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उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में झकरकट्टी राखी मंडी के पास झुग्गी में खुले में शौच के लिए रेलवे ट्रैक पार करती एक महिला। स्वच्छ भारत शहरी मिशन के तहत 255,760 शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है, जबकि नवंबर 2016 तक 9 फीसदी (23,788)से अधिक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है।

शहरी इलाकों में रहने वाले कम से कम 15.7 करोड़ लोग या 47 फीसदी भारतीय पर्याप्त साफ-सफाई के साथ नहीं रहते हैं। वैश्विक संस्था ‘वॉटर एड’ की ओर से जारी रिपोर्ट कम से कम यही कहती है। हम आपको बता दें कि प्रयाप्त साफ-सफाई के बगैर रहने वाले भारतीयों की यह संख्या बांग्लादेश की आबादी के बराबर है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पर्याप्त स्वच्छता के अभाव के मामले में भारत के बाद दूसरा स्थान चीन का है। चीन में 10.4 करोड़ लोगों की जिंदगी में साफ-सफाई का कोई स्थान नहीं है।

ब्रिक्स देशों में शौचालयों की संख्या

Source: Water Aid

शहरी स्वच्छता के संबंध में भारत की स्थिति बद्तर है। भारत के शहरी इलाकों में स्वच्छता के बगैर रहने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है। इसके साथ ही किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में खुले में शौच जाने वाले लोग भी सबसे अधिक हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में खुले में शौच करने वालों की संख्या 4.1 करोड़ है। ‘वॉटर एड’ ने इस संबंध में एक अध्ययन, किया है, जिसका शीर्षक ‘ओवरफ्लोइंग सीटीज: स्टेट ऑफ द वर्ल्ड टॉयलेट्स’ है। अध्ययन के अनुसार खुले में शौच करने से उत्पन्न होने वाला अपशिष्ट, ओलंपिक आकार के 8 स्विमिंग पूल भरे जाने जितना है। इस संबंध में भारत के बाद दूसरा स्थान इंडोनेशिया है। इंडोनेशिया के लिए ये आंकड़े 1.8 करोड़ है।

शहरी आबादी बढ़ने के साथ बढ़ रही हैं मलिन बस्तियां और गंदगी

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में दुनिया के कम से कम 390 करोड़ लोग या 54 फीसदी आबादी दुनिया भर के शहरों में रहती है। इनमें से 38.1 करोड़ या 9.7 फीसदी शहरी भारत में रहते हैं।

आर्थिक और सामाजिक मामलों के संयुक्त राष्ट्र विभाग (UNDESA) द्वारा 2014 की यह रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी का दो तिहाई हिस्सा शहरों में रहेगा और इसका मतलब भारत में के शहरी क्षेत्रों में 60 फीसदी आबादी रहेगी।

स्वच्छता सुविधाओं के अभाव का सबसे ज्यादा असर मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों पर पड़ता है। इससे विकासशील दुनिया भर में लगभग 863 मिलियन लोग प्रभावित होते है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में यह संख्या 65 मिलियन या 6.5 करोड़ है।

‘वॉटर एड’ की रिपोर्ट कहती है कि गंदगी का प्रभाव केवल लोगों के व्यक्तिगत स्वास्थ्य ही नहीं, अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।

गंदे पानी और गंदगी के कारण होने वाले दस्त से हर साल 315,000 बच्चों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर करीब आधे कुपोषण के शिकार बच्चों के कारण भी इससे ही जुड़े हैं।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कम से कम 117,300 बच्चों की मौत दस्त के कारण हुई है। विश्व स्तर पर होने वाली मौत का यह 37 फीसदी है।

पांच से कम उम्र की आयु के करीब 39 फीसदी बच्चे स्टंट यानी अपने कद के अनुसार कम वजन के हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 में विस्तार से बताया है।

महिलाओं और लड़कियों पर ज्यादा जोखिम

‘वॉटर एड’ की रिपोर्ट कहती है कि शौचालय तक पहुंच के अभाव का सबसे जोखिम महिलाओं विशेष रुप से लड़कियों पर पड़ता है। वर्ष 2016 में टेक्सास विश्वविद्यालय द्वारा की गई एक और अध्ययन के अनुसार शौचालयों के अभाव में महिलाओं को खुले में शौच जाने के लिए अंधेरा होने तक का इंतजार करना पड़ता है, जिससे उन पर किसी भी तरह का हमला या बलात्कार होने की संभावना बढ़ जाती है।

Aमासिक धर्म प्रबंधन सुविधाओं की कमी के कारण कम से कम 23 फीसदी भारतीय लड़कियों ने किशोरावस्था में कदम रखने बाद स्कूल छोड़ा है। इस संबंध में FactChecker ने नवंबर 2016 में विस्तार से बताया है।

‘वॉटर एड’ के रिपोर्ट के अनुसार समाज में बदतर साफ-सफाई का मतलब है कि हम चिकित्सा क्लीनिक में भी गंदगी की मौजूदगी से इंकार नहीं कर सकते। इससे रोगियों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं संक्रमण का खतरा बढ़ता है।

छह राज्यों में लगभग 343 स्वास्थ्य संस्थानों में बुनियादी स्वच्छता यानी शौचालय, साफ पानी और अपशिष्ट निपटान का अभाव पाया गया है। इस बारे में इंडियास्पेंड ने जुलाई 2016 में बताया है।

स्वच्छ भारत मिशन 9 फीसदी सार्वजनिक शौचालय, 40 फीसदी व्यक्तिगत शौचालय बनाए गए

2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के तहत 40 फीसदी व्यक्तिगत शौचालयों (26.6 मिलियन शौचालय) का निर्माण किया गया है। इस योजना के तहत 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त बनाना है। इसके लिए 66.4 मिलियन शौचालयों का निर्माण करना है।

स्वच्छ भारत शहरी मिशन का प्रदर्शन

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Source: Swachh Bharat Urban, Data as on November 17, 2016

255760 शौचालयों का निर्माण करने के लक्ष्य के मुकाबले 9 नवंबर तक 9 फीसदी से अधिक सार्वजनिक शौचालय (23788) का निर्माण नहीं हुआ है।

कम से कम 405 शहरों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। जबकि 739 शहरों को शौच मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। यानी की समापन दर 54.8 फीसदी है।

‘वॉटर एड’ की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर की सरकारों को स्वच्छता पर अधिक पैसा खर्च करने की जरूरत है। यह स्वच्छता सेवाओं के समान वितरण और गैर सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र, अनौपचारिक सेवा प्रदाताओं और नागरिकों की की भागीदारी की सिफारिश भी करता है।

(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 नवंबर को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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