पूरब मेदिनीपुरः सूखी मछलियों का कारोबार करने वाले 36 वर्षीय प्रदीप दास मछलियां तैयार करने के लिए बड़ी शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं। उन्होंने एक विशाल हौदे में बोरी से नमक उड़ेला और फिर उसे अपने पैरों से अच्छे से मिलाने के लिए हौदे में उतर पड़े। यह उनका रोज का काम है। उन्हें इस बात तक की परवाह नहीं कि नमक की अत्यधिक मात्रा वाला यह घोल उनकी त्वचा को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रहा है। कुछ देर बाद वह हौदे से बाहर आते हैं और सामने सीमेंट के चबूतरे पर सूख रही मछलियों को कुदाल से इधर से उधर करने लगते हैं। वह चाहते हैं कि उनकी मछलियां जल्दी और अच्छी तरह सूख जाएं। मछलियां जितनी जल्दी सूखेंगी, उसे वह उतनी जल्दी व्यापारी को बेच सकेंगे।

अप्रैल की चिलचिलाती धूप में अपनी व्यस्त दिनचर्या के बीच प्रदीप दास गमछे से पसीने को पोछते हुए हौदे की मुंडेर पर बैठ गए। उन्होंने इंडियास्पेंड हिंदी से बात करते हुए कहा, “मेरा गांव यहां से छह किमी दूर है। हम रोज यहां जूनपुट में आकर सूखी मछली तैयार करते हैं और व्यापारियों को बेच कर अपनी आजीविका चलाते हैं।”

जूनपुट में प्रदीप दास जैसे सैकड़ों मत्स्यजीवी हैं जो आसपास के गांवों में रहते हैं लेकिन कारोबार करने के लिए उन्हें यहां रोज आना पड़ता है। यहां जूनपुट मछली के कारोबार का एक बड़ा केंद्र है। इनमें करीब एक तिहाई महिला मत्स्यजीवी हैं। जूनपुट पूरब मेदिनीपुर जिले के कोंतई - 1 ब्लॉक में आता है और यह इस इलाके का सबसे बड़ा और पुराना फिश लैंडिंग सेंटर (मछली भंडारण केंद्र) है। यहां कम से कम 6000 मत्स्यजीवी या मछुआरे आजीविका के लिए सीधे तौर इस कारोबार पर निर्भर हैं। ये छोटी कच्ची मछलियों की प्रोसेसिंग करते हैं और उन्हें सूखी मछली बनाकर बेचते हैं। इन्हें आम भाषा में सुटकी कहा जाता है। धूप की तीव्रता, मछली की किस्म व मौसम के हिसाब से मछली को सुखाने में एक से दो सप्ताह तक का समय लगता है। इन सूखी मछलियों की किस्म के हिसाब से उनके दाम भी अलग-अलग होते हैं।

उनकी कीमत 100-120 रुपये से लेकर 500 से 600 रुपये किलो तक हो सकती है। वैसे तो आमतौर पर इनकी कीमत 100 से 150 रुपये प्रति किलो के बीच ही होती है। जिंदा या सूखी मछली कारोबार के ऐसे परंपरागत केंद्र को खोटी कहा जाता है।

प्रदीप ने बताया, “जूनपुट इस इलाके में सबसे बड़ा खोटी है और यह सूखी मछली के कारोबार का एक बड़ा केंद्र है। यहां से मुख्य रूप से पूर्वोत्तर सहित, देश के अन्य हिस्सों व विदेशों में भी सूखी मछलियां भेजी जाती हैं।”

हालांकि अब प्रदीप दास जूनपुट के सैकड़ों दूसरे मत्स्यजीवियों की तरह अपने कारोबार के भविष्य को लेकर बेहद परेशान हैं। वे अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, “यहां मिसाइल लांचिंग प्लेटफॉर्म बन रहा है। हमें बताया गया है कि जब टेस्टिंग होगी तो तीन किमी दायरे में बसे लोगों व मवेशियों को यहां से हटना होगा, इससे हमारा कारोबार प्रभावित होगा।” वे कहते हैं, हमारी आजीविका इसी से चलती है। मेरे हिसाब से जूनपुट में ऐसे पांच से दस हजार लोग हैं जो मछली के कारोबार से अपनी आजीविका चला रहे हैं और आसपास के इलाके को मिला दें तो संख्या काफी ज्यादा हो जाएगी।

प्रदीप कहते हैं, “सरकार का कहना है कि देश की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है। हम भी मानते हैं कि देश को बचाना जरूरी है, लेकिन ऐसा निर्माण किसी खाली जगह पर भी तो किया जा सकता है। इसकी वजह से हजारों मत्स्य जीवियों के रोजगार पर असर पड़ेगा। सरकार को देश की रक्षा के साथ-साथ हमारी आजीविका की रक्षा के बारे में भी तो सोचना चाहिए।”

प्रदीप के मुताबिक, हमें अब तक यह नहीं पता है कि मिसाइल प्रक्षेपण से हमारी आजीविका को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार कैसे करेगी। इस बारे में न तो पश्चिम बंगाल सरकार ने कुछ बताया है और न ही केंद्र सरकार ने।

प्रदीप दास के पिता अजामिल दास (60) ने कहा, “हम मत्स्यजीवी हैं और हमारा आजीविका मछली के धंधे से ही चलती है। लेकिन मिसाइल लांच पैड की वजह से हम अपनी आजीविका को लेकर काफी चिंतित हैं।”

जूनपुट में महिला-पुरुष मत्स्यजीवियों की एक बड़ी संख्या है। उनमें से ज्यादातर ने इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत करते हुए गांव में मिसाइल प्रक्षेपण को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। शेख जाबेर हुसैन (38) व शेख रईउ्दीन (60) कहते हैं कि हमारी ड्राइ फिश यहां से असम, त्रिपुरा में जाती है। हमें कामकाज में कोई दिक्कत भी नहीं है, लेकिन हम मिसाइल लांच पैड से अपनी आजीविका पर पड़ने वाले असर को लेकर खासे चिंतित हैं।

गांव की 60 वर्षीया लक्ष्मी पांडा ने बताया, “हमारे यहां मिसाइल लांच पैड बन रहा है। पहले इधर हरिपुर गांव में परमाणु विद्युत बनाने की बात कही गई थी। हम गरीब लोग हैं, न तो हमारे पास जमीन है और न कोई और रोजगार का हुनर। पहले हमसे कहा गया था कि यहां से कहीं नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन अब कह रहे हैं कि टेस्टिंग के दौरान छह घंटे के लिए गांव से बाहर जाना होगा। लेकिन क्या इससे हमें और हमारे काम को नुकसान नहीं होगा।”

32 वर्षीया अपर्णा बर व 70 वर्षीया अंगूर जाना दोनों ही मत्स्यजीवी हैं और मिसाइल लांचिंग प्लेटफॉर्म की वजह से काफी परेशान हैं। वे कहती हैं कि अगर हमारे मछली के काम पर असर पड़ेगा, तो हमारे लिए आजीविका का संकट होगा, हम यहां से कहां जाएंगे।

मिसाइल लांच पेड 1 एवं 2 - वह स्थल जहां मिसाइल लांच पैड बनाने का प्रस्ताव है और कुछ काम भी हुए हैं। इमेज क्रेडिट : राहुल सिंह

प्रस्तावित स्थल इको सेंसिटिव जोन में

जिस जगह पर मिसाइल लांचिंग पैड बनाया जा रहा है, वह बंगाल की खाड़ी के तट की उस पट्टी का हिस्सा है जिसे वर्ष 2023 में पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट घोषित किया था। 16 मई 2023 को पश्चिम बंगाल सरकार के पर्यावरण विभाग की ओर से जारी एक अधिसूचना में कहा गया कि पूरब मेदिनीपुर के कोंतई -1 ब्लॉक के बिरामपुर से मजिलापुर के बगुरान जलपाई तक 7.3 किमी के स्ट्रेच इंटरटाइडल जोन (अंतज्वार्रीय क्षेत्र) है जो केकड़ों की कुछ विशिष्ट प्रजातियों व कई अन्य तटीय जीवों को आवास प्रदान करता है। इस अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि यह स्ट्रेच वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत अधिसूचित कई जीवों की भी घर है। इनमें मॉनिटर लिजार्ड (गोह), नेवला, गोल्डन जेकल (एक प्रकार का शियार) फॉरेस्ट कैट शामिल हैं। इसके अलावा जीवों के पोषण में टीलों व तटीय झाड़ियों का भी काफी महत्व है। इस स्ट्रेच को जैवविविधता विरासत स्थल, बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट घोषित किए जाने के बाद से, इस जगह के लिए भारत सरकार का जैव विविधता अधिनियम 2002 और पश्चिम बंगाल सरकार का जैव विविधता नियम 2005 प्रभावी हो जाता है। अधिसूचना के मुताबिक, इस स्ट्रेच के तहत आने वाले मौजा व जेएल का विवरण इस प्रकार है - बागुरान जलपाई जेएल - 563, सरतपुर जेएल - 567, मनकराईपुट जेएल - 569, श्यामरायभर जलपाई जेएल - 570, बिरामपुर जेएल - 583। अधिसूचना में इस स्थल के संरक्षण के लिए जिला व ब्लॉक पर बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट मैनेजमेंट कमेटी बनाने की बात कही गई है। बिरामपुर मौजा जेएल 583 में ही मिसाइल लांचिंग प्लेटफॉर्म का निर्माण प्रस्तावित है।

भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री अश्विनी चौबे ने दिसंबर 2023 में लोकसभा में दिए एक लिखित जवाब में देश के 44 जैव विविधता विरासत स्थल की सूची का उल्लेख किया और उन्हें एक अद्वितीय संरक्षण दृष्टिकोण बताया। इनमें पालतू प्रजातियों के साथ दुर्लभ संकटग्रस्त प्रजातियां, विकासवादी महत्व की प्रजातियां, जीवाश्म बिस्तर आदि शामिल हैं और इस सूची में बीरामपुर से बागुरान जलपाई की पट्टी भी शामिल है। इसका क्षेत्रफल 95.91 हेक्टेयर (236.99877) है।

मछुआरों की क्या चिंता है?

दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम के अध्यक्ष व पूरब मेदिनीपुर मत्स्यजीवी फोरम के महासचिव देवाशीष श्यामल इंडियास्पेंड हिंदी से कहते हैं, “जूनपुट में 6500 मत्स्यजीवी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा एक मुद्दा है, लेकिन इसके नाम पर आप हमारी (मछुआरों) आजीविका नहीं छीन सकते हैं। हम भी तो देश के नागरिक हैं। श्यामल बताते हैं कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से जानकारी के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार कानून 2005 के तहत कुछ सवाल पूछे हैं। फिलहाल उन्हें अभी तक अपने सवालों के जवाब नहीं मिले हैं और वे इनके इंतजार में हैं।

श्यामल ने कहा कि हम सुरक्षा और गोपनीयता से जुड़े सवाल नहीं पूछ रहे हैं, हम सिर्फ मछुआरों व आम लोगों के हितों से जुड़े सवाल पर जानकारी मांग रहे हैं। क्या आम आदमी व मछुआरों की आजीविका की सुरक्षा का सवाल देश का सवाल नहीं है। वे कहते हैं, हम देश की सुरक्षा के साथ अपने पेट की भी सुरक्षा चाहते हैं।

वे कहते हैं, इस इलाके में मछुआरों के पास कोई वैकल्पिक आजीविका नहीं है। यहां 42 फिश लैंडिंग सेंटर हैं, जिस पर करीब 50 हजार मत्स्यजीवी निर्भर हैं।

लक्ष्मी पांडा एक मत्स्यजीवी महिला हैं और मिसाइल लांचिंग सेंटर को लेकर चिंता जताते हुए कहती हैं कि अगर हमारा काम इससे प्रभावित होगी तो हमारी आजीविका मुश्किल में आ जाएगी। इमेज क्रेडिट : राहुल सिंह

देवाशीष श्यामल ने 11 मार्च 2024 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को इस मुद्दे पर एक पत्र लिखा। इस पत्र में मत्स्यजीवियों की चिंताओं का जिक्र किया गया था। पत्र में लिखा है, “डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) जूनपुट समुद्र तट पर बिरामपुर मौजा में जेएल - 583 पर लांचिंग प्लेटफॉर्म प्रस्तावित है। राष्ट्रीय सुरक्षा हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है। पर इस प्रोजेक्ट को लेकर स्थानीय समुदाय पूरी तरह अंधेरे में है। उन्हें तो इस बात की भी जानकारी नहीं है कि इसका उन पर क्या असर पड़ेगा। मिसाइल प्रक्षेपण का विस्फोट कहां होगा और उसका मलबा कहां गिरेगा व जूनपुट व उसके इर्द-गिर्द के कॉस्टल इको सेंसिटिव जोन पर क्या असर होगा।” पत्र में उन्होंने जिक्र किया है कि प्रस्तावित निर्माण स्थल बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट का हिस्सा है। देवाशीष ने अपने पत्र में जिस बिरामपुर मौजा और जेएल - 583 का जिक्र किया है, वह 7.3 किमी लंबे तटीय बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट में आता है।

देवाशीष ने बताया, “हम लोगों ने इस 7.3 किमी के तटीय इलाके को बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट बनवाने के लिए पांच साल तक लंबी लड़ाई लड़ी थी। तब कहीं जाकर पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले साल इसकी घोषणा की।” श्यामल कहते हैं कि पूरब मेदिनीपुर में सारे तटीय इलाके को डेवलपमेंट व टूरिज्म के लिए ले लिया गया है। बस यही एक स्ट्रेच (समुद्री पट्टी) बचा हुआ है। अगर यह भी विकास परियोजनाओं की भेंट चढ गया तो यहां के मछुआरे समुदाय व जैव विविधता को काफी नुकसान पंहुचेगा।

इस मुद्दे पर कोंतई दक्षिण विधानसभा के विधायक अरूप दास ने इंडियास्पेंड हिंदी से कहा, “अभी चुनाव चल रहे है। फिलहाल तो इस मामले में कुछ नहीं हो पाएगा। आप इलेक्शन के बाद हमसे बात कीजिएगा, हम जरूर कुछ न कुछ करेंगे" जब इंडियास्पेंड हिंदी ने उनसे पूछा कि क्या उनके निर्वाचन क्षेत्र में पड़ने वाले जूनपुट के मत्स्यजीवियों से उन्होंने इस मुद्दे पर कोई बात की है या उन्होंने इस मामले में कोई पहल की है, तो उन्होंने चुनाव का हवाला देकर कोई भी सीधी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

इंडियास्पेंड हिंदी ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया के लिए तृणमूल कांग्रेस नेता व पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री अखिल गिरि से भी संपर्क किया था। पर उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया। गिरि कोंतई दक्षिण क्षेत्र के ही रहने वाले हैं।

कोंतई के एसडीएम शौविक भट्टाचार्य ने इंडियास्पेंड से कहा, “इस मामले से संबंधित डेटा डीएम ऑफिस और डीआरडीओ के पास है। आप उन्हीं से संपर्क करें। मैं इस पर टिप्पणी के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं हूं।”

इंडियास्पेंड हिंदी ने कुछ सवाल पूरब मेदिनीपुर के डीएम के कार्यालय में उनके आधिकारिक ईमेल पर भी भेजे हैं। उनकी तरफ से जवाब आने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा।

12 साल पुरानी कवायद

देवाशीष श्यामल कहते हैं कि 2015 में हमें पता चला था कि डीआरडीओ और रक्षा मंत्रालय जूनपुट के लिए एक प्रोजेक्ट लेकर आये हैं और वे यहां एक मिसाइल लांचिंग पैड का निर्माण करने जा रहे हैं। उनके मुताबिक, लेकिन जमीन खोजने का काम 2012 से ही चल रहा था और इस काम के लिए 8.73 एकड़ जमीन दी गई है।

उन्होंने कहा, “जब देश की सुरक्षा की बात होती है तो कहा जाता है कि कोई और सवाल नहीं उठ सकता है। लेकिन हम देश की सुरक्षा से जुड़े सवाल नहीं उठा रहे हैं, हम मछुआरों की आजीविका से जुड़े सवाल उठा रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारी आजीविका का क्या होगा” वे आगे कहते हैं कि जूनपुट खोटी से हरिपुर गांव की दूरी महज तीन किमी है। यहां 2006 में एक न्यूक्लियर पॉवर प्लांट का प्रस्ताव लाया गया था, जिसे लोगों के विरोध के बाद स्थगित कर दिया गया था। वह सवाल करते हैं, तटीय इलाके में इतने सारे प्रोजेक्ट एक साथ आ रहे हैं, जिसमें टूरिज्म, बिग सी पोर्ट भी शामिल हैं। इनसे छोटे मछुआरों की आजीविका पर असर पड़ रहा है।

ब्रेक थ्रू साइंस सोसाइटी के पश्चिम बंगाल चेप्टर के सचिव डॉ तपन कुमार सी कहते हैं, “अगर मिसाइल लांचिग पैड शुरू हो गया तो उस इलाके में सैन्य गतिविधियां बढ़ जाएंगी और लोगों को रोजाना के कामों में दिक्कत आने लगेगी। इससे मछुआरों व किसानों की परेशानी बढ़ जाएगी।”

अधिकारियों ने नागरिक संगठनों व ग्रामीणों से बात की

लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन के बाद 25 अप्रैल 2024 को जूनपुट में डीआरडीओ के अधिकारियों ने स्थानीय मछुआरा संगठनों, नागरिक संगठनों एवं आम ग्रामीणों के साथ एक बैठक की और उनकी बातों को सुना। इस बैठक में लोगों ने मिसाइल लॉच से आम जनता और पर्यावरण पर पड़ने वाले असर, अपने पुनर्वास और प्रक्षेपण के दौरान होने वाली परेशानियों से जुड़े सवाल पूछे थे।

देवाशीष कहते हैं कि अधिकारियों के साथ बैठक में हमने इस इलाके में ऐसे निर्माण को नाइंसाफी बताया और सवाल उठाया कि जो लोग यहां रह रहे हैं, उन्हें तो हटा दिया जाएगा, लेकिन जो मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ रहे होंगे उनका क्या होगा? लोगों ने यह भी सवाल किया कि मुआवजे का पैकेज किस तरह तय किया गया है और वह कितना होगा? मछली प्रोसेसिंग के काम में आने वाली बाधा से होने वाले नुकसान और घनी आबादी में इस तरह के प्रोजेक्ट को लेकर भी सवाल किए गए।

परमाणु ऊर्जा केंद्र का प्रस्तावित स्थल जूनपुट के करीब

परमाणु ऊर्जा केंद्र निर्माण का प्रस्तावित स्थल हरिपुर भी बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट की पट्टी का हिस्सा है।

ब्रेक थ्रू साइंस सोसाइटी के पूरब मेदिनीपुर जिला उपाध्यक्ष व जूनपुट मिसाइल एवं हरिपुर परमाणु रिएक्टर जन प्रतिरोध मंच के संयोजक बिश्वजीत रॉय ने इंडियास्पेंड से कहा, “हम दोनों प्रस्तावित प्रोजेक्ट के विरोध में हैं। मिसाइल लांच सेंटर फांका (खाली) जगह में बनाना चाहिए। इस इलाके में मछुआरों व अन्य ग्रामीणों की घनी आबादी है, इससे उनकी आजीविका और जीवन पर असर पड़ेगा। वहीं परमाणु बिजली केंद्र भी किसी लिहाज से फायदेमंद नहीं है।”

रॉय कहते हैं कि परामणु रिएक्टर पर काम लोगों के विरोध की वजह से रुका हुआ है लेकिन स्थानीय समुदाय को लगता है कि अगर जूनपुट में मिसाइल लॉन्चिंग सेंटर शुरू हो गया तो परमाणु रिएक्टर भी शुरू हो जाएगा। वे कहते हैं, परमाणु बिजली महंगी है और हमारे देश में पर्याप्त यूरेनियम भी नहीं है। इसलिए देश को परमाणु बिजली के बजाय नवीनीकृत व वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर जाने की जरूरत है।

2017 में न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआइएल) के अधिकारी हवाले से यह खबर आयी थी कि प्रस्तावित हरिपुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट की योजना बंद नहीं हुई है। हम राज्य सरकार से इस पर सकारात्मक चर्चा के लिए तैयार हैं। एनपीसीआइएल के अधिकारी ने कहा था कि कुडनकुलम के मॉडल का अनुसरण करते हुए छह चरणों में हरिपुर में संयंत्र बनाने की योजना है। हालांकि इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा था कि राज्य में कहीं भी परमाणु बिजली संयंत्र को सहमति देने की योजना नहीं है और सरकार परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के खिलाफ है। हरिपुर में छह न्यूक्लियर पॉवर यूनिट स्थापित करने की योजना है। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार इसके विरोध में रही है और विपक्ष में रहते हुए इसके खिलाफ मुखर रही है। हालांकि ममता के पूर्ववर्ती बुद्धदेव भट्टाचार्य इसके पक्ष में थे। जिस समय यह प्रस्ताव आया था उस समय बुद्धदेव ही मुख्यमंत्री थे।

मत्स्यजीवी सूखी मछली तैयार करने की प्रक्रिया में अपना काम करते हुए। इमेज क्रेडिट : राहुल सिंह

सिविल सोसाइटी समूह नागरिक मंच के एक डाक्यूमेंट के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार न्यूक्लियर पॉवर प्लांट निर्माण के लिए 1013 एकड़ प्राइम एग्रीकल्चर लैंड का अधिग्रहण करना चाहती थी, जिसमें जूनपुट के फिश प्रोसेसिंग सेंटर की जमीन भी शामिल है।

2016 में लोकसभा में सांसद सौगत राय के एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था कि देश में नाभिकीय विद्युत के विस्तार में सामने आ रही मुख्य समस्याओं में संसाधनों (वित्त) की उपलब्धता, भूमि का अधिग्रहण एवं पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना से संबंधित मामले, जल की उपलब्धता एवं नाभिकीय संघटकों एवं उपस्करों की आपूर्ति की श्रृंखला है।

बिश्वजीत रॉय यह भी आरोप लगाते हैं कि केंद्र में शासन कर रही भाजपा और राज्य में शासन कर रही तृणमूल कांग्रेस के बीच इस मिसाइल लांचिंग सेंटर के प्रोजेक्ट को लेकर सहमति है और इसलिए वे कुछ नहीं बोल रहे हैं। कुछ स्थानीय मछुआरों ने इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत में कहा कि उनसे जुड़े सवाल चुनावी सवाल नहीं हैं और राजनीतिक दलों के स्थानीय प्रतिनिधि सिर्फ अपने हितों को साध रहे हैं।

मछुआरा नितिन गिरि 39 कहते हैं, “हम इस निर्माण का विरोध कर रहे हैं लेकिन हमारी कोई सुनने वाला नहीं है। इस साल 12 जनवरी को ओडिशा के चांदीपुर (वायु मार्ग से अनुमानित दूरी करीब 100 किमी) में एक मिसाइल टेस्ट हुआ था। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि हमें यहां तक सुनाई पड़ी थी। जब हमारे यहां यह सेंटर बन जाएगा तो पता नहीं क्या होगा।”