कानपुर: “घर चलाना मुश्‍किल हो गया है। महीने में 12-13 द‍िन ही काम म‍िलता है। एक समय था जब महीने भर टेनर‍ियां चलती थी। लेकिन प‍िछले एक-दो सालों में काफी कुछ बदल गया। बराबर काम ना म‍िलने की वजह से बच्‍चों की पढ़ाई रुक गई। सरकार की भी तरफ से कोई मदद नही म‍िल रही। मालिक से पूछो तो वे कहते हैं क‍ि जब टेनरी चलेगी ही नहीं तो हम मजदूरों को बराबर काम कैसे देंगे।” अब्दुल समद बात खत्‍म करते-करते एक दम से मायूस हो जाते हैं।

लखनऊ से लगभग 90 क‍िलोमीटर दूर कानपुर के जाजमऊ की एक टेनरी में मजदूरी करने वाले अब्‍दुल समद उन हजारों लोगों में से एक हैं ज‍िनकी रोजी-रोटी चमड़ा उद्योग से चलती है। पूरी दुनिया में मशहूर कानपुर का चमड़ा उद्योग इन दिनों उतार-चढ़ाव के बीच गुजर रहा है। प्रदूषण, कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट और एनजीटी की सख्ती के कारण वर्तमान समय में टेनरियां अपनी 50 फीसदी क्षमता पर ही काम रही हैं। टेनरियों में सुचारू रूप से काम ना होने के कारण उत्पादन में कमी आई है। लगातर काम ना होने के चलते ऑर्डर्स में कमी आई है और चमड़े के उत्पादों के निर्यात में गिरावट आई है। इसका प्रभाव उद्योग से जुड़े लोगों पर पड़ रहा है और उनकी आय भी प्रभावित हो रही है।

कानपुर में चमड़े का कारोबार धीरे-धीरे कम हो रहा है। जाजमऊ स्‍थ‍ित चमड़ा उद्योग के कई संगठनों ने दावा क‍िया क‍ि पहले यहां लगभग 400 टेनरियां थीं लेकिन अब 190 बची हैं। ऐसे में उत्पादन में भारी गिरावट आई है। चर्म न‍िर्यात पर‍िषद से म‍िले आंकड़ों अनुसार चमड़े के निर्यात में पिछली तिमाही की तुलना में इस तिमाही सैडलरी 27.76%, लेदर फुटवियर 12.26 % जबकि कुल लेदर उत्पादों पर 9.84% की गिरावट आई है।

“चमड़ा उद्योग की जो हालत वर्तमान समय में है इससे बदतर हालत कभी नहीं हुई। उद्योग का यह आखिरी दौर चल रहा है। हमें इससे अच्छा विकल्प मिल जाएगा तो हम यह काम छोड़कर दूसरा काम कर लेंगे उसमें भले ही कमाई कम हो। यदि हालात ऐसे ही रहे तो उद्योग का कानपुर से अस्तित्व मिट जाएगा। हमें सरकार की तरफ से किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिलती है ना ही किसी चीज में सब्सिडी दी जाती है। हम लोग काम करना चाहते हैं। लेकिन कई सरकारी विभागों द्वारा हमें काफी परेशान किया जाता है। एक से पीछा छूटता है तो दूसरा आ जाता है ऐसे में हमारे लिए काम करना काफी मुश्किल होता जा रहा है।” कानपुर के जाजमऊ में रहने वाले चमड़ा व्यवसायी मोहम्मद अर्शी बताते हैं।

अर्शी आगे बताते हैं क‍ि कानपुर में 400 टेनरी थीं। लेकिन अब 190 टेनरी ही बची हैं। चमड़ा उद्योग के लिए यह समय काफी दुखदाई है। बाजार में डिमांड नही है।हमारे उद्योग की स्थिति काफी खराब है। यदि हम आज की बात करें तो अपने काम के साथ साथ सरकार के विभिन्न विभागों से भी लड़ रहे हैं।

"एक तरफ सरकार कहती है कि नया उद्योग लगाइए हम उसको बढ़ावा देंगे। नए उद्योग लगने से लोगों को रोजगार मिलेगा। चर्म निर्यात परिषद कहता है की निर्यात को बढ़ावा दीजिए ऐसी स्थिति में हमसे कहा जाता है कि आपका उद्योग सिर्फ 15 दिन काम करेगा और 15 दिन बंद रहेगा। 15 दिन उद्योग बंद और 15 दिन उद्योग चालू वाला कानून लगभग ढाई वर्ष से हमारे ऊपर लागू है। एक माह में हम 15 दिन ही काम करते हैं। उसमें भी हम अपनी पूरी मशीने नहीं चला सकते। हम अपनी 25 प्रतिशत क्षमता पर कार्य करते हैं। ऐसे में अब हमारा ऐसे में अब हमारा उत्पादन घटकर 25% ही रह गया है।" अर्शी बताते हैं।

"ढाई साल पहले हम उद्योग की 100% क्षमता पर कार्य करते थे तब उत्पादन अच्छा होता था। पहले हम एक महीने में 10 लाख रुपए तक का माल बनाते थे,आज हम 1 लाख रुपए का माल बना पा रहे हैं।वर्तमान समय में हमारी यह स्थिति है कि यदि माल बन जाता है तो मार्केट में मांग की कमी के कारण उसे बेचना मुश्किल हो जाता है।कभी-कभी ऐसा भी होता है तैयार किया गया माल नहीं बिकता है दो से तीन महीने बाद बिकता है। हमारे यहां जो मजदूर काम करते थे उन्हें भी अब 15 दिन काम मिलता है बाकी दिन वो छुट्टी पर रहते हैं। मजदूरों को काम न मिलने के कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मेरी टेनरी में पहले 20 मजदूर काम करते थे लेकिन वर्तमान समय में मात्र 2 मजदूर ही काम कर रहे हैं। अर्शी आगे बताते हैं।

जाजमऊ टेनर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट नैयर जमाल कहते हैं क‍ि यह उद्योग मेरे पिता जी ने शुरू क‍िया था। उनसे ही यह उद्योग हमे म‍िला। लेकिन अब आगे की पीढ़ी तक यह शायद ही पहुंच पाये।पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने हमसे 25% उद्योग चलाने के लिए कहा है। उद्योग ना चलने के कुछ लोगों ने अपनी टेनरी बेच दी है। जिन लोगों ने टेनरी खरीदी है वे लोग प्‍लॉटिंग कर घर बना रहे हैं। ऐसे में हमारा उद्योग धीरे-धीरे समाप्त होने की कगार पर है। पहले हमें कच्चा माल उधर मिल जाता था। लेकिन उत्पादन में कमी के कारण अब हमे माल भी उधार मिलना बंद हो गया है। पहले दूर-दूर के मजदूर हम लोगों के यहां काम के लिए आते थे। लेकिन अब काम न होने के कारण हुए दूसरे शहरों में चले गए हैं।

नैयर आगे कहते हैं क‍ि पहले मेरी टेनरी में 20 मजदूर काम करते थे। लेकिन अब 5 मजदूर ही काम कर रहे हैं। पहले जो काम हम 15 दिन में पूरा होता, उसे अब महीना भर लग रहा, ऐसे में कभी-कभी हमारे ग्राहक भी नाराज हो जाते हैं। मजदूरों की कमी के कारण काम समय पर नहीं हो पाता है। "प्रधानमंत्री जी ने चमड़ा उद्योग को मेक इन इंडिया प्रोग्राम में रखा और मुख्यमंत्री ने ओडीओपी स्कीम में रखा। लेकिन किसी भी सरकारी विभाग की जवाबदेही तय नही की। सरकार को एक टीम बनाने चाहिए और उसमें टेनरी के छोटे बड़े संचालकों शामिल करके बातचीत करनी चाहिए कमियों को पता करना चाहिए और हमारी दिक्कतों को दूर करना चाहिए। हम वादा करते हैं कि पांच वर्षों के अंदर हम उद्योग को पहले की तरह कर देंगे और निर्यात को फिर से नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।” जमाल अपनी बात रखते हैं।

चर्म निर्यात परिषद के वाइस चेयरमैन आर के जालान ने बताया ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं आने दो तीन महीनों में स्थति सामान्य हो जायेगी।

“दूसरो कोई काम आता नहीं। इस उम्र में कोई काम पर भी नहीं रखना चाहता। टेनरी का काम अच्‍छे से कर लेता था। खाने-पाने की चीजों में कटौती करते घर चल रहा। पूरी उम्र टेनर‍ियों के बीच बीत गई। कभी अंदाजा नहीं था क‍ि ऐसे द‍िन भी देखते पड़ेंगे।” लगभग 70 साल के कल्‍लू साहू एक टेनरी में मजदूरी करते हैं।वे चिंत‍ित हैं क‍ि आगे का उनका जीवन कैसे बीतेगा।