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बेंगलुरु में महिलाओं से छेड़छाड़ के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग। वर्ष 2006 से वर्ष 2016 के बीच बेंगलुरु में दर्ज छेड़छाड़ की 4,241 शिकायतों में सजा की दर 0.37 फीसदी थी। मात्र 16 मामले में सजा हुई

वर्ष 2016 तक एक दशक में, बेंगलुरु में छेड़छाड़ की घटनाओं में चार गुना से ज्यादा की वृद्धि हुई है। यह जानकारी बेंगलुरु पुलिस आयुक्त द्वारा संकलित आंकड़ों (धारा 354 के तहत) में सामने आई है। वर्ष 2006 से 2016 के बीच दर्ज 4,241 शिकायतों पर किए गए हमारे विश्लेषण के मुताबिक, सजा की दर 0.37 फीसदी थी। मात्र 16 मामले में सजा हो पाई।

भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत शिकायत ( महिलाओं की शीलता पर हमला ) की संख्या वर्ष 2006 में 150 थी। जो बढ़कर वर्ष 2016 में 776 हुआ है। जानकारों का कहना है कि इसका कारण घटनाओं की संख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ अब अधिक महिलाएं रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए आगे आ रही हैं।

इन आंकड़ों को बेंगलुरु पुलिस आयुक्त द्वारा संकलित करने का उद्देश्य हिंसा की रोकथाम और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार को रोकने के लिए कर्नाटक विधानमंडल समिति के सामने रखना था।

यह डेटा प्रोजेक्ट एक टेम्पलेट के रूप में काम कर सकता है कि कैसे भारत के बढ़ते शहरों में सार्वजनिक हित में पुलिस अपराध डेटा संग्रह कर सकती है।

धारा 354 में यौन उत्पीड़न (354 ए), अपहृत (354 बी), भ्रष्ट करने के इरादे के साथ आपराधिक बल का उपयोग (354 बी), ताक-झांक (354 सी) और पीछा करना (354 डी) शामिल है। बेंगलुरू आयुक्त से प्राप्त आंकड़े 'छेड़छाड़' के तहत शामिल किए गए हैं।

भारत की आईटी राजधानी माना जाने वाले शहर बेंगलुरु की 2017 की शुरुआत एक बेहद खौफनाक घटना के साथ हुई। वर्ष 2016 की आखिरी शाम को कई सौ पुलिस कर्मियों की तैनाती के बावजूद शहर के हलचल वाले इलाके एमजी रोड और ब्रिगेड रोड इलाकों में महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर छेड़-छाड़ की घटना दर्ज की गई थी। इन घटनाओं से बेंगलुरु शहर के निवासियों के साथ-साथ पूरे देश के लोगों को सदमा लगा था। अब तक लोगों के मन में बेंगलुरु की छवि महिलाओं के लिए सुरक्षित शहर के रुप में थी।

छेड़छाड़ पर बेंगलुरू की सजा दर राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी समस्या का संकेत है। एक संस्था ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ के दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने निर्भया मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 4 मई, 2017 को सुनाए फैसले के बाद जारी एक बयान में कहा, “"यौन उत्पीड़न के बाद बचने वाली कुछ ही महिलाएं के पास ही न्याय और घटना से उबरने का रास्ता रहता है। ”

'दर्जनों लोगों के सामने एक अजनबी ने मुझे चूमने की कोशिश की! कोई मेरी मदद के लिए नहीं आया '

24 वर्षीया काव्या एस. रोज की तरह काम पर जा रही थी। तभी एक अजनबी ने उसपर सार्वजनिक रूप से हमला किया। काव्या उस खौफनाक घटना को आज भूल नहीं पाई है- “सुबह के लगभग 8.30 बजे थे । मैं अपने काम के लिए कोरमंगला जा रही थी। अचानक एक अजनबी ने मुझे पकड़ लिया और दर्जनों लोगों के सामने मुझे चूमने की कोशिश करने लगा। लेकिन मेरी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। जब मैं चीखी और उसे लात मार दिया, तो लोग उल्टा मुझ पर चिल्लाने लगे। और उसे छोड़ देने को कहा। ”

काव्या ने तुरंत धारा 354 के तहत स्थानीय पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई। लेकिन उसका ठिकाना उस इलाके से बदल जाने के कारण वह इस शिकायत पर नजर नहीं रख पाई- “पुलिस अधिकारी काफी सहायक थे। लेकिन घर और नौकरी बदलने के कारण मैं मामले का फॉलोअप नहीं कर पाई। ”

काव्या के साथ जो हुआ, वह बहुतों के साथ हो रहा है। हालांकि बेंगलुरु पुलिस का कहना है कि वे महिलाओं के लिए कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार करने के लिए काम कर रहे हैं। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (क्राइम) एस रवि ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि, “हमने उन क्षेत्रों की पहचान की है, जो महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कुख्यात हैं। हमने ‘51 पिंक होयसला’ (मोबाइल इकाइयां) की शुरुआत की है, जो खास तौर पर महिलाओं के लिए ही है। हमने पिछले हफ्ते 'सुरक्षा' नामक ऐप भी लॉन्च किया है (अप्रैल दूसरे सप्ताह में)। खतरे की आशंका होने पर कोई भी हमें सूचित कर सकता है और पुलिस उन तक दस मिनट में पहुंच जाएगी। ”

4,241 मामले दर्ज, 53 फीसदी लंबित मुकदमे, 12 फीसदी निर्दोष, 0.37 फीसदी सजा

भारत के दूसरे हिस्से की तरह बेंगलुरू की आपराधिक न्याय व्यवस्था भी विलंब से चल रही है। ( विस्तार यहां, यहां और यहां पढ़ सकते हैं। बेंगलुरु सिटी पुलिस आयुक्त के आंकड़ों के मुताबिक दर्ज किए गए 4,241 छेड़छाड़ के मामले में से 2,248 (53 फीसदी) मुकदमे लंबित हैं।

ट्रायल किए गए मामलों में 523 ( 12 फीसदी ) निर्दोष साबित हुए हैं, जबकि 16 यानी 0.37 फीसदी को सजा मिली है। जबकि पुलिस जांच के बाद 97 फीसदी मामलों को "सही" मानते हैं। एक दशक पहले, "सच्चे" मामलों का आंकड़ा 84 फीसदी था, जो महिलाओं की शिकायतों से निपटने में अधिक खुले दिमाग के साथ जांच के लिए पुलिस की ओर से बेहतर प्रयास का संकेत देते हैं।

वकील और कार्यकर्ता मानते हैं कि सतही जांच के कारण अधिक लोग निर्दोष माने जाते हैं। एक प्रसिद्ध वकील और एक प्रसिद्ध महिला अधिकार कार्यकर्ता, प्रमिला नेसार्गा कहती हैं, “महिलाओं के खिलाफ अधिकतर मामलों में, विशेष रूप से छेड़छाड़ के मामले में , आरोपी को बरी कर दिया जाता है या फिर मामलों को लंबित रखा जाता है। इन सभी का मुख्य कारण पुलिस द्वारा उचित साक्ष्य प्राप्त करने की अनिच्छा है।” वह कहती हैं कि सरकार को प्रशिक्षित अधिकारियों की नियुक्ति करने की जरूरत है।

बेंगलुरु में छेड़छाड़ की घटनाएं, 2006-16

Source: Bengaluru City Police Commissionerate
Note: Figures are for cases under Section 354 of the Indian Penal Code. Totals may not tally as some cases may be under investigation.

संकट में महिलाओं के लिए बचाव और सहायता सेवाएं प्रदान करने वाली एक सरकारी एजेंसी विनीता सहायवानी की समन्वयक रानी शेट्टी ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि सरकार को महिलाओं के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए। वह कहती हैं, “मैंने कई ऐसे पीड़ितों से मुलाकात की है, जिनके मामले कई वर्षों से लंबित हैं। कानून व्यवस्था को मजबूत होना चाहिए। महिलाओं से संबंधित किसी भी मामले पर तेजी से निर्णय होना चाहिए। ”

कानून के मुताबिक पुलिस को अपराध के 90 दिनों के अंदर आरोपपत्र दाखिल करना चाहिए।कर्नाटक विधान परिषद के एक सदस्य और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए बनीव समिति के अध्यक्ष उग्रपपा वी.एस ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि “ज्यादातर मामलों में वे ऐसा करने में विफल होते हैं। इससे अदालत की कार्यवाही प्रभावित होती है। ”

सरकारी वकील, जो अदालत में मामला पेश करने के लिए ज़िम्मेदार हैं, उन पर काम का अत्यधिक बोझ है। 20 साल से सार्वजनिक अभियोजक का काम कर रहे एस एन हिरेमन कहते हैं, “वर्षों तक मामले लंबित होने का मुख्य कारण सार्वजनिक अभियोजकों को जरुरत से ज्यादा मामले दिया जाना है। मेरे पास भी अब तक छेड़छाड़ के 450 मामले लंबित हैं। ”

न्यायिक विलंब, जो कि अभियुक्त के लिए जमानत प्राप्त करना आसान बनाता है, यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों के लिए बेहद खतरनाक साबित होता है। एक मामले में कक्षा नौ की एक छात्रा के साथ उसके 25 वर्षीय पड़ोसी ने छेड़छाड़ किया था। उसके परिवार ने पीनिया पुलिस थाने में धारा 354 के तहत मामला दायर किया । आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। चार महीने के बाद जमानत पर रिहा होने पर, उसने लड़की का अपहरण कर लिया और उसे बलात्कार किया। आरोपी अब फिर जेल में है।

लड़की ने इंडियास्पेंड से बात करते कहा, “मेरे साथ जो हुआ वो किसी भी लड़की से नहीं होना चाहिए। उसे कठोर सजा मिलनी चाहिए। ”

लड़की के पिता ने कहा कि, “अगर पुलिस ने उसके पहले अपराध पर सख्त कार्रवाई की होती तो दूसरी घटना को रोका जा सकता था। अब वह जेल में है, लेकिन जब वह बाहर निकलेगा , तो वह फिर हम लोगों को सताएगा।”

मार्च 2017 में, लोकायुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एन. संतोष हेगड़े ने एक निजी कॉलेज में भाषण के दौरान कहा कि शहर की बढ़ती आबादी के साथ-साथ आप्रवासियों की भारी आबादी, छेड़छाड़ के बढ़ते मामलों के पीछे के कारणों में से एक हो सकती है नए साल की पूर्व संध्या इसका एक उदाहरण है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बेंगलूर शहर की आबादी 84.4 लाख है। लेकिन वर्ष 2016 तक यह 1.15 करोड़ से अधिक तक पहुंच गया था।

प्रवासियों के संबंध में चर्चा में करते हुए उन्होंने कहा, “वे अकेले आते हैं। वे अकेले रहते हैं। और एक भीड़ भरे शहर में पहचाने न जाने का लाभ लेकर उनकी उनकी विकृत इच्छाएं फलने-फूलने लगती हैं। यह सब नैतिकता की कमी की वजह से हो रहा है।”

मशहूर मनोचिकित्सक और टॉकओवर काउंसिलिंग सर्विसेज के निदेशक मोनिका श्रीचंद इस समस्या को कुछ इस तरह से समझाती हैं- “ महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले का जड़ समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता है ।यह इस बात पर निर्भर करता है कि लड़के और लड़कियों को किस प्रकार घर और स्कूल में बड़ा किया जा रहा है।”

वह आगे कहती हैं, “बचपन से, लड़कों को सिखाया जाता है कि वे बेहतर हैं, लड़कियां से ऊपर हैं। बाद उनकी मानसिकता लड़कियों को सेक्स ऑब्जेक्ट्स के रूप में देखने लगती है। वे मीडिया और फिल्मों में बहुत सी ऐसी चीजें देखते हैं, समाज में बहुत से लैंगिक असमानताएं हैं, जिनसे उनकी कुंठा और बढ़ती हैं। ऐसे में पुरुण लड़कियों को स्वतंत्र रुप से घूमते, बाहर काम करते, बाहर से देर रात लौटते देखते हैं, तो वे अपनी ताकत से उन्हें वश में करना चाहते हैं।”

(मणि एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और बेंग्लुरु में रहती हैं। वह 101Reporters.com की सदस्य भी हैं। 101Reporters.com जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों का राष्ट्रीय नेटवर्क है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 6 मई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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