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डूबे हुए पैसे को पाने के लिए और लगाइए पूंजी

रत्नागिरी गैस एंड पॉवर प्रोजेक्ट लिमिटेड (आरजीपीएल) जिसे दाभोल पॉवर प्रोजेक्ट के रुप में भी जाना जाता है। करीब 22 साल पुराने इस प्रोजेक्ट के लिए बैंकों ने आजकल डूबे हुए पैसे को पाने के लिए और पूंजी लगाने का मंत्र अपना लिया है। दाभोल प्रोजेक्ट को अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनी एनरॉन ने बनाया था, जो अब पूरी तरह से बेकार है। मुंबई से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोंकण के तटीय इलाके पर प्रोजेक्ट प्राकृतिक गैस पर आधारित है। जिससे 1967 मेगावॉट बिजली की उत्पादन क्षमता है। इसके जरिए ऐसा माना गया था कि भारत की 3 फीसदी बिजली की मांग को पूरा किया जा सकेगा। लेकिन आज कर्ज में डूबे इस प्रोजेक्ट ने पूरे बैंकिंग सिस्टम को हिला कर रख दिया है। अप्रैल 2014 से बंद पड़े रत्नागिरी गैस एंड पॉवर प्रोजेक्ट लिमिटेड (आरजीपीएल) के ऊपर 8500 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। कर्ज की यह राशि डिफॉल्टर हो चुकी किंगफिशर एयरलाइंस पर बकाया 6500 करोड़ रुपये के कर्ज से भी ज्यादा है। अगर रत्नागिरी गैस एंड पॉवर प्रोजेक्ट लिमिटेड (आरजीपीएल) की समस्या को कई हल जल्द नहीं निकलता है, तो यह सीधे तौर पर बैंकों के एनपीए को और बढ़ाएगा, साथ ही सेंटीमेंट भी खराब करेगा। सितंबर 2014 तक बैंकों का डूबा कर्ज 2.68लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।

चार्ट—भारतीय बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियां (करोड़ रुपये )

Source: Lok Sabha

बैंकों का जो भारी मात्रा में कर्ज बकाया है उसमें बड़ी हिस्सेदारी सरकारी बैंकों की है। जिसका सीधा सा मतलब है कि अगर बैंकों का कर्ज डूबता है, तो उसका असर आम करदाताओं पर पड़ेगा। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और केनरा बैंक प्रोजेक्ट के एलएनजी टर्मिनल को रिवाइव करने के लिए 1200 करोड़ रुपये की पूंजी देने का प्रस्ताव दे चुके हैं। हालांकि प्रमोटर्स इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है। अखबार की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार प्रमोटर्स का मानना है कि इस प्रस्ताव से उनके ऊपर कर्ज और दबाव बड़ जाएगा, जिससे केवल बैंकों को ही फायदा होने वाला है। ऐसे में प्लांट को दोबारा शुरू करने की संभावना बहुत कम है। भारत में पैदा होने वाले प्राकृतिक गैस के जरिए रत्नागिरी गैस औऱ पॉवर प्रोजेक्ट को ईंधन की आपूर्ति करना संभव नहीं है। गैस आधारित केवल यही प्रोजेक्ट नही है, जो प्रभावित हो रहा है। भारत में इस समय 50 गैस आधारित पावर प्लांट है, जिनकी उत्पादन क्षमता 22553 मेगावॉट है। जो कि देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 10 फीसदी हैं। यह सभी प्लांट कम ईंधन की वजह से अपनी क्षमता का कुल मिलाकर एक तिहाई से भी कम इस्तेमाल कर पा रहे हैं।

आंकड़ों के मुताबिक एक मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता पर करीब 3.5 करोड़ रुपये का कर्ज है। जो कि कुल मिलाकर करीब 78000 करोड़ रुपये का कर्ज है। बैंकों का यह पूरा कर्ज डूबने के कगार पर है। कुल क्षमता का करीब 33 फीसदी निजी क्षेत्र की कंपनियां टॉरेंट पॉवर, जीवीके और जीएमआर के पास है। जो पहले से ही भारी कर्ज में डूबी हुई है। इसमें से कई तो वित्तीय रुप से खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है। इसमें से अगर कोई भी कर्ज एनपीए होता है, तो उसका सीधा असर पहले ही दबाव में आ चुके बैंकिंग सेक्टर पर पड़ेगा। यह प्लांट जितने समय तक बेकार रहेंगे, उन पर जोखिम उतना भी बढ़ता जाएगा। प्राकृतिक गैस , कोयले की तुलना में कम प्रदूषण करती है। ऐसे में गैस आधारित प्लांट भारत के कार्बन क्रेडिट को भी बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा संभव होना बहुत मुश्किल लग रहा है। भारत प्राकृतिक गैस के लिक्विड रुप में आयात कर इन प्लांट को ईंधन प्रदान कर सकता है। हालांकि एलएनजी की कीमत देश में पैदा होने वाले प्राकृतिक गैस से कहीं ज्यादा है। एलएनजी से पैदा होने वाली बिजली काफी महंगी होती है। जिसकी लागत प्रति यूनिट करीब 8.4 रुपये से लेकर 10.67 रुपये तक होती है।

टेबल—बिजली उत्पादन के लिए ईंधन के आधार पर लागत

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Source: Lok Sabha

टेबल—भारत में ईंधन के आधार पर बिजली उत्पादन क्षमता

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Source: Central Electricity Authority, Installed capacity as of Nov. 2014

दाभोल की लेकर असमंजस

महाराष्ट्र सरकार द्वारा महंगी बिजली खरीदने के वादे के साथ दाभोल प्रोजेक्ट का निर्माण साल 1992 में किया गया था। जिसमें यह शामिल किया गया था, कि बिजली का इस्तेमाल किया जाए या नहीं उसे खऱीदा जाएगा। इसके अलावा राज्य द्वारा कर्ज डिफॉल्ट करने पर केंद्र सरकार उसकी गारंटर बनी थी। द न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार यह समझौता गुप्त रुप से किया गयाथा। ऐसा इसलिए था कि कंपनी और राजनेता इसे जल्द से जल्द निपटाना चाहते थे। समझौते में यह भी शामिल था कि कंपनी को डॉलर के आधार पर गारंटी मिलेगी। ऐसे समय में जब भारत डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर कर रहा था, तो उसे बिजली और महंगी मिलेगी। इस लागत को प्रासंगिक बनाने के लिए जरूरी था राज्य सरकार उपभोक्ताओं को मिलने वाली बिजली दरों को बढ़ाए, साथ ही बिजली की चोरी को भी रोके। हालांकि इन दोनों कामों में से कोई भी पूरा नहीं हुआ। महाराष्ट्र सरकार एनरॉन को प्रतियूनिट 4.67 रुपये का भुगतान कर रही थी। जबकि उपभोक्ताओं से वह 1.89 रुपये प्रति यूनिट शुल्क ले रही थी। साल 2002 में एनरॉन इस प्रोजेक्ट से हट गई । यहीं नहीं उसके तीन साल बाद रत्नागिरी पॉवर एंड गैस ने सरकारी उपक्रम एनटीपीसी , गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर प्लांट को दोबारा शुरू किया । जब तक प्लांट बेकार रहेगा, उस समय तक न तो उसे कोई कमाई होगी और न ही वह अपने कर्ज चुका पाएगा। बैंक अभी तक कुछ लोन अपना वसूल पाएं है। जिसे देखते हुए एलएनजी टर्मिनल को दोबारा शुरू करने और उसके विस्तार करने की जरूरत है।

दोभाल एनएलजी टर्मिनल क्या कर सकते हैं

बिजली उत्पादन के लिए एलएनजी ईंधन का इस्तेमाल करना बहुत महंगा होता है। ऐसे में यह ऑटोमोबाइल और दूसरी इंडस्ट्री में इस्तेमाल हो सकती है। उदाहरण के तौर में दिल्ली और मुंबई में सीएनजी से चलने वाले वाहनों की भारी तादाद है। जो कि प्राकृतिक गैस का ईंधन के रुप में इस्तेमाल होने का एक और तरीका है। जो कि पेट्रोल और डीजल से सस्ती औऱ कम प्रदूषण उत्पन्न करने वाली है। सरकार अब इसे हैदराबाद और पुणे में इस्तेमाल करने की सोच रही है। साथ ही आयात भी बढ़ा रही है। भारत पहले से ही 1 करोड़ टन एलएनजी का आयात कर रहा है। भारत में दुनिया की कुल एलएनजी खपत का 10 फीसदी खपत है। जिसे देखते हुए आयात तेजी से बढ़ने की संभावना है। रत्नागिरी गैस और पॉवर जो कि सह प्रमोटर है, उसके अलावा गेल, जो कि गैस पाइप लाइन बनाती है। साथ ही प्राकृतिक गैस का मार्केट करती है। दोनो कंपनियों ने एक समझौता रुस और अमेरिकी कंपनियों के साथ समझौता किया है। जिसके जरिए भारत में 80 लाख टन एनएलजी का अतिरिक्त आयात किया जाएगा। इस गैस को लाने के लिए शिपिंग टर्मिनल की जरूरत पड़ेगी। जैसा कि एक दाभोल में है। भारत के पास इस समय 4 टर्मिनल हैं। साथ ही एक और बनाने की योजना है। ऐसे में स्पष्ट है कि एलएनजी टर्मिनल के इंफ्रास्टक्चर की मांग है।

चार्ट—भारत में स्थित एलएनजी टर्मिनल की सालाना क्षमता

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Source: Chemtech Online

पेट्रोनेट एलएनजी देश की पहली लिस्टेड कंपनी है जिसके पास एनएलजी आयात का सेट अप है। पेट्रोनेट गुजरात के दाहेज और केरल के कोच्चि में दो एलएनजी टर्मिनल ऑपरेट करती है। जिनकी कुल मिलाकर सालाना क्षमता 1.5 करोड़ टन है। पेट्रोनेट एलएनजी के आधार पर दाभोल एलएनजी टर्मिनल करीब 6337 करोड़ रुपये का है। जो कि रत्नागिरी पॉवर औऱ गैस के कुल बैंकों के कर्ज का 75 फीसदी के बराबर है। पेट्रोनेट एलएनजी के मूल्य का 10 फीसदी अगर डिसकाउंट भी माना जाय, तो भी 60 फीसदी राशि अभी भी रिकवर की जा सकती है।

चार्ट- दाभोल एलएनजी टर्मिनल का मूल्यांकन

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All figures in Rs crore except LNG terminal physical capacity

जिस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है, उसे देखते हुए बैंकों का फंसा कर्ज जल्द ही रिकवर होना मुश्किल है। ऐसे में ज्यादा पूंजी वाले रत्नागिरी गैस और पॉवर वाले प्रोजेक्ट को जल्द सुलझा कर कम से कम में कर्ज को कम तो किया जा सकता है। जिससे कुछ हद तक समस्या का निदान हो सकता है।

चित्र- फ्लिकर/ अंकुर पी

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