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आईआईएम बैंगलोर में विदेशी छात्र। सरकार और संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, दो वर्षों में भारत में विदेशी छात्रों के नामांकन में 6 फीसदी की गिरावट हुई है।

2013-14 में करीब 200,000 भारतीय छात्र विदेशी शिक्षा के लिए देश के बाहर गए हैं जबकि 31,126 से अधिक विदेशी छात्रों ने भारतीय शिक्षा के लिए अभिरुचि नहीं जताई है। यह जानकारी टाइम्स ऑफ इंडिया में उद्धृत मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों में सामने आई है। 2014 की इस रिपोर्ट में सरकार और संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, इसका अर्थ यह हुआ कि दो वर्षों के दौरान, भारत में विदेशी छात्रों के नामांकन में 2,030 , या 6 फीसदी की गिरावट हुई है।

हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया कहता है कि विदेशी छात्रों की संख्या में 11,000 की वृद्धि हुई है, हालांकि इसकी अवधि स्पष्ट नहीं है।

2014 में, करीब पांच मिलियन छात्र – 2000 में करीब 2.1 मिलियन से दोगुना – अपने देश से बाहर पढ़ने गए हैं। इनमें से दो मिलियन “भाषा यात्रा में संलग्न” हैं, जिनमें से दो – तिहाई की अंग्रेजी फ्लूएंसी की मांग है, जैसा कि एक वैश्विक विपणन सलाहकार, ICEF से 2015 की इस रिपोर्ट में समझाते हुए कहा गया है कि किस प्रकार उच्च शिक्षा जो एक बार वैश्विक अभिजात वर्ग के लिए सुलभ थी वह अब हर महाद्वीप में विशेष रुप से तेजी से बढ़ते मध्यम वर्ग तक पहुंच रहा है।

ICEF रिपोर्ट कहती है, “तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की सरकारें अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली के विस्तार में भारी निवेश कर रही हैं; अपने छात्रों को विदेश में शिक्षा प्राप्त करने में मदद – और घर वापस लाने -के लिए छात्रवृत्ति बना रही हैं ; और सीमा पार से अनुसंधान भागीदारी और एक्सचेंजों जो दुनिया में अपने-अपने देशों की स्थिति , नवाचार के लिए क्षमता और प्रभाव को उन्नत करती है, उसमें शामिल हो रही है। यह कोई संयोग नहीं है कि परिणाम के रूप में, विकासशील अर्थव्यवस्थाएं, अंतरराष्ट्रीय छात्र की गतिशीलता के साथ मिलकर बढ़ रहे हैं।”

रिपोर्ट कहती है कि, दुनिया में चीन, भारत और दक्षिण कोरिया अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रमुख स्रोत हैं। हर छह अंतरराष्ट्रीय गतिशील छात्रों में से एक अब चीन से है। अपने देशों से बाहर पढ़ने वाले छात्रों में, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया की मिलाकर एक-चौथाई से अधिक की हिस्सेदारी है।

अपने देश के बाहर शिक्षा पाने के इच्छुक लाखों छात्रों के लिए एक चुंबक के रूप में भारत में मुख्य बाधा वैश्विक गुणवत्ता की उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी है। ब्रिटिश अखबार द्वारा प्रकाशित टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में सूचीबद्ध टॉप 200 विश्वविद्यालयों की सूची में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय नहीं है। एकमात्र भारतीय संस्था, भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) का स्थान टॉप 300 की सूचि में है, आईआईएससी का नाम 251 से 300 बैंड में रखा गया है।

आईआईएससी में विदेशी छात्रों की संख्या, 1 फीसदी थी जबकि कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी , या कैलटेक, दुनिया के टॉप संस्था, में यही आंकड़े 27 फीसदी थे, जैसा कि इंडियास्पेंड 13 जुलाई, 2016 को विस्तार से बताया है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 19 जुलाई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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