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नौ महीने की रुखसाना के कंधे पर गहरा घाव है। रुखसाना उन हज़ारों मरीज़ों में से एक है जो इलाज के लिए दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मेट्रो स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर रहते हैं। शोर, धूल और ट्रैफिक के बीच छह महीने के इंतजार के बाद, अतत: रुखसाना के माता-पिता को एम्स के एक डॉक्टर के साथ मिलने का निश्चत समय मिला है।

शांत, होठो से गायब मुस्कुराहट और आंखों पर काजल लगाए रुखसाना और उसके माता-पिता चिकित्सा सहायता के लिए बिहार के पर्वी चंपारण ज़िले से 1,023 किलोमीटर लंबा सफर तय कर आए हैं।

वे हाल ही में जारी आंकड़ों को सम्मिलित करते हैं - राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) से – कि ग्रामीण क्षेत्रों से लाखों भारतीयों द्वारा की जाने वाली रात भर की यात्राओं में से 48 फीसदी (शहरी क्षेत्रों से 25 फीसदी) चिकित्सा सहायता के कारण की जाती हैं। यह यात्राएं दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की बढ़ती विफलताओं को दर्शाती है।

आधे से अधिक भारतीय ग्रामीण निजी स्वास्थ्य सेवा का उपयोग करते हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं से कम से कम चार गुना अधिक महंगा होता है। पिछले साल एनएसएसओ सर्वेक्षण में पाया गया कि, 20 फीसदी गरीब भारतीयों का स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च उनके औसत मासिक खर्चें से 15 गुना अधिक होता है।

भारतीयों के रात भर के यात्रा करने के कारण

Source: National Sample Survey Office

38 वर्षीय रुखसाना के पिता, कलिमुद्दीन एक किसान हैं। दिल्ली में परिवार के छह महीने के प्रवास के दौरान,कलिमुद्दीन ने 60,000 रुपए खर्च किए हैं। इसमें विफल चिकित्सा उपचार पर 24,000 रुपए भी शामिल है।चूंकि कलिमुद्दीन की औसत वार्षिक आय कोई 40,000 रुपये से अधिक नहीं है, खर्च के अंतर को अपनी बचत से पूरा किया है।

कलिमुद्दीन कहते हैं, “बुनियादी निदान और परिक्षण किया गया है लेकिन पूरा उपचार शुरु होना अब भी बाकि है। डॉक्टर से अपॉइन्टमेंट मिलने में एक साल का वक्त लगा है - इसके घाव का इलाज कैसे होगा? ”

कलिमुद्दीन की तरह ही कई लोग दिल्ली की यात्रा करते हैं क्योंकि उनके स्थानीय जगहों पर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य का आश्वासन शायद की मिलता है। बिहार में निमोनिया और दस्त के 90 फीसदी उपचार - भारतीय बच्चों में मृत्यु के प्रमुख कारण – गलत पाए गए हैं। स संबंध में इंडियास्पेंड ने फरवरी 2015 में विस्तार से बताया है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्चे से लोगों पर बढ़ता है कर्ज का बोझ

कलिमुद्दीन की तरह ही कहानी कई उन परिवारों की भी है जो डॉक्टर से निश्चित मिलने वाले समय के इंतज़ार में एम्स मेट्रो स्टेशन के बाहर रहते हैं। उनके पास इसने पैसे नहीं कि वे होटल में रह सकें या कमरा किराए पर ले सकें। कलिमुद्दीन द्वारा खर्च किए गए पैसे, 15,336 रुपए के प्रति स्वास्थ्य यात्रा की औसत व्यय से चार गुना अधिक है, जैसा कि एनएसएसओ रिपोर्ट करती है।

ग्रामीण आबादी का 86 फीसदी और शहरी आबादी के 82 फीसदी बिना स्वास्थ्य- व्यय समर्थन के हैं और करीब 12 फीसदी शहरी और 13 फीसदी ग्रामीण आबादी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना या इसी तरह की योजनाओं के माध्यम से स्वास्थ्य बीमा मिला है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जुलाई 2015 में विस्तार से बताया है।

Ruksana’s Journey And Rural India’s Search For Healthcare

लैन्सट के इस पेपर के अनुसार, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं और स्वास्थ्य खर्चो हर वर्ष भारत में अतिरिक्त 3.9 करोड़ लोगों को गरीबी की ओर धकेलता है।

कलिमुद्दीन, जिसे अधिकतर सिख समुदायों से भोजन प्राप्त होता है कहता है, “शुक्र है कि हर सप्ताहर कई लोग आते हैं और भोजन देते हैं, जो हमें जीवित रहने में मदद करते हैं।” जब वो नहीं आते हैं तो पास के एक स्टाल से चावल और सब्जियों की एक थाली के लिए 30 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

प्रति रात भर की यात्राओं पर औसत व्यय

Source: National Sample Survey Office

चिकित्सा प्रवासियों का सबसे बड़ा अनुपात बिहार से

कलिमुद्दीन के राज्य, बिहार में आधे से अधिक रात भर यात्राएं - हर 1,000 में से 581 - चिकित्सा कारणों से होती है जोकि सभी भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच छठा सबसे अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों से चिकित्सा कारणों से की जाने वाली यात्राओं की संख्या में सबसे पहला स्थान पश्चिम बंगाल (हर 1,000 में से 633) और असम (हर 1,000 में से 599) का है।

इसके विपरीत, दिल्ली और मेघालय के ग्रामीण क्षेत्रों से हर 1,000 यात्राओं में से 211 और 250 चिकित्सा कारणों से की गई हैं, जो भारत में सबसे कम हैं।

10.4 करोड़ लोगों के साथ, बिहार भारत का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत (33.7%) तीसरा सबसे अधिक है, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति दिन प्रति व्यक्ति 26 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 31 रुपए में जीने के रुप में परिभाषित किया गया है। बिहार के बाद गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की अधिक प्रतिशत छत्तीसगढ़ (39.9 फीसदी) और झारखंड (36.9 फीसदी) में है।

सामान्य रुप में, गरीबी का सह-संबंध स्वास्थ्य की कमी से है। उदाहरण के लिए, कुपोषित बच्चों के उच्चतम अनुपात के साथ वाले राज्यों के बीच, झारखंड और छत्तीसगढ़ संस्थागत प्रसव के लिए सबसे खराब बुनियादी ढांचा है।

हालांकि खराब स्वास्थ्य संकेतक के साथ 18 राज्य – जिसे "उच्च फोकस राज्य" कहा जाता है - केन्द्र प्रायोजित स्वास्थ्य योजनाओं पर कटौती की प्रत्याशा में स्वास्थ्य खर्च की वृद्धि हुई है, छोटे राज्यों के स्वास्थ्य पर खर्च में कटौती हुई है क्योंकि क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे , इंडियास्पेंड ने फ़रवरी 2016 में विस्तार से बताया है।

वाणिज्य और उद्योग ऑफ इंडियन चैंबर्स और भारत के पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के महासंघ के अनुसार, उत्तर- पूर्व क्षेत्र को ग्रामीण आबादी तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए आठ लाख से अधिक अतिरिक्त अस्पताल में बिस्तरों की आवश्यकता है।

भारत के गरीब राज्यों के स्वास्थ्य संकेतक कई देशों से बद्तर हैं जो इनकी तुलना में अधिक गरीब हैं और ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों के बीच भारत का स्वास्थ्य खर्च सबसे कम है, जैसा कि इनके स्वास्थ्य संकेतक हैं।

जबकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार की अर्थव्यवस्था को मोड़ देने का श्रेय दिया जा रहा है, लेकिन यह राज्य अब भी गरीबी, बेरोज़गारी, सार्वजनिक और निजी बुनियादी सुविधाओं – राजमार्गों से घर में शौचालय तक – पीछे है।

पश्चिम बंगाल में चिकित्सा कारणों से 1000 में से 633 रात भर यात्राएं

Source: National Sample Survey Office

संघर्ष : भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे

एम्स के बाहर मेडिकल प्रवासियों और उनके द्वारा की जाने वाली यात्राएं,स्वास्थ्य सेवा के लिए भारत की कम प्राथमिकता को दर्शाता है। यहां कुछ संकेतक दिए गए हैं:

  • देश में 4000 करोड़ों रुपए की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से, केवल नौ (0.21 फीसदी)- 938 करोड़ रुपये के कुल निवेश के साथ – स्वास्थ्य क्षेत्र की हैं, इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2015 में बताया है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक- स्वास्थ्य केन्द्रों में - 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में 25308 - 3,000 से अधिक डॉक्टरों की कमी है, 10 वर्षों में कमी 200 फीसदी बढ़ी है (या तीन गुना), इंडियास्पेंड ने फ़रवरी 2016 में बताया है।
  • विशेषज्ञ चिकित्सा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) में पेशेवरों की एक 83 फीसदी की कमी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2015 में बताया है।
  • 2012 इडब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के अनुसार , भारत में प्रति 10,000 लोगों के लिए सात डॉक्टर है। यह अनुपात 1:600 होनी चाहिए।

दिल्ली से लगाए खर्च शर्तों के बिना राज्यों को और अधिक पैसे देने के उद्देश्य से 14 वें वित्त आयोग हस्तांतरण सुधार के हिस्से के रुप में दो वर्षों में,स्वास्थ्य पर केंद्र सरकार के खर्चो में गिरावट हुई है।

केन्द्र प्रायोजित मुख्य सामाजिक योजनाओं के लिए आवंटित राशि - एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन – में 10 फीसदी और 3.6 फीसदी की गिरावट हुई है।

योजना: स्वास्थ्य सेवा आउटसोर्स

वर्तमान में, नेश्नल इंस्ट्यूटशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति) आयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य पर एक विजन दस्तावेज पर काम कर रहा है । कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  • प्रत्येक रोगी के लिए सरकार द्वारा भुगतान किए जाने के साथ सभी एमबीबीएस डॉक्टरों परिवार के चिकित्सकों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  • सरकारी संस्थानों को मजबूत करने के लिए कम लागत वाली प्राइवेट विकल्प के लिए प्रोत्साहन, जैसे कि गैर-सरकारी संगठन द्वारा चलाई जाने वाली संस्थानों और मिशनरी द्वारा चलाने वाली अस्पताल।
  • माध्यमिक स्तर पर निजी और सरकारी अस्पतालों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, जिसमें चिकित्सा विशेषज्ञों की सेवाएं शामिल हैं जबकि आमतौर पर प्राथमिक केन्द्रों पर, मामूली सर्जरी के लिए सुविधाओं के साथ एकल चिकित्सक क्लीनिक हैं।

अप्रैल 2016 में एक बैठक में, नीति आयोग ने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के लिए, बाहरी स्रोत से सेवाएँ प्राप्त करने की बात कही है।

ऐसा लगता नहीं है कि, रुखसाना जैसी यात्राएं जल्द समाप्त हो सकेंगी।

(साहा एक स्वतंत्र पत्रकार है और इन्स्टिटूट ऑफ डेवलप्मेंट स्टडीज़, ससेक्स विश्वविद्यालय में एम.ए जेंडर एंड डेवल्पमेंट 2016-17, के कैन्डिडेट हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 जुलाई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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