विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ द्वारा पानी की आपूर्ति, स्वच्छता और स्वच्छता के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 में 40 फीसदी भारतीय खुले में शौच के लिए जाते थे। इस मामले में 232 देशों / क्षेत्रों में से भारत 210वें स्थान पर रहा है। इस संबंध में वैश्विक औसत 12 फीसदी था।

वर्ष 2015 में, दक्षिण एशिया के आठ देशों - मालदीव, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, भारत और अफगानिस्तान – में भारत का प्रदर्शन सबसे बदतर रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015 में, 44 फीसदी से ज्यादा भारतीय घरों में 'बुनियादी स्वच्छता' तक पहुंच नहीं थी और 232 देशों / क्षेत्रों में भारत 191 वें स्थान पर रहा ।

हम बता दें कि बुनियादी स्वच्छता अन्य घरों द्वारा साझा न किए जाने वाले 'सुधार सुविधाओं' के रुप में परिभाषित किया गया है। इस संबंध में वैश्विक औसत 68 फीसदी था।

वर्ष 2015 में, दक्षिण एशिया 'बुनियादी स्वच्छता' तक पहुंच प्रदान करने के संबंध में आठ देशों में से में, भारत को सातवां स्थान मिला है।

बुनियादी स्वच्छता और भारत

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Source: Progress on drinking water, sanitation and hygiene: 2017 update and SDG baselines

रिपोर्ट कहती है कि कम से कम 12 फीसदी भारतीयों ने वर्ष 2015 में दो या अधिक परिवारों के साथ 'बेहतर स्वच्छता सुविधाओं’ को साझा किया था। इस संबंध में वैश्विक औसत 8 फीसदी था। दक्षिण एशिया में, भारत में छठे स्थान पर था।

रिपोर्ट कहती है कि 4 फीसदी भारतीयों वर्ष 2015 में 'अयोग्य सुविधाएं' का उपयोग कर रहे थे। इस मामले में भारत दुनिया में 130वें स्थान पर रहा है। इस संबंध में वैश्विक औसत 12 फीसदी था। दक्षिण एशिया में श्रीलंका (0 फीसदी) और मालदीव (2 फीसदी) के बाद , भारत तीसरे स्थान पर था।12 जुलाई, 2017 को प्रकाशित रिपोर्ट में आबादी के प्रतिशत के आधार पर वैश्विक स्तर पर 232 देशों का मूल्यांकन किया गया है, जो साझा या स्वतंत्र स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग करते हैं।

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(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 7 अगस्त 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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