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पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत के तीन प्रमुख संचारी रोग – मलेरिया, टीबी और कुष्ट रोग – को नियंत्रित करने के लिए चलाए जा रहे योजनाओं पर खर्च में 7 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि कुल सामने आए मामलों में 32 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। यह डाटा, सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आए हैं।

मलेरिया के सिवाय, पिछले पांच वर्षों में संक्रामक रोगों की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। गौर हो कि मलेरिया की घटनाओं में 14 फीसदी की गिरावट हुई है। इस गिरावट का मुख्य कारण जागरुकता और परिचयन पर विशेष ध्यान देना है।

पिछले पांच वर्षों के दौरान, मामले सामने आने एवं बजट के बीच के एक संबंध पाया है। वित्त पोषण में वृद्धि होने से रोग के मामलों में गिरावट आई है।

फैलते संचारी रोग एवं इससे निपटने के लिए राशि

Source: Lok Sabha, 1 & 2

Allocation and release figures for malaria, dengue, chikunguniya and Japanese encephalitis are totals under National Vector-Borne Disease Control Programme.

केंद्र सरकार तीन रोग नियंत्रण कार्यक्रमों को राशि प्रदान करती है: राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी); संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी); और राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी)। इन कार्यक्रमों को, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत वित्त प्रदान किया जाता है जिसमें भी शिशु और मातृ – स्वास्थ्य, स्वास्थ्य अवसंरचना, रोकथाम, जल्दी पता लगाने, निदान और उपचार के लिए कार्यक्रम भी शामिल हैं। एकाउंटीब्लिटी इनिशिएटिव की फरवरी 2016 की इस रिपोर्ट के अनुसार 2012 से 2016 के बीच राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में 12 फीसदी की वृद्धि हुई है, यानि कि 17,188 करोड़ रुपए से बढ़ कर 19,307 करोड़ रुपए हुई है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य आवंटन (करोड़ रुपए में)

Source: Accountability Initiative

डॉलर के संदर्भ में, आवंटन 3.2 बिलियन डॉलर से गिरकर 2.9 बिलियन डॉलर हुआ है। विनिमय दर में वृद्धि हुई है, 2011-12 में, प्रति डॉलर 51 रुपए से बढ़ कर 2016-17 में प्रति डॉलर 65 रुपए हुआ है। पिछले पांच वर्षों के दौरान,डॉलर के लिए भारतीय पैसे के मूल्य में गिरावट हुई है।

भारत में संचारी रोग प्रोफ़ाइल

तीन प्रमुख कार्यक्रमों के लिए आवंटित राशि राशि में वृद्धि हुई है, जैसा कि हमने बताया है, एवं पिछले पांच वर्षों के दौरान 7.2 फीसदी की वृद्धि हुई है,वर्ष 2011-12 में 924 करोड़ रुपए से बढ़ कर 2015-16 में 991.5 करोड़ रुपए हुई है।

राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जापानी इन्सेफेलाइटिस जैसे रोग शामिल हैं। साथ ही यह कालाजार और फीलपाँव के उन्मूलन के लिए भी काम करता है। कार्यक्रम के लिए आवंटन में 3 फीसदी की गिरावट देखी गई है, 2011-12 में 482 करोड़ रुपए से गिरकर वर्ष 2015-16 में 463 करोड़ रुपए हुआ है।

लोकसभा में एक प्रश्न के लिए दिए गए

href="http://164.100.47.132/Annexture_New/lsq16/2/au1347.htm">उत्तर के अनुसार, मलेरिया के मामलों में 14 फीसदी की गिरावट हुई है जबकि डेंगू के मामलों में चार गुना से अधिक वृद्धि हुई है, चिकनगुनिया और जापानी इन्सेफेलाइटिस के मामलों में 33 फीसदी की वृद्धि हुई है।

वर्ष 2011 और 2016 के बीच, तपेदिक नियंत्रण बजट में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि इसी अवधि के

दौरान रिपोर्ट किए गए मामले दोगुने हुए हैं।

हालांकि कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के लिए राशि में 16 फीसदी की गिरावट हुई है जबकि राष्ट्रव्यापी कुष्ठ रोग के मामलों में 36 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।

संक्रामक रोगों में वृद्धि के लिए जागरुकता की कमी एवं चिकित्सा और उपचार की पहुंच सहित कई अन्य कारण हो सकते हैं।

पिछले पांच वर्षों के दौरान, तीन मुख्य कार्यक्रमों - राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी); संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी); और राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी) - के तहत राज्यों को केंद्र की ओर से प्रदान की गई वित्त में गिरावट हुई है; वर्ष 2011-12 में 947 करोड़ रुपए से गिर कर 2015-16 में 395 करोड़ रुपए हुआ है।

वर्षों में 2011-12 और 2014-15 में, कार्यक्रमों के लिए आवंटित राशि से अधिक जारी किया गया था।

वर्ष 2012-13 में, राज्यों को वेक्टर जनित रोगों और कुष्ठ रोग के लिए बजट निधियों में से केवल आधा ही प्राप्त हुआ था।

(सालवे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 25 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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