नई दिल्ली: वर्ष 2015-16 में एकत्र हुए नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक 10 भारतीय परिवारों में से करीब चार ( 38.9 फीसदी ) खुले में शौच करते हैं। यहां हम बता दें कि एक दशक पहले यह आंकड़े 55.3 फीसदी थे। यानी 16.4 प्रतिशत अंकों की गिरावट हुई है।

सभी परिवारों द्वारा उपयोग करने वाले शौचालय के प्रकार

हालांकि, 2015-16 में 10.5 फीसदी शहरी परिवार खुले में शौच जाते थे, जबकि एक दशक पहले यह आंकड़ा 16.8 फीसदी का था। वहीं 2015-16 में ग्रामीण परिवारों की बात करें तो आधे से अधिक ग्रामीण परिवार ( 54.1 फीसदी ) किसी प्रकार के शौचालय का प्रयोग नहीं करते थे या खुले में शौच जाते थे। यहां हम बता दें कि 2005-06 में यह आंकड़ा 74 फीसदी का था। यह आंकड़े 2005-06 और 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है।

शहरी परिवारों द्वारा इस्तेमाल करने वाले शौचालय के प्रकार

ग्रामीण परिवारों द्वारा इस्तेमाल करने वाले शौचालय के प्रकार

अध्ययनों से पता चलता है कि स्वच्छता तक पहुंच से दस्त का प्रसार कम हो जाता है। दस्त बैक्टीरियल, वायरल और परजीवी संक्रमणों के कारण होता है, अधिकतर मल-दूषित पानी से फैलता है। दस्त कुपोषण का प्रमुख कारण है, और पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मौत का दूसरा प्रमुख कारण है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 29 जुलाई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

वर्ष 2015-16 में, लगभग आधे भारतीय परिवारों (48.4 फीसदी, 70.3 फीसदी शहरी और 36.7 फीसदी ग्रामीण ) ने ‘स्वच्छता सुविधाओं में सुधार’ किया था। केवल 14.9 फीसदी शहरी और 6.1 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने साझा सुधार शौचालय का इस्तेमाल किया है जबकि 3.7 फीसदी शहरी और 3.1 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने ‘अव्यवस्थित’ शौचालयों का इस्तेमाल किया है, जिसमें सूखा शौचालय, फ्लश शौचालय हैं जो सीवर से जुड़े नहीं हैं, एक स्लैब या खुले गड्ढे के बिना गड्ढे शौचालय शामिल है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता और खुले में शौच करने के लाभ, शौचालय इस्तेमाल न करने की उच्च दर में योगदान करते हैं, जैसा कि स्वच्छता शोधकर्ता डीन स्पीयर्स और डायने कोफी ने 13 अगस्त, 2017 को इंडियास्पेंड को दिए एक साक्षात्कार में बताया है।

2 अक्टूबर, 2014 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019, महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती तक खुले में शौच से मुक्ति के साथ स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी।

भारत में 49 मिलियन से अधिक घरों में शौचालय हैं। ये आंकड़े वर्ष 2014 में 38.7 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2017 में 69.04 फीसदी हुए हैं। देश के 207 जिलों का 62 फीसदी और 249, 811 गांवों में 63 फीसदी खुले में शौच से मुक्त है, जैसा कि FactChecker ने 2 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

विश्व बैंक ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामिण के लिए 1.5 बिलियन डॉलर (10,500 करोड़ रुपए) का ऋण देने का वादा किया था, लेकिन जुलाई 2016 में पहली किस्त जारी नहीं की, क्योंकि भारत ने एक स्वतंत्र सत्यापन सर्वेक्षण के आयोजन और घोषणा की शर्त को पूरा नहीं किया, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 24 मई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

(यादवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 07 फरवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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