farming_620

4 मार्च, 2016 को राज्यसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में महाराष्ट्र में कम से कम 3228 किसानों ने आत्महत्या की है, यानि रोज़ाना करीब नौ किसान आत्महत्या करते हैं।

आत्महत्या करने वालों की संख्या, वर्ष 2014 में, तालिबान (अफगानिस्तान स्थित वैश्विक आतंकवादी संगठन) द्वारा मारे गए लोगों की संख्या के बराबर है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

वर्ष 2015 में महाराष्ट्र में हुए कुल आत्महत्याओं में से, 5.7 मिलियन (या 57 लाख) किसानों की संख्या के साथ, 83 फीसदी हिस्सेदारी विदर्भ और मराठवाड़ा की है।

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या, 2015

छह प्रशासनिक प्रभाग के साथ महाराष्ट्र को पांच भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा गया है - कोंकण, पुणे, नासिक, मराठवाड़ा (औरंगाबाद) और विदर्भ (अमरावती और नागपुर)।

2015 में, विदर्भ क्षेत्र सबसे अधिक किसानों की आत्महत्या की संख्या, 1,541, दर्ज की गई है। विदर्भ क्षेत्र में सबसे अधिक नागपुर (362) और अमरावती (1,179) में किसानों की आत्महत्या की रिपोर्ट की गई है। विदर्भ के बाद औरंगाबाद (1,130) का स्थान है, जो मराठवाड़ा क्षेत्र बनाता है।

विदर्भ के बाद औरंगाबाद (1,130) का स्थान है, जो मराठवाड़ा क्षेत्र बनाता है।

इस वर्ष जनवरी में, मराठवाड़ा में, कम से कम 89 किसानों ने अपनी जान ली है। राज्य सरकार द्वारा गठित किसान आपदा प्रबंधन टास्क फोर्स ने होने वाली मौतों को " सरकारी अधिकारियों की सामूहिक विफलता" बताया है।

2014 में रोज़ाना 15 किसानों की मौत

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2014 में कम से कम 5,650 किसानों या रोज़ाना 15 किसानों ने आत्महत्या की है।

2014 में, किसानों द्वारा आत्महत्या करने के पांच प्रमुख कारणों में दिवालियापन या ऋणग्रस्तता (1,163), पारिवारिक समस्याएं (1135), खेती से संबंधित मुद्दे (969) - जैसे कि फसलों की विफलता, प्राकृतिक आपदाओं के कारण आया संकट, उत्पादन बेचने में असमर्थता - बीमारी (745) और नशीली दवाओं के दुरुपयोग और/ मादक पदार्थों की लत (250) है ।

2014 में भी महाराष्ट्र में दिवालियापन या ऋणग्रस्तता, किसानों की आत्महत्या (857) का मुख्य कारण रहा है।

महाराष्ट्र में आत्महत्या के पांच मुख्य कारण, 2014

दिवालियापन या फसल ऋण से ऋणग्रस्तता 765 मौतों के लिए जिम्मेदार रहा है, इसके बाद गैर कृषि ऋण (76) और उपकरण ऋण (16) मुख्य कारण रहे हैं।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन सांख्यिकी मंत्रालय के द्वारा जनवरी-दिसंबर 2013 के दौरान कृषि परिवारों की स्थिति के आकलन सर्वेक्षण के आधार पर महाराष्ट्र में प्रति कृषि घर का बकाया ऋण का अनुमानित औसत 54,700 रुपए था जो कि 47,000 रुपए के राष्ट्रीय औसत से उपर है।

महाराष्ट्र में किसानों द्वारा आत्महत्या की मुख्य कारणों में दिवालियापन के बाद पारिवारिक समस्याएं (671), खेती से संबंधित मुद्दे (352), बीमारी (241) और नशीली दवाओं का दुरुपयोग/ मादक पदार्थों की लत (173) है।

भारतीय किसानों के आत्महत्या में पांच राज्यों की 89 फीसदी हिस्सेदारी

2014 में,5,650 किसानों द्वारा की गई आत्महत्या में से 66 फीसदी (3712) 30 से 60 वर्ष के उम्र के बीच थे जबकि 23 फीसदी (1300) 18 से 30 वर्ष के उम्र के थे।

2014 में, महाराष्ट्र में सबसे अधिक किसानों के आत्महत्या (2568) की संख्या दर्ज की गई है। इसके बाद तेलंगाना (898), मध्य प्रदेश (826), छत्तीसगढ़ (443) और कर्नाटक (321) का स्थान रहा है।

टॉप पांच राज्यों में अधिकांश किसानों की आत्महत्या, 2014

इन पांच राज्यों का, वर्ष 2014 में, किसानों द्वारा की गई कुल आत्महत्या की संख्या में 89 फीसदी की हिस्सेदारी है। आगे और गंभीर स्थिति देखते हुए, हालात सुधरने की संभावना कम ही लगती है।

दशक में बद्तर पानी का संकट होने से किसानों का संघर्ष रहेगा बरकरार

91 प्रमुख जलाशयों में 29 फीसदी से कम पानी होने के साथ, भारत इस दशक की सबसे बड़ी पानी की संकट का सामना कर रहा है, इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

मराठवाड़ा में औरंगाबाद जिले में जायकवाड़ी बांध में, जोकि सदी में सबसे बुरे सूखे की समस्या से जूझ रहा है, अपनी 2.17 अरब घन मीटर क्षमता में से केवल 1 फीसदी पानी रह गया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

10 मार्च, 2016 को इस लोकसभा जबाब के अनुसार देश भर में दस राज्यों के कम से कम 246 ज़िलों में पहले ही 2015-16 में सूखा-प्रभावित घोषित कर दिया गया है।

इनमें से महाराष्ट्र में 21 जिले, या 15,747 गांव, सूखा प्रभावित हैं।

मिंट की इस रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में, विदर्भ में 11,962 गांवों को सूखा-प्रभावित घोषित किया है। राज्य में 43,000 गांवों में से 27,723 गांव सूखा प्रभावित हैं।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कहते हैं, “विदर्भ में सूखे एक कृषि सूखा है, और हाइड्रोलॉजिकल नहीं है। मराठवाड़ा में, यह दोनों कृषि और हाइड्रोलॉजिकल है। "सरकार इन गांवों में तत्काल राहत उपायों के लिए 1,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है और नुकसान के आकलन बाद और राशि प्रदान की जाएगी।”

सूखे के प्रकार

मेट्रोलॉजिकल सूखा उस स्थिति को कहते हैं जब किसी क्षेत्र में औसत से कम बारिश हुई हो – 10 फीसदी से अधिक।

लंबे समय तक मेट्रोलॉजिकल सूखे का परिणाम हाइड्रोलॉजिकल सूखा होता है जिससे सतह और उप- सतही जल संसाधनों की कमी हो जाती है।

कृषि सूखे एक स्थिति है जब अच्छे फसलों के लिए मिट्टी की नमी और वर्षा अपर्याप्त होती है।

Source: National Disaster Management

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 06 अप्रैल 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :