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वर्ष 2017 में कई सकारात्मक बदलावों के बीज बोए गए थे जो वर्ष 2018 में भारतीयों को खुश होने की वजहें दे सकते हैं। देश ने तपेदिक यानी टीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज कर दी है और भारत में इस सबसे व्यापक संक्रामक रोग से प्रभावित लोगों की संख्या में गिरावट हुई है। 2017 में देखी गई शिशु और मातृ मृत्यु दर में गिरावट, नए साल को बेहतर बना सकती है। सरकार ने हाथों से गंधगी साफ करने के कारण होने वाली मौतों की समस्या को अधिक बारीकी से निगरानी करके और लापरवाह ठेकेदारों को गंभीर रुप से दंडित करके समस्या पर ध्यान देने का अपना इरादा व्यक्त किया है। और गोपनीयता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असर पड़ सकता है कि हम कई निजी स्वतंत्रता को कैसे देखते हैं?

भारत में टीबी के खिलाफ सरकार की नई लड़ाई

मार्च 2017 में सरकार ने टीबी के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय सामरिक योजना जारी करने के साथ तपेदिक (टीबी) पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। यह 2016 में 423,000 भारतीयों की मौत का कारण बना है।.

वर्ष 2015 में प्रति 100,000 लोगों पर 217 नए मामलों से टीबी की घटनाओं को वर्ष 2025 तक 44 नए मामलों तक कम करने का है। इस योजना के भाग के रूप में, टीबी की रोकथाम और देखभाल के लिए वित्त पोषण 2016 में 280 मिलियन डॉलर से दोगुना हो कर 2017 में 525 मिलियन डॉलर हुआ है।

2016 से 2017 के बीच भारत में टीबी रोकथाम के वित्त पोषण दोगुना

Source: World Health Organization reports in 2014, 2015, 2016, 2017.

सरकार ने टीबी की दवाई को भी बदल दिया है - कई दवाओं से एक निश्चित खुराक संयोजन में एक दैनिक खुराक तक। कई गोलियों की वैकल्पिक खुराक की तुलना में दैनिक खुराक अधिक प्रभावी माना जाता है जो कि पहले सरकार द्वारा संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम की सिफारिश की गई थी।

‘द हिंदू’ में इस लेख के अनुसार, सरकार ने पूरे देश के 100 पायलटों में, बच्चों के लिए फ्लेवर्ड निश्चित खुराक की दवाएं भी शुरू कीं हैं।

इसके अलावा, सरकार ने दवा के प्रतिरोध के राइफैम्पिसिन का पता लगाने के लिए टीबी के सभी रोगियों के लिए सार्वभौमिक दवा संवेदनशीलता परीक्षण शुरू किया है, जैसा कि ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट में बताया गया है। यह कार्ट्रिज-आधारित न्यूक्लिक एसिड प्रत्यारोपण टेस्ट मशीनों की संख्या में वृद्धि से सहायता प्राप्त होगी, जो दवा प्रतिरोधी टीबी की पहचान करने में मदद करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, टीबी को नष्ट करने में भारत को लंबा सफर तय करना है, जिसके नए मामले 2016 में 2.7 मिलियन तक कम हो गए हैं। यह आंकड़े वर्ष 2015 में 2.8 मिलियन से 3.57 फीसदी कम है।

टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए, भारत को हर साल अपनी घटनाओं में 10 फीसदी की कमी की जरूरत है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने नवंबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है। इसके लिए, सरकार को निजी क्षेत्र शामिल करने की आवश्यकता है जो देश में टीबी के कम से कम आधे मामलों का इलाज करता है।

इसे उपचार पूरा करने और परामर्श के माध्यम से दरों को ठीक करने, टीबी रोगियों को सामाजिक सहायता प्रदान करने और उच्च जोखिम वाले समुदायों में सक्रिय रूप से रोगियों को ढूंढने की जरूरत है।

2015 से 2016 के बीच भारत में टीबी के नए मामलों में 3.57 फीसदी की गिरावट

Source: World Health OrganizationNote: The increase in cases and deaths between 2014 and 2015 can also be attributed to better counting.

शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी

वर्ष 2015 की तुलना में 2016 में कम शिशुओं की मृत्यु हुई है, और इसी अवधि के दौरान शिशु मृत्यु दर में भी 8 फीसदी की कमी आई है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने सितंबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

शिशु मृत्युओं में लैंगिक असमानता भी बंद हो रही है। 2016 में, शिशु मृत्यु दर लड़कों के लिए प्रति 1,000 पर 33 और लड़कियों के लिए प्रति हजार पर 36 का रहा है। 2015 में, आंकड़े 35 और 39 का था, लिंग के बीच का अंतर 10 फीसदी से कम था।

मातृ मृत्यु दर में भी कमी आई है। 2013 तक, भारत की मातृ मृत्यु दर वैश्विक औसत से कम थी। 2004-06 में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 254 मौतों से अनुपात 2013 में गिरकर 167 पर आ गया है। 2016 में वैश्विक औसत 179 पर उच्च रहा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में संस्थागत प्रसव के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। इस संबंध में आंकड़े 2005-06 में 39 फीसदी से बढ़कर 2015-16 में 79 फीसदी हुआ है। लेकिन शिशु मृत्यु दर और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का मृत्यु दर वैश्विक औसत से कम रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

भारत ने वर्ष 2005 और 2015 के बीच पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 1 मिलियन बच्चों की मृत्यु को रोका है। भारत के कुछ राज्यों में यदि अच्छा प्रदर्शन किया होता तो यह तीन मिलियन बच्चों की मृत्यु को और रोक जा सकता था, जैसा कि सितंबर 2017 की रिपोर्ट में इंडियास्पेंड ने बताया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दस्तों का समय पर उपचार, टेटनस और खसरा के लिए टीके, और अस्पताल के जन्मों में वृद्धि के साथ हस्तक्षेप ने इस सुधार को सक्षम किया है।

भारत की अगली चुनौती बच्चे और नवजात मृत्यु दर पर 2030 सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करना है। इन लक्ष्यों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के तहत सहमति पर रखा गया था और बाल मृत्यु दर में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 25 और नवजात शिशु मृत्यु दर में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 12 का आंकड़ा शामिल हैं।

इसके लिए 2015 के बाद से बाल मृत्यु दर में 4.1 फीसदी और शिशु मृत्यु दर में 5.3 फीसदी की वार्षिक गिरावट की आवश्यकता होगी। भारत यह शिक्षा, जन्मपूर्व देखभाल और पोषण में सुधार, और मातृ अशक्तता और तम्बाकू उपयोग को कम करने के द्वारा इसे प्राप्त कर सकता है, जैसा कि पहले बताया गया है।

मेहतरों की संख्या की गिनती और मौतों के लिए जिम्मेदार ठेकेदारों को दंडित करने की योजना

हाथों से गंदगी और कूड़ा साफ करने के कारण 2017 में, हर महीने नौ लोगों की मौत हुई है। इसके साथ भारत ने इस तरह के प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के उल्लंघन में सीवर लाइनों को साफ करने वाले लोगों की आधिकारिक गणना करने का फैसला किया है।

वर्ष 2017 में, हाथों से सीवर लाइनों की सफाई करते समय 102 मजदूरों की मौत होने की सूचना मिली है। यह एक ऐसा कार्य है जिस पर एंप्लॉयमेंट ऑफ मैन्युअल स्केवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिन अधिनियम द्वारा 1993 में प्रतिबंध लगाया गया था।

2013 में प्रोहेबश्न ऑफ इंप्लॉयमेंट ऐज मैन्युअल स्केवेंजर्स एंड देअर रीअबिलटैशन अधिनियम के माध्यम से सफाई पर जुर्माना बढ़ा है।

21 मार्च, 2017 को, सफाई कर्मचारी आन्दोलन ने गृह मंत्रालय को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को अलग-अलग मौतों की गिनती करने के लिए लिखा है, जैसा कि न्यूज़क्लिक ने 28 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

आंदोलन एक समूह है जो दलितों को ( हिन्दू जाति के पदानुक्रम पर सबसे कम ) दूसरों की गंदगी साफ करने के अभ्यास के लिए मजबूर करता है।

स्वच्छता श्रमिकों को मैनुअल सफाई से बाहर निकलने में मदद करने के लिए 24 जनवरी, 1997 को सामाजिक न्याय मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल सफी कर्मचार्य फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन बनाया गया है। यह देखने के लिए कि इस कार्य में कितने लोग फंसे हैं, यह छह महीने में 15 प्रमुख राज्यों में सर्वेक्षण करेगा। यह सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत द्वारा 14 नवंबर, 2017 को तय किया था, जैसा कि Scroll.in ने 15 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

हाथों से शौचालयों को साफ करने के लिए मजबूर लोगों की संख्या स्पष्ट नहीं है।

करीब 180,000 लोग शौचालयों को हाथों से साफ करते हैं। 10 अक्टूबर, 2017 को ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 के बाद से 1,470 लोगों की मृत्यु हुई है, जैसा कि 2016 में रमन मैगसेसे पुरस्कार के विजेता सफाई कर्मचारी आंदोलन के बेजवाडा विल्सन ने दावा किया है।सामाजिक न्याय मंत्री गेहलोत द्वारा 14 नवंबर, 2017 को पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्यों का दावा है कि लगभग 13,000 हाथों से सफाई करने वाले कर्मचारी हैं, जिनमें से 270 की मृत्यु हुई है, जैसा कि Scroll.in की रिपोर्ट में बताया गया है।

27 मार्च, 2014 को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, यदि नाले की सफाई करते समय श्रमिक की मृत्यु हो जाती है तो राज्य सरकार को उनके परिवारों को 10 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता है। Scroll.in की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने ठेकेदारों और निजी व्यक्तियों को भी इस तरह के पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया है।

2 अक्तूबर, 2014 को शुरू की गई मोदी सरकार की स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छता कर्मचारियों के जीवन में बिना किसी सुधार के उन पर काम का बोझ बढ़ा दिया है, जैसा कि मुंबई के स्वच्छता श्रमिक संघ के महासचिव मिलिंद रानाडे ने 17 जून 2017 को इंडियास्पेंड को बताया है।

गोपनीयता के अधिकार पर फैसले से कई निजी स्वतंत्रता हो सकता है प्रभावित

एक ऐतिहासिक फैसले में, 24 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायिक संविधान पीठ ने भारतीय संविधान के तहत गोपनीयता के अधिकार पर फैसला सुनाया है। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस खेहार ने कहा, "गोपनीयता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के एक आंतरिक हिस्से के रूप में सुरक्षित है और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में सुरक्षित है"।

यह फैसला, सरकार की 12 अंकों वाले बॉयोमेट्रिक पहचान कार्यक्रम, आधार के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, जो कि सभी योजनाओं और सेवाओं से लाभ उठाने वाले लोगों के साथ जुड़ने का इरादा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 30 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अब तक आधार बिलों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शासन नहीं किया है। इस बीच, सरकार अनिवार्य रूप से बैंक खातों, मोबाइल सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़ना जारी रखती है। यह सुप्रीम कोर्ट के गोपनीयता के फैसले के अधिकार और एक अंतरिम आदेश के बावजूद है, जिसे पहले 2015 में जारी किया गया था, जिसके तहत आधार नामांकन स्वयंसेवी था।

मामले की हालिया सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च 2018 तक आधार जोड़ने के लिए समय सीमा तय की है, जैसा कि मिंट ने 16 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि अदालत के पहले के आदेश सरकार के कार्यकारी निर्णयों के आधार पर पारित किए गए थे, और अब 26 मार्च, 2016 को अधिसूचित आधार कानून के खिलाफ जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट 17 जनवरी, 2017 को कार्यक्रम की वैधता पर अंतिम बहस की सुनवाई शुरू करेगी।

नागरिक समाज के विभिन्न वर्गों ने गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर आधार कार्यक्रम का विरोध किया है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत प्राप्त व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग किया जा सकता है और भारतीय जनसंख्या के वंचित वर्गों को आधार नामांकन के बिना वंचित किया जा सकता है।

आधार कार्यक्रम के अलावा, गोपनीयता के फैसले का अधिकार यौन अभिविन्यास की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों पर, खाने का अधिकार, चिकित्सकीय तरीके से गर्भावस्था समाप्त करने का अधिकार, सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता और भौतिक और आभासी दुनिया में व्यक्तिगत जानकारी के प्रसार को नियंत्रित करने का अधिकार के भविष्य के निर्णयों को प्रभावित करने की संभावना है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 24 अगस्त, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

गोपनीयता के अधिकार की मौलिक प्रकृति की बहस में, संविधान पीठ ने पिछले मामलों के विभिन्न संदर्भों को भी संदर्भित किया है, जो टेलीफोन टेपिंग से लेकर एचआईवी स्थिति, खाद्य वरीयताओं और पशु वध, वैज्ञानिक जांच में वैज्ञानिक परीक्षण, विदेशी बैंक खातों के प्रकटीकरण, और ट्रांसजेंडर अधिकार शामिल थे।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 1 जनवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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