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मुंबई-गोवा राजमार्ग पर हुए एक सड़क दुर्घटना का दृश्य। सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में हुए कुल दुर्घनाओं में हिट एंड रन मामलों की हिस्सेदारी 11.4 फीसदी है, जोकि 2014 की तुलना में 10.9 फीसदी अधिक है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2015 में, देश भर 20,000 से अधिक लोगों ने हिट एंड रन दुर्घटनाओं में अपनी जान गवाई है। और ऐसे मामलों में गवाहों की विमुखता शामिल होती है क्योंकि कानूनी पेंच “समारी” (मुसीबत में मदद करने वाले), के समर्थन लिए स्पष्ट कानून की आवश्यकता को दर्शाता है।

सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में हुए कुल दुर्घनाओं में हिट एंड रन मामलों की हिस्सेदारी 11.4 फीसदी है, जोकि 2014 की तुलना में 10.9 फीसदी अधिक है।

हालांकि, 2015 में, प्रति घंटे 57 दुर्घटनाएं एवं 17 जान जाने की रिपोर्ट दर्ज की गई है,जबकि 15 से 35 वर्ष की लोगों के बीच 54 फीसदी से अधिक लोगों की हत्या की गई है।

2015 में अधिक दुर्घटनाएं, अधिक मौत

Source: Road Accidents in India 2015, published by MORTH

समारी की रक्षा

25 फरवरी, 2016 को लोकसभा में भारत के परिवहन मंत्री ने कहा , जी हरि ने एक सवाल के जवाब में कहा कि 21 जनवरी, 2016 को सड़क दुर्घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शियों के अन्यायपूर्ण परीक्षा को रोकने के लिए सरकार ने आदर्श संचालन प्रक्रिया जारी की है।

आदर्श प्रक्रिया में गैर बलपूर्वक, भेदभाव रहित, और दुर्घटना में समयबद्ध जांच शामिल है और साथ ही जांच में शामिल व्यक्तियों की व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। दिशा-निर्देशों में यह भी बताया कि सामरी को उपचार के लिए भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि वह घायल व्यक्ति से संबंधित है।

राष्ट्रीय राजमार्गों में होती हैं अधिक दुर्घटनाएं

केंद्र सरकार राज्य राजमार्गों की 52,000 किमी को राष्ट्रीय राजमार्ग में बदलना चाहती है। ' उन्नयन' - राष्ट्रीय राजमार्गों पर और साथ पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना गठित - अवांछनीय हो सकता है क्योंकि 2014 में राज्य राजमार्गों की तुलना में 2015 में राष्ट्रीय राजमार्गों पर होने वाली दुर्घटनाएं और मौतें अधिक हुई हैं। इस संबंध में यह आंकड़े 4.5 और 6 प्रतिशत अंक हैं।

सड़क के प्रकार अनुसार, 2015 में होने वाली सड़क दुर्घटनाएं और हत्याएं

Source: Section VI; Table 6.1; Road Accidents in India 2015, published by MORTH; Figures in percentage

अन्य वाहनों की तुलना में अधिक दो पहिया वाहन घातक दुर्घटनाओं में शामिल थे (26 फीसदी); सड़क पर होने वाली सभी दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहन सवार के मौतों की हिस्सेदारी 25.2 फीसदी दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश (23 जून, 2016 तक) सबसे नवीनतम राज्य है जिसने वाहन की पिछली सीट पर बैठने वालों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य किया है।

अनियंत्रित क्षेत्रों की तुलना में नियंत्रित क्षेत्रों (यातायात आंदोलन को नियमित रखने के लिए पुलियकर्मी या मशीन द्वारा नियंत्रित) कम दुर्घटनाएं होती हैं (कुल का 32 फीसदी)।

क्षेत्र अनुसार दुर्घटनाओं का ब्रेकडाउन

20 फीसदी से अधिक दुर्घटनाएं ऐसे चालकों द्वारा हुई हैं जिनके पास या तो लर्नर लाइसेंस है या फिर लाइसेंस है ही नहीं, यह वैसे लोगों के लिए उपचारात्मक कक्षाओं के लिए जरूरत का सुझाव देती है।

लाइसेंस के प्रकार अनुसार दुर्घटनाएं

Source: Section XVII; Table 17.1; Road Accidents in India 2015, published by MORTH

आशीष वर्मा, सहायक प्रोफेसर, ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार, दृश्य दोषों और दुर्घटनाओं के बीच एक कारण संबंध विचार करने के लिए परिक्षण किए गए 387 चालकों में से 52 फीसदी, दृष्टि मानकों के परीक्षण के लिए कम से कम एक में विफल रहे हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि 60 फीसदी वाणिज्यिक बस चालक ड्राइविंग के लिए आवश्यक न्यूनतम दृष्टि में असफल रहे हैं।

जुलाई 2013 को, सेव लाईफ फाउंडेशन, सड़क सुरक्षा पर काम करने वाली एक संस्था, और टीएनएस इंडिया, एक वैश्विक विपणन अनुसंधान कंपनी, द्वारा की गई अध्ययन, इम्पेडमन्ट्स दू बाईस्टैंडर्स केयर इन इंडिया के अनुसार, कम से कम 74 फीसदी उत्तरदाताओं ने सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की सहायता के लिए अनिच्छा जाहिर की है।

कम से कम 88 फीसदी अनिच्छुक दर्शकों ने इसका कारण कानूनी बाधाएं, पुलिस द्वारा कई बार पूछताछ और अदातलों में कई बार पेश होना बताया है।

अध्ययन में लिए गए करीब 90 फीसदी उत्तरदाताओं ने पीड़ितों की मदद करने वाले लोगों को प्रशासन से होने वाले उत्पीड़न से रक्षा के लिए कानून लागू करने की बात कही है।

सेव - टीएनएस अध्ययन, 2006 में प्रकाशित सर्जरी इंडियन जर्नल द्वारा एक अन्य अध्ययन की ओर इशारा करती है जहां यह पाया गया है कि सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों में से 80 फीसदी को दुर्घटना के पहले घंटों में चिकित्सा देखभाल प्राप्त नहीं होती है।

किसी भी सुरक्षा ढांचे का अभाव दुनिया भर में प्रचलित कानूनों के विपरीत है।

201 वीं विधि आयोग की रिपोर्ट उल्लेख करती है कि डॉक्टरों का मानना है कि 50 फीसदी दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की जान बचाई जा सकती यदि उन्हें समय पर चिकित्सक सहायता प्रदान की जाती।

वैश्विक प्रतिज्ञाएं और तुलना

25 सितंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार किया गया सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), 2030 तक विश्व भर में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली चोटों और मौतों की संख्या आधी करना है।

भारत (एक मध्यम आय अर्थव्यवस्था) के लिए, 2010 में 20.1 की एक आधारभूत से, प्रति 100,000 पर लक्ष्य सात मौतों से कम है।

19 नवंबर 2015 को भारत ने ब्रासीलिया घोषणा पर हस्ताक्षर किया है जो 2020 तक सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों को आधा करने के लिए प्रतिबद्ध करता है।

दुर्घटनाओं में होनी वाली मौतें, 2015

Source: World Road Statistics 2015 published by International Road Federation, Geneva; Extracted from Section XVIII; Road Accidents in India 2015, published by MORTH

आगे का रास्ता : कम करने के उपाय

सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों की कैशलेस इलाज के लिए एक पायलट परियोजना पहले एनएच -8 (गुड़गांव -जयपुर और वडोदरा -मुंबई) और और एनएच 33 (रांची- महुलिया ) मार्गों पर शुरु किया जा चुका है। सेवा में 48 घंटे के भीतर सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों के लिए 30,000 रुपए दिया जाना शामिल है।

निकासी प्रयोजनों के लिए क्रेन और एंबुलेंस उपलब्ध कराने के लिए सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग दुर्घटना राहत सेवा योजना (NHARSS) भी लागू कर रही है। कम से कम 40 एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस, पहचान की गई राज्य के सरकारी अस्पतालों को सौंपा गया है।

(शर्मा 2015-16 के लिए सांसद के वैधानिक सहायक थे। इन्होंने नीतिगत मामलों पर राज्यसभा के एक वरिष्ठ सांसद की सहायता की है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 04 अगस्त 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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