Kolkata: People wearing masks participate in an awareness rally on pollution in Kolkata on Dec 9, 2018. (Photo: IANS)

मुंबई: 17 शहरों में सर्वेक्षण के दौरान बातचीत में लगभग 80 फीसदी भारतीयों का मानना ​​है कि वायु प्रदूषण से उनके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है । 32 फीसदी को लगता है कि यह उनके जीवनशैली पर असर डालता है। यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है।

17 शहरों में 5,000 उत्तरदाताओं के बीच किए गए सर्वेक्षण में 93 फीसदी मानते हैं कि वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वहीं 80 फीसदी को लगता है कि जब उनके शहर में हवा की गुणवत्ता खराब होती है तो वे बीमार महसूस करते हैं। पर्सेप्श्न स्टडी ऑन एयर क्वालिटी नाम का यह अध्ययन ‘द क्लीन एयर कलेक्टिव’ द्वारा कमीशन किया गया है और एक शोध समूह सीएमएसआर कंसल्टेंट्स द्वारा आयोजित किया गया है। द क्लीन एयर कलेक्टिव 80 से अधिक नागरिक समाज संगठनों, नागरिक समूहों और वायु प्रदूषण के मुद्दे पर काम कर रहे विशेषज्ञों का एक नेटवर्क है।

अध्ययन में कहा गया है कि केवल 13 फीसदी लोग हमेशा अपने शहर में वायु गुणवत्ता के बारे में जानकारी लेते हैं, जबकि 12 फीसदी ऐसी जानकारी कभी नहीं लेते हैं।

दिल्ली में सबसे ज्यादा लोग (100 फीसदी) हैं, जिन्होंने वायु प्रदूषण के बारे में सुना है। इसके बाद चेन्नई, बेंगलुरू, पुणे और कोलकाता (सभी 98 फीसदी से ऊपर) का स्थान है।

वायु प्रदूषण एक घरेलू मुद्दा भी बन गया है। बातचीत में 78 फीसदी लोगों ने बताया कि कई मौकों पर उन्होंने अपने घर पर वायु प्रदूषण पर चर्चा की है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के 2018 ग्लोबल एम्बिएंट एयर क्वालिटी डेटाबेस के मुताबिक विश्व में सबसे ज्यादा 20 प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं और इस तरहभारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है।

ग्रामीण मौत, जीवन प्रत्याशा और वायु प्रदूषण

2016 में, भारत में प्रति 100,000 लोगों पर 195 मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार रहा है। यह आंकड़ा ठीक अफगानिस्तान (406) और पाकिस्तान (207) से कम है, जैसा कि स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर के आंकड़ों से पता चलता है। यह स्वतंत्र जनसंख्या स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र – हेल्थ इफेक्ट इंस्टटूट ऑफ ग्लोबल एयर और इंस्टटूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूशन की एक पहल है। कानपुर में 173 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg / m3 वार्षिक औसत) का दुनिया का सबसे खराब पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) था। यह डब्ल्यूएचओ के 10 µg/m³ से 17 गुना ज्यादा और 40 µg/m के राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता वार्षिक औसत से तीन गुना ज्यादा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई- 2018 की रिपोर्ट में बताया है। हम बता दें कि पार्टिकुलेट मैटर मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होता है, ये 2.5 माइक्रोमेरेस से छोटे कण होते हैं या मानव बाल से 30 गुना ज्यादा महीन होते हैं।

पीएम 2.5 के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित 24 घंटे के सुरक्षित स्तर 25 माइक्रोग्राम / एम 3 से पीएम 2.5 लगातार ऊंचे बने रहने की वजह से भारतीयों की जीवन प्रत्याशा को नौ साल कम कर दिया है, जैसा कि शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा 2016 एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स से पता चलता है। गरीब और हाशिए वाले लोगों को वायु प्रदूषण की मार का सामना करना पड़ता है। 2015 में, भारत में लगभग 75 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थी, जिनमें से करीब 11 लाख लोग ग्रामीण इलाकों के थे, जैसा कि वोक्स ने 31 अक्टूबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

भारतीय आबादी का दो तिहाई ग्रामीण इलाकों में रहता है, जिसमें 80 फीसदी परिवार बायोमास का इस्तेमाल करता है जैसे खाना बनाना और गर्म करने के लिए लकड़ी और गोबर जलाना, जो संयुक्त रुप से भारत में बाहरी प्रदूषण में 25 फीसदी का योगदान देता है।

2016 में इंडोर वायु प्रदूषण से पांच वर्ष से कम उम्र के 66,800 बच्चों की मौत हुई है, जो कि उसी वर्ष आउटडोर वायु प्रदूषण के कारण पांच वर्ष की आयु के भीतर हुई 60, 900 बच्चों की मौतों से 10 फीसदी अधिक है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 29 अक्टूबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

प्रभावित लोगों को वायु प्रदूषण के बारे में कम जानकारी

सर्वेक्षण में वायु प्रदूषण और पीएम­-2.5, पीएम-10 और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) जैसी बुनियादी शब्दावली के बारे में जागरूकता में बड़ी असमानता दिखाई दी है।

जबकि, पुरुषों (78 फीसदी) की तुलना में अधिक महिलाएं (80 फीसदी) घर पर वायु प्रदूषण पर चर्चा करती हैं। वहीं पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे तकनीकी शब्दावली के बारे में जागरूकता पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कम है। यह आंकड़े महिलाओं के लिए 27.7 फीसदी और 14.5 फीसदी हैं, जबकि पुरुषों के लिए 31.1 फीसदी और 20.3 फीसदी है।

पुरुषों (17.6 फीसदी) की तुलना में अधिक महिलाएं एक्यूआई (21.6 फीसदी) से अवगत हैं, लेकिन वे इसके महत्व को समझ नहीं पाती हैं।

पुरुषों के लिए क्रमश: 31.3 फीसदी और 44.9 फीसदी की तुलना में अधिक महिलाओं (34.8 फीसदी और 46.1 फीसदी) ने महसूस किया वायु प्रदूषण ने उन्हें ‘बड़ी हद तक’ और ‘कुछ हद तक’ प्रभावित किया है।

वायु की गुणवत्ता पर लिंग के अनुसार धारणा

छोटे शहरों में सर्वेक्षण के दौरान तकनीकी शब्दावली के बारे में जागरूकता कम देखी गई । मध्य प्रदेश में सिंगरौली (पीएम-2.5 के लिए 12 फीसदी और पीएम-10 के लिए 6.3 फीसदी) और ओडिशा के अंगुल में (पीएम-2.5 के लिए 11.3 फीसदी और पीएम-10 के लिए 5.7 फीसदी)। झारखंड के धनबाद में (63.7 फीसदी) और छत्तीसगढ़ के रायपुर में (83.3 फीसदी) लोग थे, जो जागरुक नहीं थे और जो एक्यूआई की प्रासंगिकता नहीं समझते थे। ये उच्चतम अनुपात वाले वे क्षेत्र भी थे, जिन्होंने अपने शहर में वायु गुणवत्ता को 'अस्वास्थ्यकर' माना: अंगुल में 85 फीसदी, लखनऊ में 64 फीसदी और कोरबा में 62 फीसदी।

शहर के अनुसार वायु की गुणवत्ता पर लोगों की धारणा

Source: Perception study on Air Quality; figures in %

सुधार के लिए दायरा

डेटा न केवल कम जागरूकता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे अपर्याप्त रूप से सूचनाएं प्रसारित की जाती हैं, खासकर महिलाओं के बीच और छोटे शहरों में।

समाचार पत्रों (70 फीसदी) और मोबाइल ऐप्स (36 फीसदी) की तुलना में, जागरूकता के स्रोत के रूप में, जानकारी के लिए सरकारी वेबसाइटों और एक्यूआई बोर्डों पर क्रमशः 26 फीसदी और 17 फीसदी की सूचना दी गई थी।

जबकि 32 फीसदी ‘दृढ़ता के साथ सहमत हुए’ कि प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को बंद करने की आवश्यकता है, भले ही इससे नौकरियों का जोखिम उत्पन्न होता हो।वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कानूनों की आवश्यकता पर 50 फीसदी से अधिक सहमत हैं। 70 फीसदी भारतीयों ने सर्वेक्षण में कहा कि उन्होंने खराब वायु गुणवत्ता के प्रभाव को कम करने के लिए अपनी व्यक्तिगत क्षमता के हिसाब से कदम उठाए हैं, और 86 फीसदी ने एक्यूआई के बारे में अधिक जानने में रुचि दिखाई ।

वायु प्रदूषण से जुड़े बयान पर सहमति और असहमति

Source: Perception study on Air Quality; figures in %

( सिंह मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में स्नातक की छात्रा हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 दिसंबर,2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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