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लांस नायक हनमनथप्पा एवं उसके नौ साथियों की मौत के साथ सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन या चरम जलवायु परिस्थितियों के कारण हर महीने मरने वाले भारतीय सैनिकों के आंकड़े 2 हो गई है। करीब 32 वर्षों से सियाचिन के बर्फीले रेगिस्तान में पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करने के लिए भारतीय फौजी तैनात किए जाते हैं।

लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1984 से दिसंबर 2015 के बीच ग्लेशियर पर तैनात कुल 869 भारतीय सैन्य दस्तों की मौत हुई है। 3 फरवरी 2016 को मद्रास रेजिंमेंट के 10 सैनिकों की मौत – जिनकी मौत 20,500 फीट की ऊंचाई पर हिमस्खलन के कारण बर्फ के नीचे दबने से हुई – एवं इस वर्ष चार अन्य सैनिकों की मौत से सियाचिन पर मरने वाले भारतीय सैनिकों की संख्या 883 तक पहुंच गई है।

1984 से सियाचिन ग्लेशियर पर सैनिकों की मृत्यु, रैंक अनुसार*

आंकड़ों में 33 अधिकारी, 54 जूनियर कमिशन अधिकारी एवं 782 अन्य रैंक शामिल हैं।

लोकसभा के आंकड़ों के अनुसार, सियाचिन पर मारे गए सैनिकों की संख्या में स्थिरतापूर्वक गिरावट हुई है। 2011 में जहां मरने वाले सैनिकों की संख्या 24 थी वहीं 2015 में यह 5 दर्ज किए गए हैं। इन सभी मौत के कारण या तो हिमस्खलन है या चरम जलवायु परिस्थितियां हैं, दुश्मन की गोली नहीं। इस वर्ष मौतें हिमस्खलन के कारण हुई हैं।

2011 से सियाचिन पर मौसम के कारण हुई मौत

2012-13 से 2014-15 के बीच सियाचिन पर सैनिकों के कपड़ों एवं पर्वतारोहण उपकरण पर भारत ने 6,566 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।

कपड़ों एवं पर्वतारोहण पर किए गए खर्च

दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का मैदान – लेकिन अक्सर युद्ध होता है मौसम के साथ

भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे हिमालय क्षेत्र पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर, दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध मैदान माना जाता है।

सियाचिन की अनिष्ट स्थिति से कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत भी होती है। हाल ही में, वर्ष 2012 में, गैयारी सेक्टर (जोकि रणनीतिक रुप से महत्वपूर्ण है) पर पाकिस्तानी सैन्य शिविर को हिमस्खलन से भारी आघात पहुंचा था जिसमें 129 सैनिकों सहित 140 लोगों की जान गई थी।

ऊंचाई 22,000 फीट तक है (दुनिया की सबसं ऊंची चोटी, माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 29,000 फीट है) एवं तापमान -45 डिग्री सेल्सिस से नीचे जाता है।

ऑक्सिज़न का स्तर कम होता है एवं सैनिकों में स्मृति हानि, बोलने में कठिनाई होना, फेफड़ों में संक्रमम होना एवं गंभीर अवसाद होना आम है। सैनिकों को, विशेष कर गर्मियों के मौसम में, खतरनाक हिम-दरार (बर्फ की सतह पर दरार), का भी सामना करना पड़ता है।

कुछ पोस्ट तक पहुंच केवल हेलीकॉप्टर द्वारा ही होने के साथ बुनियादी आपूर्ति का परिवहन एक कठिन कार्य है। पहाड़ों तक आपूर्ति पहुंचाने के लिए कुछ पोस्ट पूलि का इस्तेमाल करते हैं।

सर्दियों में जब भूमि मार्ग बंद हो जाते हैं तब भोजन एवं गोला-बारुद पहुंचाने एवं आपातकालिन निकासी का एकमात्र ज़रिया चीता हेलीकॉप्टर ही होता है।

सर्दियों में जब भूमि मार्ग बंद हो जाते हैं तब भोजन एवं गोला-बारुद पहुंचाने एवं आपातकालिन निकासी का एकमात्र ज़रिया चीता हेलीकॉप्टर ही होता है।

तीन बटालियन से करीब 3,000-4,000 भारतीय सैनिक साल भर के लिए तैनात होते हैं। प्रत्येक बटालियन, अभ्यस्त होने के बाद, ग्लेशियर पर तीन महीने के लिए तैनात किए जाते हैं।

ऊंचाई पर तैनाती से होने वाली उच्च मौद्रिक एवं मानव लागत के कारण ग्लेशियर से विसैन्यीकरण करने की बात कही जाती है। लेकिन पड़ोसी मुल्क, पाकिस्तान पर भरोसा न होने के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है।

हाल ही में रक्षा मंत्री, मनोहर पार्रिकर ने कहा कि, "सियाचिन पर यह फैसला, देश की सुरक्षा पर आधारित है। हो रहे जीवन के नुकसान से मैं विचलित हूं लेकिन मुझे लगता है कि इस कारण कुछ अन्य समाधान (वापसी) उचित नहीं होगा।"

(सेठी एवं जलान मुंबई स्थित लेखक हैं)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 12 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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