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पिछले 15 सालों से वर्ष 2015 तक संभावित और वास्तविक स्वास्थ्य सेवा पहुंच और गुणवत्ता के संबंध में भारत का प्रदर्शन दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया (चीन सहित) के 19 देशों के बीच केवल पाकिस्तान से बेहतर रहा है।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ‘द लैनसेट’ में प्रकाशित हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी (एचएएक्यू) इंडेक्स पर इस क्षेत्र में भारत दूसरी सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और 5.5 अंकों की बढ़त देखी गई है। लेकिन 1990-2015 के दौरान यह आंकड़े पाकिस्तान से 1.4 अंक कम देखे गए हैं। पिछले 15 वर्षों में, इस क्षेत्र के बीच का एक देश, लाओस में 3.5 अंकों के अंतर की कमी देखी गई है। इस क्षेत्र का टॉप देश, थाईलैंड ने इसी अवधि के दौरान 8.1 अंकों के अंतर को कम किया है।

18 मई, 2017 को प्रकाशित हुए एक अध्ययन में तर्क दिया गया है कि राज्यों और स्वास्थ्य क्षेत्र के बीच असमानता बीमारियों में परिवर्तनशील रुझान को बनाए रखने में नाकाम रही हैं। यह भारत जैसे देशों में अंतर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

वैश्विक स्तर पर 1.1 अंकों की कमी आई और यह सूचकांक 1990 में 40.7 से बढ़कर 2015 में 53.7 हुआ है।

सूचकांक 0 से 100 तक जाता है। एक देश का मूल्य जितना अधिक होगा, उतना बेहतर माना जाता है। विकास के स्तर पर ‘व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल के अधिकतम स्तर और गुणवत्ता’ की गणना करने के लिए इस अध्ययन में प्रति व्यक्ति आय, औसत साल की शिक्षा और कुल प्रजनन दर और एचएक्यू सूचकांक के आधार पर एक सामाजिक जनसांख्यिकीय सूचकांक शामिल किया गया है।

इससे देश के एचएक्यू सूचकांक और वर्ष1990 से 2015 तक देश के विकास के चरण को देखते हुए प्राप्त होने वाले सर्वोच्च मूल्य सूचकांक के बीच अंतर मापने में मदद मिली है।

इस रैंकिंग की गणना के लिए वर्ष 1990 से 2015 तक उस अंतर में बदलाव का इस्तेमाल किया गया है।

मिसाल के तौर पर, तुर्की का स्थान चार्ट में सबसे ऊपर है क्योंकि इसने अंतराल कम करने की दिशा में (इसलिए नकारात्मक संकेत) में सबसे बड़ी दूरी (14.2 अंक) तय की है। जबकि लेसोथो का स्थान सबसे नीचे है क्योंकि पिछले 15 सालों से वर्ष 2015 तक यह अपनी संभावित क्षमता (इसलिए सकारात्मक संकेत) से अधिक दूरी (21.1 अंक) तक गया है।

अध्ययन कहता है कि, “यदि हर देश और क्षेत्र ने अपने अनुरुप स्तर से उच्च एचएक्यू सूचकांक हासिल किया होता तो वर्ष 2015 में वैश्विक औसत 73.8 होता। ”

विशेष रूप से पूर्वी और पश्चिमी उप-सहारा अफ्रीका में कई देशों ने एचएक्यू सूचकांक मूल्य अपने विकास स्तर के बराबर या ज्यादा हासिल किया है। जबकि अन्य जैसे कि दक्षिण उप-सहारा अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया वर्ष1990 से 2015 के बीच इसी तरह के विकास में भौगोलिक स्थिति से पीछे रहा है।

ब्रिक्स देशों में भारत बहुत नीचे, 195 देशों के बीच 178वां स्थान

ब्रिक्स समूह में भारत बहुत नीचे है। हम बता दें कि ब्रिक्स समूह में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। औसत देश के साथ, रूस ने (पांच देशों में तीसरा) पिछले 15 साल से 2015 तक 3.3 अंकों के अंतर को कम किया है। 1990-2015 में 5.5 अंकों के अंतर कम करने के साथ चीन टॉप पर रहा है।

वास्तविक और संभावित स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्ता के बीच के अंतर में बदलाव(ब्रिक्स) वर्ष 1990-2015

Source: Lancet study

For data on 195 countries evaluated in the study, click here.

जिबूती और केन्या के साथ, 197 देशों के सर्वेक्षण में भारत 178 वें स्थान पर था। औसत देश (अजरबैजान, एंटीगुआ और बारबुडा, और मोंटेनेग्रो ) ने वर्ष1990 से वर्ष2015 के बीच में 2.3 अंक से अपने अंतराल को कम किया है।

भारत से बद्तर प्रदर्शन करने वाले देशों में मोजाम्बिक (181वें स्थान पर), होंडुरास (184वें स्थान पर), इराक (19वें स्थान पर), जिम्बाब्वे (191वें स्थान पर) और ओमान (193वें स्थान पर) शामिल हैं। इन देशों के लिए आंकड़े क्रमश: 5.8, 6.4, 7.9, 10 और 13.3 अंक के बीच रहे हैं।

वास्तविक और संभावित स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्ता (ब्रिक्स) के बीच अंतर में बदलाव, 1990-2015

Source: Lancet study

दक्षिण एशियाई देशों में बंग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान शामिल हैं। पिछले 15 सालों में दक्षिण एशियाई देशों में अंतर 4.1 अंक बढ़ा है। यहां तक कि सूचकांक वर्ष 1990 में 30.7 से बढ़कर वर्ष 2015 में 44.4 हुआ है।

दक्षिण पूर्व एशिया में कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, म्यांमार, फिलीपींस, श्रीलंका, सेशेल्स, थाइलैंड, तिमोर-लेस्ते और वियतनाम शामिल हैं। इन देशों के लिए अंतर में 1.5 अंकों की वृद्धि हुई है। सूचकांक वर्ष1995 में 38.6 से बढ़कर वर्ष 2015 में 52.1 हुआ है। ( अध्ययन में चीन, ताइवान और उत्तर कोरिया को पूर्व एशिया में संयुक्त रुप से शामिल किया गया है।

जीर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र का प्रभाव गरीबों पर

अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा शहरी इलाकों में ध्यान केंद्रित कर लेने से गरीबों की स्थिति पर बद्तर प्रभाव पड़ा है। इससे या तो स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के लिए वे स्वयं ही जुगाड़ करते हैं या फिर किसी गैर-सरकारी पहल पर निर्भर है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया है। विस्तार रिपोर्ट आप यहां, यहां, यहां, यहां, यहां, यहां, यहां, यहां, यहां, यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

विश्व बैंक के अर्थशास्त्री जिष्णु दास और एन्न आर्बर, मिशिगन विश्वविद्यालय(अमेरिका) में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट कर रहे आकाश मोहनल द्वारा वर्ष 2016 के इस शोध रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच, स्थान विशेष पर भी निर्भर करता है। यदि वे अमीर गांवों में रहते हैं तो इस बात पर निर्भरता बढ़ती है कि गरीब परिवार बेहतर सेवाएं प्राप्त करने में सक्षम है या नहीं।

(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 23 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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