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नई दिल्ली: 13 वर्ष की भुवेका थरेजा को दो शहरों में 4 डॉक्टरों के पास 90 दिन सिर्फ यह जानने में लग गए कि वो तापेदिक यानी टीबी से पीड़ित है।

भुवेका की कहानी 2015 के दिसंबर में बुखार से शुरु होती है। डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयां दी। भुवेका का बुखार चला गया। लेकिन 2016 के जनवरी में बुखार फिर से आने लगा। डॉक्टर ने छाती का एक्स-रे कराने के लिए कहा। लेकिन एक्स-रे से कुछ पता नहीं चल पाया।

एक बार फिर दवाओं से बुखार कम हो गया। बुखार, दवा और टेस्ट का यह चक्र मार्च, 2016 तक जारी रहा। इस समय तक भुवेका को लगातार खांसी रहने लगी। और फिर दिल्ली के एक अस्पताल में डॉक्टर ने सीटी स्कैन की सिफारिश की।

सीटी स्कैन के बाद डॉक्टरों को लगा कि भुवेका को टीबी है। इंडियास्पेंड से बात करते हुए भुविका की 43 वर्षीय मां ज्योति थारेजा ने बताया कि उनकी कठिनाइयों लगातार बढ़ती जा रही थीं।

ज्योति बताती हैं, "यह सब परिवार के लिए एक दुःस्वप्न की तरह था। हमारा बच्चा हमारी आंखों के सामने से गायब हो रहा था। हमें बताया गया था कि उसकी दवा की हर खुराक बेहद महत्वपूर्ण है। एक भी खुराक छूटनी नहीं चाहिए। दवाई के लिए हम उस पर चिल्लाते थे । कभी-कभी उस पर हाथ भी उठाते थे। लेकिन फिर भी उसका स्वास्थ्य बिगड़ता गया। "

मई, 2016 में डॉक्टरों का एहसास हुआ कि भुवेका को मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी टीबी है, जो कम से कम दो टीबी विरोधी टीबी दवाओं के लिए अभेद्य है। टीबी के पहले लक्षणों के छह महीने बाद जुलाई, 2016 में मुंबई में एक डॉक्टर ने दवाओं के सही संयोजन का पता लगाया, जिससे सही इलाज किया जा सकता था।

ऐसे अनुभव असामान्य नहीं हैं। ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ लंग्स एंड ट्यूबरकुलोसिस डिजिज ’ में मई, 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, रोगी के स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के पास आने के बाद दवा-संवेदनशील बाल टीबी मरीजों के लिए नियमित रूप से उपचार शुरू करने के लिए दिल्ली के स्वास्थ्य प्रणाली में 41 दिनों का औसत वक्त लगता है। अध्ययन में पाया गया कि, बाल टीबी रोगियों के परिवार को एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक पहुंचने में औसतन तीन दिनों का समय लगा है।

स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक पहुंचने में देरी एक दिन से 300 दिन तक होती हैं, जबकि स्वास्थ्य प्रदाता के लिए पहली यात्रा और टीबी के इलाज की शुरुआत होने के बीच 10 से 397 दिनों का समय लगता है। हम बता दें कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में योग्य विशेषज्ञ, प्राथमिक चिकित्सक, निजी चिकित्सक, पारंपरिक चिकित्सक और स्व-दवाएं शामिल हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि, "एक बार रोगी आरएनटीसीपी (सरकार के संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम) पर पहुंच गया तो उपचार अधिकतम 7 दिनों के भीतर शुरू कर दिया गया था।"

रोगी और बच्चों में टीबी के इलाज की शुरूआत में स्वास्थ्य प्रणाली में देरी पर निष्कर्ष दिल्ली के 52 डायरेक्ट ऑब्लेज़ेड थेरेपी शॉर्ट कोर्स सेंटर पर आधारित हैं।

इनमें से ज्यादातर सरकारी सुविधाएं (81.1 फीसदी) थीं। कुछ गैर-सरकारी संगठनों (13.7 फीसदी) द्वारा चलाए जा रहे थे और कुछ ही सामुदायिक स्वयंसेवकों और निजी प्रैक्टिशनर के थे। मरीजों की उम्र 0 से 14 साल के बीच थीं।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक सौम्या स्वामीनाथन ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि यदि बच्चों में टीबी का निदान करने में देरी होती है तो ‘बीमारी’ फैल सकती है और नुकसान ज्यादा हो सकता है, खासकर अगर यह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है तो फिर दिमाग को नुकसान पहुंचा देती है।"

स्वामीनाथन कहती हैं, “हालांकि बचपन में होने वाली अधिकांश टीबी संक्रामक नहीं है। लगभग 20 फीसदी मामलों में संक्रामक हो सकता है, और निदान में देरी से स्कूल और परिवार में अन्य बच्चों को खतरा हो सकता है।”

टीबी एक संक्रामक वातानीत रोग है, जिसका अगर इलाज नहीं किया जाए तो मृत्यु भी हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और आरएनटीसीपी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल टीबी के 28 लाख नए मामले सामने आते हैं। इनमें से कम से कम 5 फीसदी मामले बच्चों के बीच के होते हैं।

वर्ष 2015 के एक अध्ययन के मुताबिक, “टीबी से पीड़ित बच्चों में से एक बड़ी संख्या का भारत के निजी क्षेत्र द्वारा निदान और प्रबंधन किया जाता है । इससे सरकार के साथ सभी टीबी मरीज पंजीकृत नहीं हो पाते और सही संख्या पता नहीं चल पाती।”

अगस्त, 2014 के लैनसेट अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2010 में, भारत सहित 22 उच्च बोझ वाले देशों में 15 साल से कम उम्र के लगभग 7.6 मिलियन बच्चों को एम टीबी है और लगभग 650,000 विकसित टीबी से संक्रमित हैं। अध्ययन का अनुमान है कि इनमें से, 27 फीसदी बाल टीबी मरीज भारत में है।

भारत में सरकार के साथ पंजीकृत बाल टीबी के मामले

(राज्य में सभी तपेदिक रोगियों का प्रतिशत )

Source: Revised National Tuberculosis Control Program, Annual Status Report 2017

स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक पहुंचने में क्यों होती है देरी?

अध्ययन में पाया गया कि लक्षणों की शुरुआत के बाद केवल 18.9 फीसदी उत्तरदाता ही समझ पाए कि ये लक्षण टीबी के हैं। इनमें से आधे लोगों ने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक पहुंचने में यह मानते हुए देरी की कि इसमें किसी इलाज की जरुरत नहीं है।

एक मेडिकल पेपर के अनुसार, “यह टीबी के संबंध में सामान्य जागरूकता की कमी को दर्शाता है। ” इस पेपर में टीबी के बारे में जानकारी, शिक्षा और संचार गतिविधियों को मजबूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

पल्मनेरी टुबर्क्यलोसिस के अध्ययन के विश्लेषण के अनुसार निकटतम स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक एक किलोमीटर से अधिक की दूरी और अगर किसी बच्चे के देखभालकर्ता की उम्र 35 वर्ष से अधिक है तो इस बात की संभावना ज्यादा है कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक पहुंचने में ज्यादा देरी होगी।

एक्सट्रापल्मोनरी टीबी (फेफड़ों के अलावा अन्य भागों को प्रभावित करने) के मामलों में, रोगियों के स्वास्थ्य प्रदाताओं तक पहुंचने में देरी का सह-संबंध स्वास्थ्य देखभाल सुविधा, चार सदस्यों से अधिक वाले घर का आकार और दिल्ली के बाहर पैदा हुए बच्चों के साथ है।

अध्ययन के मुताबिक कुछ परिवारों में इलाज तक जाने में विलंब का कारण वित्तीय स्थिति भी है। अध्ययन में पाया गया कि ज्यादातर प्राथमिक देखभालकर्ता माता-पिता थे। 46.3 फीसदी देखभालकर्ताओं ने अपने बच्चे के उपचार और प्रबंधन के लिए अपने काम से छुट्टी ली थी। इनमें से 81.9 फीसदी ने अपनी आमदनी में नुकसान की बात कही।

इस अध्ययन के लेखकों ने उन बाल चिकित्सा टीबी रोगियों, जो आरएनटीसीपी के तहत पंजीकृत नहीं हैं या रिट्रीटमेंट के मामले के , अध्ययन के परिणामों का सामान्यीकरण न करने की सलाह दी है।

इसके अलावा, इस अध्ययन में उन बच्चों को शामिल नहीं किया गया है, जिनकी टीबी के इलाज में देरी के कारण मृत्यु हुई है।

ड्रग-प्रतिरोधी टीबी के निदान की अवधि हो सकती है और लंबी

बाल चिकित्सा रोगियों के लिए टीबी के उपचार में देरी के अध्ययन में केवल नियमित या ड्रग सेंसेटिव को शामिल किया गया है, जो छह महीने के उपचार के साथ ठीक हो सकते हैं। दवा प्रतिरोधी टीबी का निदान करना मुश्किल होता है और इसे पूरी तरह ठीक होने में दो साल का समय लग सकता है।

एक मामले पर नजर डालकर इसे समझने की कोशिश करते हैं।11 वर्षीय वंशिका कुमार कुशवाह के बांह के नीचे एक फोड़ा था। वंशिका के माता-पिता ने ग्वालियर के एक डॉक्टर से इसे दिखाय। इंडियास्पेंड से बात करते हुए वंशिका के पिता बताते हैं, “ डॉक्टर ने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। डॉक्टर ने कुछ दवाइयां दीं ।फोड़ा ठीक हो गया। लेकिन एक हफ्ते बाद यह फिर निकल आया।”.

वंशिका गंभीर दवा प्रतिरोधी टीबी से ग्रसित है, यह पता लगने में करीब डेढ़ साल का वक्त और 3,00,000 रुपए खर्च हुए। इलाज के लिए वंशिका को भारत के दो शहरों में आठ डॉक्टरों के पास जाना पड़ा और न जाने कितने टेस्ट कराने पड़े।

वंशिका के 39 वर्षीय पिता कहते हैं, “इन 18 महीनों में बार-बार मन में एक ही ख्याल आता था। क्या मैं अपनी बेटी को बचा पाउंगा। डॉक्टरों ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे वह बेहतर हो सके। वह इतनी कमजोर हो गई थी कि उसे बाथरूम ले जाने के लिए भी गोद में उठाना पड़ता था। एक समय ऐसा था, जब उसे रोज 10 दवाइयां और एक इंजेक्शन लेनी पड़ती थी। इतनी छोटी बच्ची को बहुत कुछ देखना पड़ा। "

टीबी के विभिन्न प्रकार

Kind of TBDescriptionTreatment
Drug-sensitive or regular TBCaused by bacteria (Mycobacterium tuberculosis) that most often affect the lungsCurable, six-month course of four antimicrobial drugs (first-line drugs)
Multi-drug resistant TB (MDR-TB)Caused by Mycobacterium tuberculosis that do not respond to isoniazid and rifampicin, the two most powerful, first-line anti-TB drugsTreatable and curable by using second-line drugs. However, second-line treatment options are limited and require extensive chemotherapy (up to two years of treatment) with medicines that are expensive and toxic.
Extremely drug-resistant TB (XDR-TB)Resistant to at least four of the core anti-TB drugs--two most powerful anti-TB drugs, isoniazid and rifampicin, in addition to resistance to any of the fluoroquinolones (such as levofloxacin or moxifloxacin) and to at least one of the three injectable second-line drugs (amikacin, capreomycin or kanamycin)Can be cured, but with the current drugs available, the likelihood of success is much smaller than in patients with ordinary TB or even MDR-TB. Cure depends on the extent of the drug resistance, the severity of the disease and whether the patientŐs immune system is compromised.

Source: World Health Organization

बच्चों में अनियंत्रित लक्षण के कारण निदान में देरी

नैदानिक ​​परीक्षण हर बार टीबी बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए पर्याप्त संवेदनशील नहीं होते हैं। यह इस तथ्य को और जटिल करता है कि बाल चिकित्सा टीबी के मामले में बैक्टीरियल गणना वयस्कों की तुलना में काफी कम है, जिन्हें पॉसीबीसीलरी कहा जाता है, जैसा कि गंगा राम अस्पताल में एक बाल रोग विशेषज्ञ धीरेन गुप्ता कहते हैं। डॉ गुप्ता के पास हर महीने बाल चिकित्सा टीबी के लगभग 10 नए मामले सामने आते हैं। वह कहते हैं "बैक्टीरिया को दिखने में सप्ताह का समय लग सकता है।"

जीवाणुओं की पुष्टि के अभाव में, उन देशों में जहां टीबी प्राकृतिक नहीं है, बचपन टीबी का निदान एक संक्रामक रोगी के साथ निकट संपर्क के एक त्रयी, एक सकारात्मक ट्यूबरकुलिन त्वचा परीक्षण का परिणाम है और छाती विकिरण पर असामान्यताओं की उपस्थिति पर आधारित है, जैसा कि सौम्या स्वामीनाथन और बानू रेखा ने वर्ष 2010 के इस पेपर में लिखा है।

पेपर के अनुसार इन मानदंडों में उन देशों में सीमित मामले हैं, जहां टीबी स्थानीय है, जैसे कि भारत, क्योंकि राष्ट्रीय जांच कार्यक्रमों में मामले का पता लगाने और संपर्क-अनुरेखण की गतिविधियां नियमित नहीं होती हैं, और संचरण घर तक सीमित नहीं है।

स्वामीनाथन कहती हैं, “बच्चे और युवा लक्षणों का सटीक रूप से वर्णन नहीं कर सकते, जो बीमारी का निदान कठिन बना देता है।”

वह कहती हैं, "डॉक्टर अक्सर पहले एंटीबायोटिक दवाइयां देते हैं ताकि प्रभाव को देख सकें, जिससे निदान में भी देरी हो सकती है। बाल चिकित्सा टीबी के संबंध में अब भी जागरूकता की कमी है। "यदि डॉक्टर के पास, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, निदान की सुविधा नहीं है, तो वे रोगी को किसी पास के शहर में अस्पताल या डॉक्टर जाने की सलाह देते हैं। स्वामीनाथन कहती हैं कि इससे भी निदान में देरी होती है, क्योंकि परिवार के किसी सदस्य को बच्चे के साथ एक दूर स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक जाने के लिए समय निकालना और यात्रा करना पड़ता है।

बाल रोग विशेषज्ञ गुप्ता बताते हैं, “यदि रोगी बच्चा है तो कई परीक्षण में ज्यादा समय लग सकता है।”

सही जांच के बाद सुधार तेजी से संभव

सरकार के एक दस्तावेज के मुताबिक, टीबी के परीक्षण के लिए बच्चों से अच्छे नमूने पाने के लिए भारत में अलग-अलग जगहों पर सेंटर नहीं हैं।

समस्या का हल करने के लिए केंद्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम ने कार्ट्रिज आधारित ‘न्यूक्लिक एसिड ऐम्प्लफकैशन’ (सीबीएनएएटी) या ‘जीनेक्पेरट’ का उपयोग बढ़ाया है। अब तक टीबी का पता लगाने के सामान्यतः इस्तेमाल किए गए थूक परीक्षण से यह नया तरीका अधिक संवेदनशील है।

केंद्रीय टीबी डिवीजन के मुताबिक, इसे टीबी से पीड़ित होने वाले बच्चों के बीच उपलब्ध कराया गया है।

डॉ गुप्ता कहते हैं, "इससे टीबी के निदान की अवधि काफी कम हुई है।"

लेकिन स्वास्थ्य प्रणाली के निचले पायदान पर विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी अब भी है। स्वामिनाथन इस बात पर जोर देती हैं कि स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के सभी स्तरों पर पेट (गैस्ट्रिक लव) या बढ़े हुए ‘लिम्फ नोड’ से तरल पदार्थ निकालने और परीक्षण करने के लिए एक्स-रे के साथ जिनेक्पेरट, बेहतर प्रशिक्षण, उन्नत नैदानिक ​​उपकरण की आवश्यकता है।

भुवेका की मां ज्योति टीबी निदान प्रणाली से दुखी दिखती हैं- "डॉक्टरों को पूरी जानकारी नहीं है और सिस्टम त्रुटिपूर्ण है। "

ज्योति कहती हैं कि अगर डॉक्टरों ने पहले ही टीबी का संदेह किया होता या बेहतर और अधिक व्यापक परीक्षण किया होता तो भुवेका को इतना सब नहीं देखना पड़ता।

बाल चिकित्सा टीबी के निदान में स्वास्थ्य विलंब पर अध्ययन में, सुझाव दिया गया है कि प्रदाताओं के बेहतर प्रशिक्षण की जरूरत है औऱ बच्चों में टीबी की कोई बीमारी या सूजन होने की संभावना पर विचार करने के लिए भारत में लगातार देखभाल की जरूरत है। यही नहीं देखभाल की राह को छोटा और आसान बनाने की भी जरूरत का सुझाव दिया गया है।

स्वामिनाथन कहती हैं, यदि एक ऐसे घर में जहां कोई व्यस्क टीबी से पीड़ित है और उस घर में छोटे बच्चे हैं तो उसे टीबी की जांच और निवारक चिकित्सा पर रखना चाहिए। वह कहती है, " आमतौर पर बच्चों का किसी टीबी पीड़ित व्यस्क के संपर्क में रहने से उसे भी टीबी होने का खतरा रहता है।"

ज्योति बताती हैं, भुवेका के लिए नियमित टीबी के निदान के लिए तीन महीने का समय लगा। उसने जीने की सारी इच्छा खो दी थी। दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा था, इसलिए हमने ज्योतिष से अपनी बेटी के नाम की वर्तनी को बदलने और अनुष्ठान में बदलने की कोशिश की। हालांकि हम शिक्षित हैं, लेकिन हम अपनी बेटी को जीवन देने के लिए अंधविश्वासी बनने के लिए भी तैयार हो गए। " ज्योति आगे बताती हैं कि मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी टीबी के लिए सही दवाओं और एक मनोवैज्ञानिक की मदद से भूवेका अब बेहतर हो रही है- "उसका वजन बढ़ना शुरू हुआ है। बुखार चला गया है और उसने विश्वास करना शुरू कर दिया है कि वह बेहतर हो जाएगी।"

(शाह संपादक/लेखक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 03 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हआ है।

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