम करती है एवं वाहनों को सड़क से दूर रखती है जिससे सड़कों पर कम भीड़ एवं कम दुर्घटनाएं होती हैं।

सड़क हादसों के मामले में मुबंई की स्थिति बेहतर है। चेन्नई, बंग्लूरु एवं कानपुर जैसे शहरों की तुलना में मुंबई में कम सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि मुंबई की जनसंख्या के अनुपात में शहर के सड़कों पर चलने वाली वाहनों की संख्या कम है क्योंकि इसके पास कुशल , बहुत अतिभारित यद्यपि ,जन परिवहन प्रणाली मौजूद है।

यह एक अलग बात है कि अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के अभाव में सड़कों की तुलना में रेलवे ट्रैक पर अधिक लोगों की जान जाती है। हाल ही में एक आरटीआई जांच में पता चला है कि मुंबई में रेलवे ट्रैक पार करते समय या भीड़-भाड़ वाली ट्रेनों से गिरने से हर रोज़ आठ लोगों की जान जाती है।

बड़े शहर हैं अधिक सुरक्षित?

Source: Road Accidents in India, 2011, 2012, 2013 & 2014

भारत के शहरी सड़क सुरक्षा में सुधार लाने में अधिक सार्वजनिक परिवहन का निर्माण एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।

(अमित भंडारी एक मीडिया , अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी ने आईआईटी -बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए किया हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 23 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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