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माना जाता है कि अपक्षपाती प्राधिकारियों, जिन्हें 7,500 किलोमीटर से अधिक पर फैले समुद्र तट की सुरक्षा का प्रभार दिया गया है वह स्वतंत्र रुप से कार्य करते हैं। लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि इन निकायों पर सरकारी संस्थानों के अधिकारियों का वर्चस्व है।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च- नमाटी एनवायर्नमेंट जसटिस प्रोग्राम, (जो भारत में पर्यावरण कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन के अध्ययन करता है ) द्वारा किए गए एक अध्ययन अनुसार राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण ( सीज़ेडएमए CZMA ), नौ राज्य सीज़ेडएमए एवं चार केंद्र शासित प्रदेश सीज़ेडएमए में सरकारी विभागों और शैक्षणिक संस्थानों से सदस्य भरे हुए हैं।

इन 158 व्यक्तियों के लिए, सीज़ेडएमए की भूमिका अतिरिक्त ज़िम्मेदारी है एवं वे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के किनारे चलने वाली तटरेखा के लिए निर्णय लेते हैं।

यदि तटीय विनियमन के लिए सदस्यों की पूर्ण समर्पणता के साथ यह प्राधिकरण पूर्णकालिक निकाय होते तो यह स्वीकार्य हो सकता है लेकिन वास्तविकता में स्थिति ऐसी नहीं है।

सीज़ेडएमएओं की वर्तमान रचना का ब्रेक अप नीचे दिखाया गया है:

तटीय नियामक प्राधिकरण और उनके सदस्य

भारत ने स्वीकार किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इसके तटरेखा, बढ़ते समुद्री जल स्तर की चपेट में है।

भारत ने कहा है कि ( हाल ही में इंटेंडेट नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (आईएनडीसी) की घोषणा करते हुए ) एक अनुकूलन उपाय के रूप में यह तटीय नियमन क्षेत्र (सीआरजेड ) अधिसूचना के माध्यम से कमजोर तटीय क्षेत्रों में विकास गतिविधियों को सीमित कर देगा।

भारत की आईएनडीसी ने सुरक्षित और टिकाऊ परिवहन के लिए सागरमाला एवं भारत माला परियोजनाओं का भी प्रस्ताव दिया है।

सागरमाला परियोजना बंदरगाहों की वृद्धि करेगा जबकि भारतमाला परियोजना के तहत तटीय क्षेत्रों के साथ उन बंदरगाहों को जोड़ने के लिए 5,000 किलोमीटर सड़क नेटवर्क का निर्माण किया जाएगा।

ज़िम्मेदारियां बढ़ती हैं लेकिन क्षमता नहीं

सीआरजेड अधिसूचना पहली बार 1991 में जारी किया गया था एवं इसकी कई समीक्षा एवं संशोधन किए गए हैं एवं 2011 में ही एक नई अधिसूचना से बदला गया है।

नई अधिसूचना में सीज़ेडएमएओं की संरचना की फिर से चर्चा नहीं की गई है एवं राष्ट्रीय और राज्य सीज़ेडएमएओं के साथ जारी रखा गया है।

इसलिए 2011 के बाद सीज़ेडएमए के अंशकालिक निकाय होने साथ सीज़ेडएमए के सदस्य भी मुख्य रुप से पार्ट टाइम ही कार्य कर रहे हैं।

सीज़ेडएमए के लिए काम का बोझ कई गुना बढ़ गया है। कुल प्रस्तावों में से सीआरजेड नियमों के 20 साल में एससीज़ेडएमए द्वारा अनुमोदित परियोजनाओं की हिस्सेदारी 60 फीसदी है। तीन साल एवं तीन महीने में, सीआरजेड (2011) के नियमों के बाद कुल प्रस्तावों में से जांच की गई प्रस्तावों की संख्या की हिस्सेदारी 40 फीसदी है।

तटीय नियामकों के लिए और अधिक काम

तटीय उल्लंघन और संरक्षण को किया जाता है नज़रअंदाज़

हालांकि परियोजना प्रस्तावों की जांच करना सीज़ेडएमए के कामकाज का एक पहलू है लेकिन कई अन्य कार्य जैसे कि सीआरजेड नियमों के उल्लंघन की पहचान एवं महत्वपूर्ण क्षेत्रों का संरक्षण भी उनके ही हिस्से आती है।

सीपीआर- नमाटी एनवायर्नमेंट जसटिस प्रोग्राम अध्ययन में पाया गया कि सीज़ेडएमए की बैठ में उल्लंघन के संबंध में शायद ही कभी चर्चा होती है।

राज्य तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरणों में उल्लंघन की चर्चा

2010 में हुई बैठकों की तुलना में 2013 में हुई सभी सीज़ेडएमए की बैठकों ( केवल केरल एवं तमिलनाडु को छोड़ कर ) में उल्लंघन के संबंध में होने वाली चर्चा की संख्या में या तो गिरावट या कोई परिवर्तन नहीं पाया गया है।

यहां तक कि उल्लंघन की पहचान एवं सत्यापित होने के बावजूद भी शायद ही उन पर कार्रवाई की जाती है।

कार्रवाई की कमी को देखते हुए गोवा ने जिला समितियों का गठन करने का निर्णय लिया है जो उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई करेगा ।

सीज़ेडएमेओ के कामकाज का अन्य पहलू तटीय संरक्षण भी है जिस पर प्राधिकारी वर्ग के पार्ट टाइम प्रवृति के कारण असर पड़ा है और किसी बैठक में इस संबंध में शायद की चर्चा की जाती है।

सीआरजेड अधिसूचना 2011, सरकारी अधिसूचना के माध्यम से , गंभीर रूप से कमजोर तटीय क्षेत्रों ( CVCAs , सीवीसीए) के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।

सीवीसीए वे तटीय इलाके हैं जो पारिस्थितिक रूप से भी एवं कई लाख लोगों की आजीविका के लिए भीमहत्वपूर्ण हैं और इसी कारण से उन्हें संरक्षित और सामुदायिक भागीदारी के साथ प्रबंधित किया जाना चाहिए। हालांकि, आज तक कोई सीवीसीए अधिसूचित नहीं किया गया है।

सीआरजेड अधिसूचना 2011 में जिला स्तरीय समितियों की शुरुआत की गई थी जो कि सभी तटीय जिलों के लिए गठित की जानी थी। समितियों को सीआरजेड कार्यान्वयन में सीज़ेडएमए की सहायाता करनी थी।

केवल गोवा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में अब यह गठित की गई है।

गुजरात के सभी तटीय ज़िलों में इन प्राधिकारी वर्गों को गठित करने के आदेश दिए जा चुके हैं लेकिन आदेश पर कार्रवाई नहीं हुई है। महाराष्ट्र और केरल में समितियों की बैठक होती रही है लेकिन उनकी भूमिका उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई करने तक सीमित है। कर्नाटक और तमिलनाडु अपवाद हैं ; इन राज्यों में समितियां, परियोजना मूल्यांकन में शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन के लिए तटों का लचीला होना एवं मजबूत तटीय संस्थान होना महत्वपूर्ण हैं

जब भारत दिसंबर महीने में पेरिस में होने वाले 21 जलवायु सम्मेलन ( सीओपी 21 ) की तैयारियों में व्यस्त है, 14 सीज़ेडएमए में से पांच की शर्तें समाप्त हो गई है

सीज़ेडएमए को मजबूत बनाए बिना, जैसा कि आईएनडीसी में प्रदर्शित किया गया, तटीय क्षेत्रों के लिए अनुकूलन रणनीति लागू नहीं किया जा सकता है। जोरदार और सूचित अनुकूलन योजना के अभाव में, तटों के लिए अल्पीकरण करने के उपाय, केवल जलवायु परिवर्तन के लिए उन्हें और अधिक असुरक्षित बना सकते हैं ।

(डाटा टेबल मेनन , एम, कपूर , एम, वेंकटराम , पी. कोहली, के & के कौर, एस ( 2015 ) द्वारा किए गए अनुसंधान पर आधारित हैं। CZMAs और कोस्टल एनवायर्मेंट : टू डीकेड्स ऑफ रेगुलेटिंग लैंड यूज़ चेंज ऑन इंडियाज़ कोस्टलाइन। इंडिया : सीपीआर – नमाटी एनवायर्मेंटल जसटिस प्रोग्राम सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च - नमाटी एनवायर्मेंटल जसटिस प्रोग्राम )

( कपूर सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च - नमाटी एनवायर्मेंटल जसटिस प्रोग्राम के साथ रिसर्चर हैं )

यह लेख मूलत: 23 नवंबर 2015 को अंग्रेज़ी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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