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सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के तहत मानव अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध दिल्ली में पूर्वोत्तर मंच प्रदर्शन से प्रदर्शनकारी। पिछले चार वर्ष के दौरान 2015-16 में सबसे कम मामलों की संख्या समाधित हुई है।

2015-16 में, एक विवादास्पद कानून के तहत, जो अभियोजन पक्ष से सशस्त्र बलों के लिए उन्मुक्ति प्रदान करता है, पांच से अधिक मानव- अधिकारों की शिकायतों - जम्मू-कश्मीर में चार, त्रिपुरा में एक – पर फैसला नहीं सुनाया गया है, जो पिछले तीन वर्षों के औसत से 93 फीसदी कम है। यह जानकारी 21 जुलाई, 2016 को संसद में पेश नई सरकार के आंकड़ों में सामने आई है।

लोकसभा में बताया गया है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान 58 वर्ष पुराने सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (एएफएसपीए) के तहत औसत 69 मामलों पर सुनवाई हुई है – सरकारी भाषा में "निपटारा" शब्द। 2012-13 में, करीब 82 शिकायतें सुनी गई हैं। यह संख्या 2013-14 में गिरकर 75 और 2014-15 में 49 हुई है।

मानव अधिकारों के उल्लंघन: 2015-16 में मामलों की सुनवाई की संख्या कम

Source: Unstarred Question no.224, 21st July 2015, Lok Sabha

Note: Includes cases disposed under the ‘Defence Force Category’ as well as the “Para Military Force Category’ as specified in the answer in Lok Sabha

इस वर्ष निर्णय लिए गए पांच मामलों में से चार मामले जम्मू-कश्मीर से थे, जो पिछले तीन वर्षों के पैटर्न के आगामी हैं, जब जब 186 मामलों मे से 105 – कुल का 57 फीसदी – मामले इस राज्य से निपटाए गए थे।

सरकार के मामलों, पीड़ितों और एएफएसपीए उल्लंघन के संबंध में जानकारी प्रदान नहीं करती है, और यह कहा कि उत्तर-पूर्व या जम्मू-कश्मीर से अधिनियम को वापस लेने का इरादा नहीं है।

लोक सभा और राज्य सभा में हाल ही में हुई चर्चा, एएफएसपीए के उन्मूलन के आसपास घूमती रही, जिसे 1958 में लागू किया गया और 1990 में जम्मू-कश्मीर तक बढ़ाया गया। यह कानून अब जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्रों, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम- जहां यह पहले लगाया गया था - और नगालैंड लागू है।

जुलाई 21, 2016, को हुई बहस में सरकार पर कश्मीर में बड़े पैमाने पर हुई अशांति जिसमें 45 लोगों की जान गई, उसे को संबोधित करने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने पर जोर दिया गया।

दिल्ली और गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने पहले आयोजित किया है कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2016 में कहा कि शस्त्र बल जवाबदेही से बच नहीं सकते। साथ ही यह भी कहा कि, “पिछले 20 वर्षों के दौरान, मणिपुर में कथित 1500 फर्जी मुठभेड़ों की जांच होनी चाहिए।”

एमनेस्टी इंटरनेशनल, मानव - अधिकारों की एक संस्था, ने कहा है कि, यह कानून अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संयुक्त राष्ट्र के मानवीय कानूनों का उल्लंघन करती है। एमनेस्टी ने यह भी कहा है कि एएफएसपीए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 का उल्लंघन करती है जो नागरिकों के लिए प्रभावी उपाय करने का अधिकार देता है।

डीएनए, एक अखबार में उद्धृत एक और एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार, 1990 और 2011 के बीच, जम्मू एवं कश्मीर में संदिग्ध उग्रवादियों, नागरिकों और सुरक्षा बलों सहित 43,000 लोगों की मौत हुई है।

त्रिपुरा ने राज्य के सीमित क्षेत्र से अधिनियम को वापस ले लिया गया है।

पिछले दशक में किए गए प्रयास

नोट : इस लेख में सभी आंकड़े पूर्णांक किए गए हैं।

(वाघमारे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 जुलाई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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