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वर्ष 2015 में बने खनिज क्षेत्र कल्याण योजना कानून के तहत खनन कंपनियों से लिए गए 90 करोड़ डॉलर की एक महत्वाकांक्षी योजना स्थानीय सरकार ने बनाई है। इसमें पाइप पानी की आपूर्ति से लेकर स्टेडियमों और हॉस्टल के निर्माण की रूपरेखा तैयार की गई है।

लेकिन इन जिलों में रहने वाले लोगों को इस कल्याण कार्यक्रम में सरीक नहीं किया गया है कि यह राशि कहां खर्च की जाएगी। यह जानकारी पर्यावरण अनुसंधान संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट’ (सीएसई) द्वारा एक विश्लेषण में सामने आई है।

वर्ष 2015 में एक कानून पारित किया गया था कि अगर खदान 2015 के बाद पट्टे पर रहता है तो खनन कंपनी को रॉयल्टी के 10 फीसदी के बराबर राशि का भुगतान करना होगा। यही नहीं, रॉयल्टी का 30 फीसदी तब देना होगा अगर यह 2015 से पहले को पट्टे पर दिया गया है। राशि ‘जिला खनिज प्रतिष्ठान ’ (डीएमएफ) को दी जाएगी।

‘जिला खनिज प्रतिष्ठान’ अन्य संगठनों की भागीदारी के साथ-साथ सरकार के अधिकारियों द्वारा राज्य के कानून के अनुसार संचालित एक गैर लाभकारी संस्था है। यह ट्रस्ट राशि का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्र और उन लोगों के लिए, जिनका खनन होने वाले भूमि पर व्यावसायिक, कानूनी या पारंपरिक अधिकार हैं, विकास के लिए काम करता है।

डीएमएफ का गठन ‘महत्वपूर्ण पहल’ है, जिसने पहली बार इस बात का अहसास कराया कि खनन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भी प्राकृतिक संसाधनों से लाभ पाने का अधिकार है। सीएसई के उप महानिदेशक चंद्र भूषण कहते हैं कि, " इस कदम की सफलता अब लोगों की भागीदारी और उनकी प्रासंगिकता में निहित है।" प्रत्येक राज्य डीएमएफ कानून को अपने हिसाब से रूपांतरित कर सकता है।

देश के कुछ सबसे गरीब जिलों के लिए अतिरिक्त धन जरूरी

सीएसई द्वारा एकत्र आंकड़ों के मुताबिक फरवरी, 2017 तक भारत के 11 राज्यों में स्थापित 50 डीएमएफ ने 5,800 करोड़ रुपए या करीब 900 मिलियन डॉलर एकत्र किए थे।

उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के सभी जिलों में अभी तक डीएमएफ स्थापित नहीं किए जाने के कारण कुल राशि अधिक होने की संभावना है। हालांकि कुछ जिलों जैसे आंध्र प्रदेश के गुंटूर ने फरवरी, 2017 तक अनुमानित आंकड़ों से काफी कम हासिल किया था।

झारखंड में चतरा जैसे खनन जिलों में इस पैसे के महत्व को रेखांकित करते हुए, भूषण कहते हैं, “ये वन, नदियों और खनिजों जैसे संसाधनों के मामले में सबसे अमीर क्षेत्रों में से हैं, लेकिन अभी भी लोगों की आय और विकास परिणामों के संदर्भ में कुछ सबसे गरीब हैं ।”

हम बता दें कि इस जिले में पांच साल से कम उम्र के लगभग 50 फीसदी बच्चे स्टंड हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत औसत 38.4 है। या फिर ओडिशा में अनगुल जिले पर नजर डालें तो यहां वर्ष 2012-2013 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर शिशु मृत्यु दर 48 फीसदी की थी, जबकि इस संबंध में वर्ष 2013 में राष्ट्रीय औसत 42 दर्ज है।

तीन खनन राज्य, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड ने डीएमएफ के कुल पैसे का 69.5 फीसदी एकत्र किया है। सीएसई के विश्लेषण में पाया गया कि ओडिशा ने सबसे अधिक लगभग 1,932.5 करोड़ रुपए इकट्ठा किए हैं।

नीचे दी गई टेबल डीएमएफ द्वारा एकत्र की गई कुल राशि,परियोजनाओं के लिए डीएमएफ द्वारा स्वीकृत की गई कुल राशि और सीएसई द्वारा गणना की गई प्रत्येक वर्ष डीएमएफ को मिलने वाली अनुमानित राशि दिखाती है (विभिन्न राज्यों की जानकारी देखने के लिए ड्रॉपडाउन मेनू से एक विकल्प चुनें)।

50 जिलों में डीएमएफ द्वारा एकत्रित 5,800 करोड़ रुपए

Source: Centre for Science and Environment

डीएमएफ की अध्यक्षता जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है और एक शासी परिषद और और एक प्रबंध समिति द्वारा चलाया जाता है। हम बता दें कि प्रबंध समिति सदस्य के रूप में राज्य सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से विभिन्न सरकारी विभागों के नौकरशाह शामिल होते हैं, जबकि शासी परिषद् में सरकारी नौकरशाह, निर्वाचित प्रतिनिधि और कुछ राज्यों में उद्योग प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

लेकिन डीएमएफ के प्रबंधन में लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी बहुत कम है और यह स्पष्ट नहीं है कि क्या लोगों को यह तय करने का अधिकार है कि एक जिला किस परियोजना पर और कहां काम करेगा ?

अलग-अलग जिले में विकास परियोजनाओं की प्राथमिकताएं अलग-अलग

कानून के तहत डीएमएफ को उच्च प्राथमिकता वाले परियोजनाओं पर कम से कम 60 फीसदी धनराशि खर्च करना आवश्यक है। जैसे पीने का पानी, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, महिलाओं और बच्चों के कल्याण, वृद्ध और विकलांग, कौशल विकास और स्वच्छता। भौतिक बुनियादी ढांचे, सिंचाई, ऊर्जा और वाटरशेड विकास के लिए 40 फीसदी धनराशि का उपयोग किया जा सकता है।परियोजनाएं अन्य सरकारी विभागों को भी दी जा सकती हैं या किसी निजी कंपनी को अनुबंधित किया जा सकता है।अभी तक, परियोजनाएं शुरू होना बाकी है, लेकिन कई राज्यों ने विभिन्न विकास उद्देश्यों के लिए बजट तय कर दिया है, और जिस तरह से जिलों ने पैसा आवंटित किया है, उसमें बहुत अंतर है।

सीएसई रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में सिंगरौली के कोयला खनन जिले में जहां 01 फीसदी से कम आबादी को उपचारित पीने का पानी प्राप्त होता है, वहां जनसंख्या को सुरक्षित पेयजल प्रदान करने के लिए जिला ने डीएमएफ के बजट का केवल 0.9 फीसदी आवंटित किया है। यह राशि ज्यादातर ट्यूब कुओं खुदाई के लिए है, जबकि इस क्षेत्र में उच्च प्रदूषण है।

इसकी तुलना में ओड़िशा का कोयला समृद्ध जिला झारसुगडा , जहां खनन प्रभावित क्षेत्र में शहरी इलाकों में भी शामिल है, डीएमएफ के बजट का 36.1 फीसदी पेयजल आपूर्ति में सुधार के लिए आवंटित किया गया है। साथ ही आवंटित धन का 91.3 फीसदी नगर पालिकाओं को, हैंड पंप और ट्यूब कुओं के लिए4.5 फीसद पाइप पानी की आपूर्ति के लिए 2.3 फीसदी और रिवर्स ऑस्मोसिस जल शोधन प्रणाली के लिए 1.8 फीसदी दिया गया है।

इसी तरह कौशल विकास और आजीविका की श्रेणी के तहत छत्तीसगढ़ में कोयला से भरपूर कोरबा में डीएमएफ फंड का 0.7 फीसदी हिस्सा कॉलेज के लिए एक छात्रावास बनाने एवं और वन प्रबंधन समूहों के प्रशिक्षण के लिए आवंटित किया गया है।

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में, जहां पर्याप्त कोयला है, बजट का 11.2 फीसदी कौशल विकास के लिए आवंटित किया गया है। साथ ही मोटर ड्राइविंग स्कूल के निर्माण के लिए 92 फीसदी और कौशल विकास केंद्र के निर्माण के लिए 8 फीसदी दिया गया है।

जिले कैसे खर्च कर रहे हैं राशि

Source: Centre for Science and Environment

रिपोर्ट के अनुसार, सीएसई द्वारा विश्लेषण किए गए चार राज्यों के 9 जिलों में पाया गया कि महिलाओं , बाल कल्याण और कुपोषण पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। जबकि इनमें से अधिकांश जिलों में उच्च शिशु और बाल मृत्यु दर और उच्च स्तर के स्टंटिंग शामिल हैं।

जमीनी स्तर पर लोगों की अधिक भागीदारी की आवश्यकता

जिला विकास निधि का उपयोग विभिन्न प्रकार के विकास परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है। बजट आवंटन के विपरीत, जो वित्तीय वर्ष के अंत में समाप्त हो जाते हैं, डीएमएफ एक निरंतर फंड है। इस प्रकार, जिला और उसके लोगों की प्राथमिकताओं के आधार पर धन का उपयोग करने की अनुमति है।

भूषण कहते हैं, “डीएमएफ आपको विकास के बारे में सोचने की आजादी देता है। अगर किसी जिले में कम गुणवत्ता वाले प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र होते हैं और स्वास्थ्य बजट कम हो रहा है, तो डीएमएफ का पैसा इन स्वास्थ्य केंद्रों की गुणवत्ता में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।” डीएमएप निधि का 5 फीसदी से अधिक डीएमएफ के लिए प्रशासनिक लागत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

इसके अलावा, एक ट्रस्ट के रूप में डीएमएफ को पंजीकृत करना उसके सदस्यों को नियमों का पालन करने या आपराधिक आरोपों का सामना करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य करता है। अगर एक खनन कंपनी तीन बार डीएमएफ का भुगतान करने में विफल रहता है, तो उनके पट्टे को निलंबित किया जा सकता है।

भूषण कहते हैं, "लोगों को कार्यक्रम के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, और निधि में राशि और इसके विकास की भूमिका से अवगत कराया जाना चाहिए।"

सीएसई रिपोर्ट सुझाव देती है कि डीएमएफ को ग्राम सभाओं (ग्राम परिषदों) के साथ लाभार्थियों की पहचान, विक्रय डीएमएफ योजनाओं के विकास और कार्य की निगरानी में विकेन्द्रीकृत होना चाहिए।लोगों की भागीदारी परियोजनाओं की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है। साथ ही लोगों की भागीदारी सही समय पर परियोजना पूरी होने की संभावना को भी बढ़ाती है।

(शाह रिपोर्टर / लेखक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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