oxfam620

वर्ष 2015 में केवल 62 लोगों के पास दुनिया के 3.5 बिलियन लोगों के बराबर संपत्ति है। यह खुलासा ऑक्सफेम , एक वैश्विक संस्था द्वारा जारी की गई नए रिपोर्ट, एन इकोनोमी फॉर 1 % में सामने आई है।

वर्ष 2010 से अमीर और गरीब लोगों की बीच खाई बढ़ती गई है। गौर हो कि 2010 में यह आंकड़े 388 दर्ज किए गए थे। वर्ष 2010 से 62 अमीर लोगों की संपत्ति में 44 फीसदी की वृद्धि हुई है। यदि आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह 542 बिलियन डॉलर (24,66,100 करोड़ रुपए) से बढ़ कर 1.76 ट्रिलियन (1,07,36,000 करोड़ रुपए) हुए हैं जोकि 2014 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 86 फीसदी (2.05 ट्रिलियन डॉलर) है।

इसी अवधि के दौरान, निम्न आधी आबादी के धन में ट्रिलियन डॉलर, करीब 41 फीसदी की गिरावट हुई है।

यह परिदृश्य एक पुरानी कहावत की याद दिलाती हैं जो कि आमतौर पर पूंजीवाद की समाजवादी आलोचना के लिए इस्तेमाल किया जाता है - “अमीर और अमीर होते हैं और गरीब और गरीब होते हैं।”

ऑक्सफम रिपोर्ट कहती है कि, “1990 से 2010 के बीच यदि देश में असमानता नहीं होती तो करीब 200 मिलियन लोग गरीब होने से बच सकते थे। आर्थिक विकास से अमीरों की तुलना में 700 मिलियन गरीब अधिक लाभावांतित हो सकते थे।”

प्रत्येक दशमक के लिए एकत्रित वैश्विक आय, 1988-2011

Global Income Accruing To Each Decile, 1988–2011

graph1_oxfam

Source: Oxfam; Figures in $ billion

सबसे अमीर एवं सबसे गरीब की संपत्ति

Wealth Of The Richest And Poorest

graph2_oxfam

Source: Oxfam; Figures in $ billion

रिपोर्ट के मुताबिक, “इस तथ्य से दूर नहीं भागा जा सकता कि हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े विजेता उंचे स्थान पर हैं।” 21 सदी के शुरुआत के बाद से दुनिया की आबादी के सबसे गरीब तबके के आधे हिस्से को वैश्विक धन के कुल वृद्धि का 1 फीसदी प्राप्त हुआ है, जबकि इस वृद्धि का आधा हिस्सा टॉप 1 फीसदी के खाते में गया है।

चीन में 1 फीसदी अमीर लोग कुल सपंत्ति के एक तिहाई हिस्सा का स्वामित्व करते हैं जबकि 25 फीसदी गरीब लोगों के हिस्से में 1 फीसदी संपत्ति है। यह निष्कर्ष पीकिंग विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संस्थान द्वारा की गई एक अध्ययन में सामने आया है।

ऑक्सफेम रिपोर्ट कहती है कि “हमारी आर्थिक प्रणाली मुख्य रुप से अमीरों के पक्ष में है और तेजी से उसी पक्ष में जा रही है। कमी आना तो दूर की बात है, इसके उलट कमाई और संपत्ति बेहद खतरनाक गति से बढ़ी है। पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़े टैक्स हेवेन्स और वेल्थ मैनेजर्स की पूरी फौज ने ऐसी व्यवस्था बना दी है कि एक बार कमाई और संपत्ति बढ़ी तो फिर यह इसे घटने नहीं देते और वो यह भी तय कर देते हैं कि उनकी संपत्ति आम लोगों और उनकी सरकार की पहुंच से दूर रहे।”

टैक्स हेवेन्स तक किस प्रकार जाती है संपत्ति

200 कंपनियों पर किए गए विश्लेषण के अनुसार, दस में नौ कंपनियां कम से कम एक टैक्स हेवेन पर आधारित है। ऑक्सफेम के विश्लेषण के मुताबिक 2001 की तुलना में 2014 में टैक्स हेवेन्स का कॉर्पोरेट निवेश चार गुना अधिक है।

हाल ही में एक अनुमान किया गया है कि व्यक्तिगत संपत्ति का 7.6 ट्रिलियन डॉलर - ब्रिटेन और जर्मनी के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में अधिक - वर्तमान में अपतटीय आयोजित किया जाता है।

इसी तरह, अफ्रीका की अमीर लोगों का करीब 30 फीसदी (500 बिलियन डॉलर) धन अपतटीय आयोजित किया जाता है, जिससे कि अफ्रीकी देशों को करीब 14 बिलियन डॉलर का कर – राजस्व का नुकसान नुकसान होता है।

लिंग वेतन अंतर भी काफी स्पष्ट है – दुनिया के सबसे अमीर 62 लोगों में 52 पुरुष हैं। रिपोर्ट कहती है कि महिलाएं, दुनिया में कम वेतन पाने वाले श्रमिकों का बहुमत बनाती हैं, जो अनिश्चित नौकरियों में केंद्रित है।

भारत में सीईओ का वेतन सबसे अधिक

ऑक्सफेम रिपोर्ट कहती है कि भारत के टॉप सूचना प्रौद्योगिकी फर्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का वेतन कंपनी के आम कर्मचारी की तुलना में 416 गुना अधिक होता है।

प्राइसवाटरहाउस कूपर्स, एक संस्था, की इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय कानून निर्माताओं ने 2013 में एक प्रकटीकरण जनादेश पारित किया है जिसके अनुसार सीईओ का वेतन अनुपात सार्वजनिक करना आवश्यक है। भारत के शेयर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (एसईबीआई), अब इस तरह के डेटा का पहला सेट जारी कर रही है। यह बात ऑक्सफेम रिपोर्ट में कही गई है।

क्वार्ट्ज, एक पोर्टल, की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए ऑक्सफेम की विश्लेषण कहती है कि, उद्हारण के तौर पर आईटीसी, देश की सबसे बड़ी सिगरेट निर्माता, के टॉप कर्मचारियों का वेतन, कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों की औसत वेतन से 439 गुना अधिक होता है।

भारत में घोषित 1 करोड़ रुपये से अधिक की आय वाले लोगों की संख्या 42,800 है; जैसा कि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने 2013-14 के बजट भाषण में उल्लेख किया है कि यह 35 मिलियन भारतीय करदाताओं का 0.1 फीसदी है। इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है कि भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 172 मिलियन है; हमने यह भी बताया है कि किस प्रकार भारत में संपत्ति बढ़ रही है लेकिन इसी समय में असमानता भी बढ़ रही है।

किस प्रकार बनाया गया फार्मा उद्योग – दुनिया के सबसे लाभदायक उद्योगों में से एक

औषधीय क्षेत्र, दुनिया के सबसे लाभदायक उद्योगों में से एक, मजबूती के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) की रक्षा करते हैं, जिसने 90 अरबपतियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।

रिपोर्ट बताती है कि किस प्रकार आईपीआर सम्मानित कराने के लिए अमरिका में दवा कंपनियां अपनी ही सरकार पर दवाब बनाती हैं और इसके माध्यम से भारतीय सरकार एवं भारतीय दवा कंपनियों पर भी दवाब बनता है। उद्हारण के लिए 2014 में वाशिंगटन में दवा कंपनियों ने प्रचार (लाबी) के लिए 228 मिलियन डॉलर खर्च किया है।

भारत में, रोगी समूहों, नागरिक समाज संगठनों और सरकार ने सस्ते दवाओं तक पहुंच के लिए फार्मा दिग्गजों को चुनौती दी है।

उद्हारण के लिए रोगी दबाव समूह दावा करती है कि भारत ने ऑनब्रेज़ (इंडाकेट्रॉल)का आयात बहुत कम मात्रा में किया है। यह एक दवा है जिसका अधिकार स्विस बहुराष्ट्रीय नोवार्टिस के स्वामित्व में हैं, एक इस दवा से कम से कम 30 मिलियन फेफरों से पीड़ित भारतीयों को मदद मिल सकती है।

मांग की पूर्ति के लिए, मुंबई में स्थित एक भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी, सिप्ला , ने ऑनब्रेज़ का अपना संस्करण निर्माण शुरू किया है और मूल कीमत के अंश पर बेच रही है।

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 18 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org. पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

_________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :