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21 दिसंबर 2016 को हैदराबाद में एक एटीएम के बाहर कतार में अपनी बारी का इंतजार करते लोग। आर्थिक समीक्षा 2016-17 में कहा गया है कि 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1,000 का नोट बंद किए जाने के बाद पैदा हुए नकदी संकट का जीडीपी पर उल्लेखनीय प्रभाव होगा। सात प्रतिशत को आधार मानकर इसमें 0.25 से 0.50 प्रतिशत की गिरावट आएगी

पहली बार सरकार ने स्वीकार किया है कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1,000 रुपए के नोटों को अमान्य करने की घोषणा के बाद पैदा हुए नकदी संकट का जीडीपी पर उल्लेखनीय प्रभाव होगा। सात प्रतिशत को आधार मानकर इसमें 0.25 से 0.50 प्रतिशत की गिरावट आएगी यह जानकारी आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 में सामने आई है।

इस पूर्वानुमान से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 7.1 फीसदी की वृद्धि के अनुमान की पुष्टि होती है और यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 6.6 फीसदी के अनुमान के करीब है।

वर्ष 2017-18 में, जीडीपी विकास दर 6.75 फीसदी - 7.5 फीसदी पर स्थिर रहने की संभावना है। सर्वेक्षण के अनुसार, “इस पूर्वानुमान के तहत भी, भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा।”

सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया है कि “नौकरी में नुकसान, कृषि आय में गिरावट और सामाजिक विघटन, विशेष रूप से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कुछ नुकसान होगा, लेकिन यहां वृहद आर्थिक आंकड़ों की कमी के कारण व्यवस्थित विश्लेषण शामिल नहीं किया जा सकता है।”

बजट सत्र 2017 के पहले दिन संसद के दोनों सदनों में वित्त मंत्री ने सर्वेक्षण प्रस्तुत किया है।

सर्वेक्षण में विकास के लिए तीन प्रमुख जोखिम पर प्रकाश डाला गया है:

1)नोटबंदी का प्रभाव अगले वित्तीय वर्ष ( 2017-18 ) में कितनी दूर तक टिका रह सकता है, विशेष रुप से अगर नीति को लेकर अनिश्चितता बनी रहे।

2) भू-राजनीति की वजह से तेल की कीमतों में अधिक वृद्धि

3) भू-राजनीति या मुद्रा आंदोलन की वजह से प्रमुख देशों के बीच व्यापार में तनाव

सर्वेक्षण के अनुसार, “वैश्विक मांग में एक मजबूत बदलाव होने की संभावना है, जिससे भारत के निर्यात पर भी प्रभाव पड़ेगा। पिछले दो तिमाहियों में इस बात के कुछ संकेत मिल रहे हैं। एक मजबूत निर्यात वसूली का भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा।”

सर्वेक्षण में, बड़े और जटिल ऋण मामलों को हल करने के लिए, एक सार्वजनिक संपत्ति पुनर्वास एजेंसी के गठन करने की जरूरत पर बल दिया गया है। जैसा कि बिजनेस स्टैंडर्ड के 31 जनवरी, 2017 की रिपोर्ट में बताया गया है।

14 अध्यायों में विभाजित, सर्वेक्षण में कई मुद्दों पर चर्चा की गई है जैसे कि रोजगार सृजन, प्रवास, स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता संकेतकों और वस्तु एवं सेवा कर, जिसकी जुलाई 2017 में अस्तित्व में आने की उम्मीद है।

देश भर में प्रवास की प्रवृति पर प्रकाश डालते हुए सर्वेक्षण कहती है कि वर्ष 2011-2016 के लिए रेल यात्री डेटा का उपयोग कर पहली बार आंतरिक काम से संबंधित प्रवास का अनुमान किया गया है। इस अनुमान से हर साल 90 लाख लोग राज्यों के बीच अपना स्थान बदलते हैं।

सार्वभौमिक बुनियादी आय (यूबीआई) पर विचार के लिए सर्वेक्षण में एक पूरा अध्याय समर्पित है। “यह इस विचार पर आधारित है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक न्यूनतम आय की गारंटी हो। जिससे वह अपनी जिंदगी में मूलभूत सुविधाओं का उपयोग कर सकें और गरिमा के साथ जीवन के लिए आवश्यक सामग्री जुटा सके।”

सर्वेक्षण कहता है यूबीआई से 0.5 फीसदी तक गरीबी को कम किया जा सकता और इसकी लागत सकल घरेलू उत्पाद का 4 से 5 फीसदी तक आती है और इसमें शीर्ष 25 फीसदी आय वर्ग वाले परिवार भाग नहीं लेते हैं । दूसरी ओर मौजूदा मध्यम वर्ग सब्सिडी और खाद्य, पेट्रोलियम और उर्वरक सब्सिडी की लागत जीडीपी का 3 फीसदी है।”

मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “चर्चा के लिए यह सही समय है लेकिन सार्वभौमिक बुनियादी आय के कार्यान्वयन का नहीं।”

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यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 31 जनवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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