solarlamp_620

सौर ऊर्जा संचालित लैंप को जला कर दिखाती एक महिला। स्वास्थ्य जोखिम के बावजूद, 43फीसदी ग्रामीण भारतीय परिवार रोशनी के प्राथमिक स्रोत के रूप में मिट्टी के तेल का उपयोग करते हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार केरोसीन सब्सिडी के नियमों के बदलने के बाद सौर प्रकाश व्यवस्था पर लोग अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।

वर्ष 2017 के एक नए अध्ययन के मुताबिक, सौर प्रकाश व्यवस्था केरोसीन पर ग्रामीण भारत की निर्भरता कम कर सकती है, जो एक असुरक्षित ईंधन है और इससे सरकार पर भारी सब्सिडी का बोझ भी बढ़ता है।

कनाडा में स्थित एक गैर लाभकारी संगठन ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (आईआईएसडी) द्वारा किए गए कई अध्ययन के अनुसार, हर उपभोक्ता के लिए जो रोशनी के लिए केरोसिन से सौर संसाधनों तक बदलाव करता है, सरकार प्रति वर्ष 600 रुपए (रिसाव की लागत शामिल नहीं) से बचा सकती है और हर घर केरोसिन का उपयोग नहीं कर 576 रुपए बचा सकता है।

निष्कर्ष यहां और यहां, यहां तीन नीतियों में पाया जा सकता है।

वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण भारत में 43 फीसदी घरों में प्राथमिक रोशनी स्रोत के रूप में केरोसिन या मिट्टी के तेल का इस्तेमाल होता है। वर्ष 2013 में, केरोसिन की वैश्विक खपत में 15 फीसदी की हिस्सेदारी भारत की रही है।

वर्ष 2015-16 में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए सरकारी किरोसिन को 1,496 करोड़ रुपए (1.8 बिलियन डॉलर) की मामूली लागत पर उपलब्ध कराया गया है। यह सभी ईंधन सब्सिडी का 41.7 फीसदी और 2016 में भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा में जो निवेश किया था उसके पांचवे हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि, 45 फीसदी सब्सिडी वाले केरोसिन को काला बाजार में ले जाया जाता है और अक्सर अपने इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंचता है।

‘आईआईएसडी’ संक्षेप में भारत में केरोसिन सब्सिडी की मौजूदा प्रणाली और उनके पास ऑफ-ग्रिड सौर प्रकाश समाधान के प्रभाव का परीक्षण करता है। संक्षेप में नीतिगत सुधारों का सुझाव दिया गया है, जो ऑफ-ग्रिड सौर प्रवेश को बढ़ा सकते हैं।

केरोसिन क्यों है खतरनाक?

भारत में, सबसे गरीब 40 फीसदी परिवार, पीडीएस को आवंटित केरोसिन का लगभग 57 फीसदी का उपभोग करता है, जैसा कि आईआईएसडी के मई 2017 के संक्षिप्त विवरण में बताया गया है।

वर्ष 2001 में, कम से कम 55.6 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने रोशनी के लिए प्राथमिक ऊर्जा स्रोत के रूप में केरोसीन का इस्तेमाल किया है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, एक दशक में यह 43.2 फीसदी तक गिर गया है, जैसा कि नई दिल्ली में आधारित एक गैर-लाभकारी संस्था ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ द्वारा बताया गया है।

इसी समय के दौरान, रोशनी के लिए प्राथमिक स्रोत के रुप में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 0.3 फीसदी से बढ़कर 0.5 फीसदी हुई है।

ऊर्जा स्रोत के अनुसार ग्रामीण भारत में परिवारों के लिए रोशनी

Source: The Energy and Resources Institute

हालांकि सरकारी सब्सिडी केरोसिन को और अधिक किफायती बनाते हैं, लेकिन केरोसीन लैंप से उत्पादित प्रकाश कम गुणवत्ता वाला है, और आग और विषाक्तता के जोखिम के साथ आता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 29 जुलाई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। केरोसिन की वजह से बाहरी वायु प्रदूषण की तुलना में आंतरिक प्रदूषण 10 गुना अधिक हो सकता है। विकासशील देशों में बाल विषाक्तता का मुख्य कारण आकस्मिक केरोसिन अन्तर्ग्रहण है।

आसानी से बदलाव लाना है बड़ी चुनौती

ब्रुसेल्स स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन ‘द हेल्थ एंड एन्वाइरन्मन्ट अलाइअन्स’ द्वारा 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, “सौर ऊर्जा की ओर बदलाव वांछनीय है, लेकिन जब तक केरोसीन पर सब्सिडी उपलब्ध रहेंगे, तब तक गरीब सौर उर्जा की ओर जाने से कतराते रहेंगे। ”

बदलाव करने की योजना बनाते समय नीति निर्माताओं को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। केरोसीन सब्सिडी सौर प्रकाश बाजार के विकास पर रोक लगाती है, लेकिन यह इस बाजार की कमी है जिससे किरोसिन पर सब्सिडी की आवश्यकता होती है, जैसा कि आईआईएसडी की ओर से संक्षिप्त नोट में बताया गया है।

केरोसिन के विपरीत, गरीब परिवारों को सौर उपकरणों को खरीदने में अक्सर संघर्ष करना पड़ता है। यह सुलभ नहीं है। सब्सिडी सुधार को ऑफ-ग्रिड सौर प्रवेश के लिए बाधाओं से निपटने के साथ जोड़ा जाना चाहिए। इसमें नए-नए भुगतान के विकल्प भी शामिल हो सकते हैं।

ग्रिड सौर ऊर्जा के कई लाभ

जिन स्कूली बच्चों तक सौर रोशनी तक पहुंच है, वे औसतन, अन्य बच्चों की तुलना में प्रति रात एक घंटे अधिक अध्ययन करते हैं। भारत में स्वच्छ प्रकाश समाधान ने 2.5 मिलियन बच्चों को लगभग 1 बिलियन घंटे रात के अध्ययन का समय दिया है, जैसा कि एक अंतरराष्ट्रीय गैर लाभकारी संस्था, ‘क्लाइमेट ग्रूप’ बताता है।

रोजगार के अवसरों के संदर्भ में, वर्ष 2015 तक भारत में ऑफ-ग्रिड प्रकाश क्षेत्र द्वारा कम से कम 200,000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से नियोजित किया गया था। वैकल्पिक प्रकाश प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नौकरियों का अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले प्रति 10,000 लोगों पर 30 नौकरियां हैं।

सौर-आधारित प्रकाश व्यवस्था की ओर लोगों के जाने से पर्यावरण को लाभ मिलेगा। सौर ऊर्जा के साथ भारत में सभी पारंपरिक प्रकाश व्यवस्था प्रति वर्ष 34 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का बचत करेगा, जैसा कि 2010 यूएनईपी के अनुमान में बताया गया है।

भारत में सौर उर्जा की पहुंच कम क्यों?

भारत में, सौर लालटेन और सौर घर प्रणालियों की बाजार पहुंच वर्ष 2015 में कुल अनुमानित बाजार का लगभग 5-6 फीसदी रही। ‘आईआईएसडी’ के विश्लेषण में कहा गया है, "करीब-करीब 135 मिलियन भारतीय परिवारों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऑफ-ग्रिड सौर अनुप्रयोगों के लिए उपलब्धता और बिक्री में वृद्धि में काफी वृद्धि की आवश्यकता होगी"।

निम्न सौर प्रवेश के कारण क्या हैं? ‘आईआईएसडी’ विश्लेषण के अनुसार, मुख्य कारण सौर अनुप्रयोगों की उच्च अग्रिम लागत, और केरोसिन की लगातार सब्सिडीकरण है।

वर्तमान सब्सिडी पर, सौर प्रकाश व्यवस्था केरोसिन विकल्प से बहुत ज्यादा सस्ता नहीं है।अगर केरोसिन के सब्सिडी को हटाया जाता है, तो प्रत्येक परिवार प्रति वर्ष 760 रुपए बचा पाएंगे।

यदि अधिक महंगी सौर प्रणाली (2,300 रुपए से ऊपर) पर विचार किया जाता है तो केरोसीन उपयोग पर कम या कोई बचत नहीं होती है। बदलाव करने का एक सरल तरीका सौर प्रकाश प्रणालियों की खरीद के ग्राहकों को प्रत्यक्ष सब्सिडी भुगतान प्रदान करना है।

इसके अलावा, चूंकि बदलाव सरकार के वित्तीय बोझ को कम करता है, इसलिए बचत का एक हिस्सा उन कार्यक्रमों के लिए उपयोग किया जा सकता है जो सौर प्रवेश को बढ़ावा देते हैं।

यह सौर प्रकाश को बढ़ावा देने के विचार के प्रति सहज ज्ञान युक्त लग सकता है, लेकिन विश्लेषण ने एक सुझाव दिया है। कम- या बिना-लागत वाले सौर लालटेन के चरण समाप्त करना जरूरी क्योंकि वे बाजार को विकृत करते हैं और बाजार में प्रतिस्पर्धा को कम करते हैं। सस्ती सब्सिडी वाले उत्पादों की उपस्थिति में निजी कंपनियां अपने व्यवसाय को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं।

अध्ययन कहता है, सब्सिडी वाले लालटेन की आपूर्ति से वितरण कार्यक्रम पर निर्भरता भी पैदा होती है, और यदि यह समाप्त हो जाता है या सब्सिडी गिरा दी जाती है, तो बाजार में गिरावट आएगी।समूह ऋणों को सुविधाजनक बनाने के लिए मोबाइल मनी, पे-एज-यू-गो मॉडल, मासिक किश्तों और छोटे उधारकर्ताओं के एकत्रीकरण के मॉडल से बाजार को सुधारा जा सकता है। लेकिन अध्ययन के संक्षिप्त नोट में कहा गया है कि कुछ कंपनियों ने ऐसा किया और बाजार की धीमी रफ्तार ही रही।

(पाटिल विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 27 अक्टूबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :