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  • पिछले कुछ सालों में देश में कुपोषण कम हुआ है। लेकिन अब भी इसमें काफी सुधार की आवश्यकता है। कुपोषण के मामले में भारत ब्राज़ील से 27 फीसदी, चीन से 26 फीसदी एवं साउथ अफ्रीका से 21 फीसदी पीछे है।
  • शहर के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या में अधिक गिरावट दर्ज की गई है।
  • कुपोषण मामलों में सुधार होने के मुख्य कारण खुले में शौंच जाने वालों की संख्या में कमी के साथ संस्थागत जन्म एवं विटामिन ‘ए’ की खुराक में वृद्धि होना है।

यह कुछ मुख्य बिंदु हैं जो संयुक्त राष्ट्रीय बाल कोष ( यूनिसेफ) द्वारा बच्चों के लिए कराए गए रैपिड सर्वे ऑफ चिल्ड्रेन ( आरएसओसी 2013-14 ) के दौरान सामने आए हैं। हालांकि पूरी रिपोर्ट अब तक भारत सरकार सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन , द इकोनोमिस्टद्वारा कुछ अर्क निकाले गए हैं।

कम वज़न वाले बच्चों की संख्या वाले देश

पांच साल से कम उम्र के सामान्य से कम वजन वाले बच्चों की संख्या, आंकड़े % में दिए गए हैं

Source: RSOC and WHO

आरएसओसी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 29.5 फीसदी ऐसे बच्चे जिनकी उम्र 5 साल से कम है एवं जिनका वज़न सामान्य से कम है।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 में ऐसे ही बच्चों की संख्या 43.5 फीसदी दर्ज की गई थी।

पड़ोसी देशों की तुलना में भारत की स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है। भारत का स्थान अब नेपाल के बाद आता है जहां पांच साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चों की संख्या 29.1 फीसदी है।

यदि भारत की ब्रिक्स देशों के अन्य सदस्यों (ब्राजील, रूस , चीन और दक्षिण अफ्रीका) से तुलना की जाए तो पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषित बच्चों की संख्या निराशाजनक ही है। भारत,ब्राज़ील की तुलना में 2.2 फीसदी, साउथ अफ्रीका के मुकाबले 8.7 फीसदी एवं चीन की तुलना में 3.4 फीसदी पीछे है।

ब्रिक्स देशों के मुकाबले भारत पीछे, लेकिन हुए हैं काफी सुधार

आरएसओसी द्वारा जारी किए आंकड़ो की यदि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2 ( 1995-96) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3 ( 2005-06 ) से तुलना की जाए को साफ ज़ाहिर होता है कि भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की संख्या में कमी हुई है।

भारत में कुपोषण का ग्राफ

Source: National Family Health Survey 3 and RSOC

किसी भी बच्चे में यदि यह तीन लक्षण पाए जाएं तो उसे कुपोषित कहा जाता है – अविकसित ( विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित किए गए विकास मानकों से कम होना), कमज़ोर या शक्तिहीन (विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित किए गए कदएवं वज़न से कम होना ), सामन्य से कम वज़न ( विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा निर्धारित किए गए वज़न से कम होना )।

अविकसित बच्चों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई है। साल 1999 में अविकसित बच्चों की संख्या 59 फीसदी दर्ज की गई थी जबकि साल 2013-14 में ऐसे बच्चों की संख्या 38.7 फीसदी देखी गई है। इसी तरह सामान्य से कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में भी कमी हुई है। साल 1999 में कम वज़न वाले बच्चों की संख्या 42.7 फीसदी दर्ज की गई थी जबकि 2013-14 में यह आंकड़े गिरकर 29.4 फीसदी दर्ज किए गए हैं।

साल 1999 -2000 के दौरान कमज़ोर या शक्तिहीन बच्चों की संख्या 19.7 फीसदी दर्ज की गई थी। यह आंकड़े साल 2006-07 में बढ़ कर 22.9 फीसदी हो गए थे जबकि साल 2013-14 में यही आंकड़े गिर कर 15.4 फीसदी दर्ज किए गए हैं।

ग्रामीण भारत में कुपोषण का ग्राफ

शहरी भारत में कुपोषण का ग्राफ

Source: NFHS 3 and RSOC

कुपोषण के तीनों लक्षण में शहरी एवं ग्रामीण इलाकों की स्थिति के बीच का अंतर साफ दिखता है। शहर के मुकाबले ग्रामीण इलाकों की स्थिति अब भी काफी बुरी है।

हालांकि, यदि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 3 एवं आरएसओसी के आंकड़ों की तुलना की जाए तो अविकसित बच्चों की संख्या में कुछ गिरावट दर्ज की गई है। साल 2006-07 में शहरी इलाकों में ऐसे बच्चों की संख्या 40 फीसदी थी जबकि साल 2013-14 में यह आंकड़े 32 फीसदी दर्ज किए गए थे। वहीं इसी अवधी के दौरान ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़े 51 फसीदी से गिरकर 41 फीसदी दर्ज किए गए हैं।

ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों का केंद्रित होना इस सुधार का एक कारण हो सकता है।

लड़कियों के साथ भेदभाव, लेकिन स्थिति बेहतर

लड़कियों के साथ हर दिशा में भेदभाव होने के बावजूद पोषण के मामले में लड़कियों की स्थिति लड़कों के मुकाबले बेहतर पाई गई है। आरएसओसी के आंकड़ों के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के लड़के, जिनका विकास, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से नीचे पाया गया है उनकी संख्या 39.5 फीसदी दर्ज की गई है। जबकि पांच साल से कम उम्र की लड़कियों के लिए यही आंकड़े 37.5 फीसदी दर्ज किए गए हैं।

सामान्य से कम वज़न के मामले में भी कुछ ऐसे ही आंकड़े सामने आए हैं –30 फीसदी लड़के एवं 28.7 फीसदी कम वज़न वाली लड़कियों की संख्या दर्ज की गई है।

अनुसूचित जातियों में सबसे अधिक, 42.4 फीसदी अविकसित बच्चे देखे गए हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए यह आंकड़े 42.3 फीसदी देखे गए हैं

छोटे बच्चों में कुपोषण की समस्या खुले में शौच जाने से भी संबंधित है। छोटे बच्चे जो घरों में बने शौचालाय का इस्तेमाल करते हैं उनमें कुपोषण के तीनों लक्षण कम देखे गए हैं। खुले में शौच करने वालों की संख्या 55 फीसदी से गिरकर 44.8 फीसदी, यानि पूरे 10 फीसदी कम दर्ज की गई है।

आदत में बदलाव

Source: NFHS 3 and RSOC

संस्थागत जन्मके आंकड़ों में भी सुधार दर्ज किया गया है। साल 2005-06 में यह आंकड़े 40.8 फीसदी थे वहीं साल 2013 में यह आंकड़े 78.6 फीसदी दर्ज की गई है। संस्थागत जन्म बच्चे के जन्म से पूर्व एवं बाद में मां और बच्चे की बेहतर देखभाल सुनिश्चित करता है।

इंडियास्पेंड ने अपनी रिपोर्ट में पहले भी बताया है कि कुपोषण को रोकने के लिए विटामिन ‘ए’ की खुराक अति आवश्यक है। आरएसओसी के आंकड़ों के अनुसार पांच साल से कम उम्र के बच्चों में विटामिन ‘ए’ की खुराक बेहतर हुई है। साल 2005-06 में जहां यह आंकड़े 25 फीसदी थे वहीं 2013 में यह आंकड़े 46 फीसदी दर्ज की गई है।

सबसे अधिक अविकसित बच्चों की संख्या वाले पांच राज्य

Source: RSOC and NFHS 3

उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखण्ड में कोई खास सुधार देखने नहीं मिला है। छत्तीसगढ़ और गुजरात में 9 फीसदी एवं 8 फीसदी का सुधार दर्ज किया गया है।

सबसे अधिक कमज़ोर बच्चों की संख्या वाले पांच राज्य

Source: RSOC and NFHS 3

ओड़िसा में 5 फीसदी की सुधार दर्ज की गई है। तमिलनाडु में भी कुछ सुधार देखे गए हैं। जबकि आंध्रप्रदेश में ऐसे बच्चों की संख्या में 5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

सामान्य से कम वज़न वाले सबसे अधिक बच्चों वाले पांच राज्य

Source: RSOC and NFHS 3

सभी पांचों राज्यों में जहां बच्चो की स्थिति बुरी है, सामान्य से कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में गिरावट हुई है।

कम वज़न वाले बच्चों की संख्या मध्य प्रदेश में सबसे अधिक, 21 फीसदी देखी गई है जबकि बिहार में ऐसे बच्चों की संख्या में 17 फीसदी की गिरावट हुई है।

( सालवे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक और वाडेकर इंटर्न हैं )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 जुलाई 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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