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एक नए अध्ययन के अनुसार सरकारी योजनाओं की मदद से अधिक माताओं को जीवित एवं सुरक्षित रखा जा पा रहा है लेकिन उच्च जनसंख्या - वृद्धि राज्यों में इसके अनपेक्षित परिणाम महिला प्रजनन क्षमता में वृद्धि हो सकती है।

अरिंदम नंदी, सेंटर फॉर डीज़ीज़ डाइनामिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी , अमरीका में फेलो, एवं रामानंद लक्ष्मीनारायण, उपाध्यक्ष, अनुसंधान और नीति , भारत पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन , और निदेशक और वरिष्ठ फेलो, सेंटर फॉर डीज़ीज़ डाइनामिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी , अमरीका , द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार 2006 से 2008 के बीच, जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) ( एक दशक पुरानी केंद्रीय सरकारी योजना जिसके तहत मातृ एवं नवजात मृत्यु दर को कम करने के उदेश्य से सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं या मान्यता प्राप्त निजी स्वास्थ्य केंद्रों में जन्म देने वाली माताओं को 1,400 रुपए का भुगतान किया जाता है ) के परिणामस्वरुप 10 राज्यों में बच्चे के जन्म या गर्भावस्था की संभावना में 7 फीसदी से 12 फीसदी की वृद्धि होना हो सकता है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि प्रति महिला 2.6 बच्चों के प्रजनन दर के साथ वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.5 मिलियन तक पहुंच सकती है। कई उत्तरी और मध्य राज्यों के विपरीत कर्नाटक को छोड़ कर अन्य दक्षिण राज्यों में 2.1 की प्रतिस्थापन के स्तर से नीचे प्रजनन क्षमता स्तर में गिरावट देखा गई है।

जेएसवाई की प्रजनन क्षमता प्रभाव इन सभी उच्च जनसंख्या एवं उच्च उर्वरता राज्यों में स्पष्ट है: बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ।

दशक 2011 की समाप्ती में, जब भारत की जनसंख्या में 181 मिलियन लोगों की वृद्धि हुई ( या ब्राजील की जनसंख्या का 80 फीसदी ) एवं दुनिया की पांचवीं सबसे अधिक आबादी वाला देश बना, आठ राज्यों के इस समूह ने 20.92 फीसदी जनसंख्या वृद्धि दर दर्ज की है जबकि देश के अन्य राज्यों में यह आंकड़े 14.99 फीसदी दर्ज की गई है। एंपावर्ड एक्शन ग्रूप ( ईएजी ) कहे जाने इन राज्यों पर आक्रामक परिवार नियोजन के उपायों के माध्यम से सरकार की जनसंख्या स्थिर करने का विशेष ध्यान है।

जनसंख्या वृद्धि दर, 1951 से 2011

सुरक्षित मातृत्व है महत्वपूर्ण – इतना ही महत्वपूर्ण है जनसंख्या को स्थिर करना

भारत में सुरक्षित मातृत्व को बढ़ावा देने की जरूरत है।

इस साल भारत, दुनिया भर में 303,000 मातृ मृत्यु के पांचवें हिस्से के करीब पहुंचेगा एवं दुनिया में होने वाली 2.7 मिलियन वार्षिक नवजात मौतों की चार देशों में से एक होगा।

सुरक्षित मातृत्व के खिलाफ जनसंख्या स्थिरीकरण करना विकल्प नहीं है। नंदी और लक्ष्मीनारायण उद्धृत किया जाए तो जेएसवाई के इस उर्वरता प्रभाव को फिर से डिज़ाइन करने की आवश्यकता है।

जेएसवाई योजना के तहत इस योजना के प्रारंभ से पहले खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों ( एलपीएस ) के रूप में कम संस्थागत प्रसव की दर के साथ 10 राज्यों की पहचान की है। इनमें आठ ईएजी राज्यों के साथ असम और जम्मू-कश्मीर भी शामिल है।

अन्य 19 राज्यों में उच्च प्रदर्शन करने वाले राज्यों ( एचपीएस ) के रूप में इकट्ठा किया गया है। जेएसवाई की संरचना में कम और उच्च प्रदर्शन करने वाले राज्यों के लिए मुख्य अंतर मौजूद हैं :

  • एलपीएस के ग्रामीण क्षेत्रों में नकद प्रोत्साहन एचपीएस राज्यों की तुलना में दोगुना है।

जननी सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाला मौद्रिक प्रोत्साहन

  • एचपीएस में केवल गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाएं या सामाजिक- आर्थिक रूप से वंचित समूहों (अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति ) से संबंधित महिलाएं हीं वितरण के लिए मान्य हैं। जबकि एलपीएस में इस योग्यता मानदंड को समाप्त कर दिया गया है।

  • एचपीएस में प्रोत्साहन जीवन भर में अधिकतम दो जीवित जन्मों के लिए सीमित है। ऐसा कोई प्रतिबंध एलपीएस में मौजूद नहीं है।

  • जेएसवाई के प्रबंध के तहत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ( आशा ), सहायक नर्स दाइयां, आंगनवाड़ी ( क्रेच ) की कार्यकर्ताएं एवं पारंपरिक जन्म परिचारक ( दाई ) प्रोत्साहन के हकदार हैं ( ग्रामीण क्षेत्रों में 600 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 400 रुपये ) जोकि प्रसव पूर्व देखभाल और संस्थागत डिलीवरी की सुविधा के लिए दो बराबर भागों में देय है।

अप्रत्याशित परिणाम से जेएसवाई सफलता में बाधा

2005-06 में जेएसवाई के तहत लाभार्थियों की संख्या 738,000 थी जो कि 2014-15 में बढ़कर 10.4 मिलियन हो गई है। पिछले साल के लाभार्थियों में से करीब 87 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों से थे।

2014-15 में करीब 1,777 करोड़ रुपये ( 268 मिलियन डॉलर ) के प्रोत्साहन वितरित किए गए हैं। लगभग 900,000 आशाओं ने प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन कमाया है।

ऐसे नतीजों को देख कर यह कहना कि जेएसवाई से धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ रही है, निराश करने वाली बात है। फिर भी नंदी और लक्ष्मीनारायण ने ऐसा कहा है।

वे एलपीएस में लाभार्थियों की प्रजनन दर की तुलना एचपीएस में गैर लाभार्थियों की एक नियंत्रण समूह के साथ करते हैं। उन्होंने एलपीएस में गरीब या अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति महिलाओं की प्रजनन दर की तुलना एचपीएस में महिलाओं के वैसे की समूह के साथ की है। जैसा कि हमने बताया उन्होंने पाया कि जेएसवाई के बाद गरीब राज्यों में बच्चे के जन्म या गर्भावस्था की संभावना 7 फीसदी से बढ़ कर 12 फीसदी हो गई है।

लक्ष्मीनारायण ने समझाया, “इससे पता चलता है कि एलपीएस में मौद्रिक प्रोत्साहन से जोड़ो को अधिक बच्चे या दूसरा बच्चा और जल्द होने का प्रोत्साहन मिल सकता है। ”

नंदी कहते हैं कि, “एक और व्यक्ति के लिए जीवन की गुणवत्ता उपलब्ध कराना शायद उनके (गरीब , ग्रामीण लोग ) विचार प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा।”

उसकी वजह यहां है: 2007-8 में औसत प्रति व्यक्ति मासिक खर्च के 649 रुपए वाले ग्रामीण परिवार को 1,400 रुपए अप्रत्याशित लाभ के रुप में मिला था। उसी समय में गरीब परिवारों में से 10 फीसदी में औसत प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 400 रुपए से कम थी।

हर कोई इसी सिद्धांत का अनुसरण नहीं करता है

अंबरीश डोंगरे, पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली में फेलो, कहते हैं कि, “गर्भावस्था के दौरान महिलाए काम से दूर रहती हैं जिससे परिवार की आय पर असर पड़ता है। जिला स्तरीय घरेलू सर्वेक्षण के तीसरे दौर के अनुसारएक स्वास्थ्य सुविधा पर जन्म देने में खर्च भी अधिक आएगा, औसतन सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में 2175 रुपए का खर्च आएगा। डोंगरे ने जेएसवाई के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। ”

डोंगरे आगे बताते हैं कि 1,400 रुपए में मुश्किल से प्रसव का खर्च पूरा हो पाता है। डोंगरे कहते हैं कि महिलाएं जो गरीबी रेखा के नीचे नहीं हैं वह प्रोत्साहन के कारण एक और गर्भधारण नहीं करेंगी।

यदि दंपत्ति की सोच का नतीजा प्रदनन में वृद्धि है ( जो जानते हैं कि जेएसवाई कब तक लागू रहेगा और इसलिए दूसरा बच्चा जल्द करते हैं ) तो वह भी अवांछनीय है।

लक्ष्मीनारायण कहते हैं, “लगातार दो बच्चों के जन्म के बीच कम अंतर से वजह से मृत्यु दर की संभावना बढ़ जाती है या इसका असर दूसरे बच्चे के स्वास्थ पर पड़ता है। इससे जेएसवाई से किसी भी नवजात को कम स्वास्थ्य लाभ होगा।”

यह भी हो सकता है कि आशा दंपत्ति को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करे एवं स्वयं के लाभ के लिए संस्थागत प्रसव का चुनाव करे।

बेहतर परिणामों के लिए कैसा हो जेएसवाई का डिज़ाइन

नंदी एवं लक्ष्मीनारायण ने जेएसवाई की डिज़ाइन के लिए कुछ महत्पवूर्ण सुझाव दिए हैं –

  • एक समय में किए जाने वाले भुगतान को बांटना – 2013 में आशाओं के लिए एक-मुश्त राशि के रुप में नगद भुगतान को दो बराबर भागों में विभाजित किया गया था , जो प्रसव पूर्व देखभाल और प्रसव के बाद देखभाल में मदद के पश्चात ही देय था। इस विभाजन से बेहतर परिणाम की उम्मीद थी।

नंदी का सुझाव है कि इसी तर्ज पर गर्भवती महिलाओं को मिलने वाले प्रोत्साहन को बांट देना चाहिए। मनोवैज्ञानिक तौर पर एक मुश्त मिलने वाली राशि, दो साल के समय में कई छोटे-छोटे भुगतान की तुलना में अधिक आकर्षक लगती है।

  • परिवार नियोजन नीतियों को मजबूत बनाना : नसबंदी पर आशाएं महिलाओं को परामर्श देती हैं जिसके लिए उन्हें रेफरल भुगतान भी मिलता है। लेकिन नसबंदी एक विवादास्पद विषय है और इसलिए आशाओं के एजेंडे में यह सबसे नीचे है।

गर्भ निरोधकों का वितरण और बच्चों के जन्म के बीच अंतर के संबंध में महिलाओं को परामर्श एवं यह अंतर रखने के तरीको की जानकारी देना भी आशाओं की ज़िम्मेदारी है लेकिन अध्ययन बताते हैं कि वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं।

पिछले चार सालों में, 2005 में जब जेएसवाई शुरु किया गया था, उत्तर प्रदेश, एक एलपीएस में आधुनिक गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल 20 फीसदी से बढ़ कर 28 फीसदी हो गया है। आबादी परिषद के अध्ययन के अनुसार इन आंकड़ों में आशाओं/जेएसवाई की केवल 2 फीसदी की भूमिका रही है।

एक अन्य जनसंख्या परिषद के अध्ययन से पता चलता है कि इसी समय के दौरान एक और एलपीएस, बिहार में जेएसवाई गर्भनिरोधक असर नहीं पड़ा है।

परिवार नियोजन के विषय में गंभीरता से सोचने का वक्त है।

नंदी कहते हैं कि, “लगातार दो बच्चों के जन्म के बीच नकद लाभ के लिए न्यूनतम प्रतीक्षा अवधि से अतिरिक्त सहायता मिलेगी।”

अमीर राज्यों की तरह ही गरीब राज्यों में लाभ सीमित करने से मिलेगी मदद

यदि जेएसवाई की प्रजनन क्षमता प्रभाव लंबी अवधि में बनी रहती है, एचपीएस की तरह ही एलपीएस में भी प्रति महिला दो जीवित बच्चों के जन्म पर मिलने वाले लाभ को सीमित करना उपयोगी साबित हो सकती है।

हालांकि, नंदी , केवल स्वास्थ्य के परिणामों में सुधार के बाद ही इस परिवर्तन का सुझाव देते हैं जैसे कि सार्वभौमिक संस्थागत प्रसव का प्राप्त होना या नवजात मृत्यु दर को कम करने के बाद, 29 प्रति 1000 जीवित जन्मों की वर्तमान दर से विकासशील देशों की औसत दर, 20 प्रति 1000 जीवित जन्मों तक।

बेला पटे उट्टेकर, निदेशक अनुसंधान , संचालन अनुसंधान और प्रशिक्षण , वडोदरा , और आठ राज्यों में जेएसवाई का आकलन करने के लिए एक प्रारंभिक अध्ययन के लेखक, के अनुसार इससे पता चलता है कि जनसंख्या वृद्धि की तुलना में सुरक्षित मातृत्व एक बड़ा लक्ष्य है।

उट्टेकर कहते हैं कि, “जेएसवाई का हमेशा के लिए योजना रहने का कोई इरादा नहीं था बल्कि तब तक जब तक कि महिलाएं का घरों में प्रसव होना बंद नहीं होता। यदि जेएसवाई से भारत की जनसंख्या में वृद्धि हुई है तो परिवार नियोजन पर अधिक ध्यान केंद्रित करना बेहतर है एवं लक्ष्य प्राप्त होने तक प्रोत्साहन को छोटे भागों में बांटना उचित है। ”

( बाहरी माउंट आबू, राजस्थान स्थित एक स्वतंत्र लेखक और संपादक है। )

यह लेख मूलत: 30 नवंबर 2015 को अंग्रेज़ी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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