लखीमपुर खीरी: आप अपना ही घर क्‍यों तोड़ रही हैं? ये सवाल सुनते ही इस बार रामलली ने और तेजी से हथौड़ा मारा और कुछ साबुत ईंटें जमीन पर ग‍िर गईं। "नदी में पानी तेजी से बढ़ रहा है। कटान शुरू हो चुका है। पूरा घर बह जायेगा तो कुछ भी हाथ नहीं आयेगा। इससे कम से कम हम कुछ ईंटे ही बचा लेंगे।" इतना कहकर रामलली दोबारा काम में लग गईं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 150 क‍िलोमीटर दूर उत्तर द‍िशा में बसा ज‍िला लखीमपुर खीरी के गांव नया पुरवा में रहने वालीं रामलली की कहानी उन सैंकड़ों लोगों में से एक है ज‍िन्‍हें घाघरा और शारदा नदी हर साल बेघर कर देती है। घर ही नहीं, खेतिहर जमीनें भी कटान की वजह से नदी की धारा के साथ बह जाती हैं। सपनें और उम्‍मीदें भी।

कमिश्नर रोशन जैकब के अनुसार इस साल लखीमपुर खीरी में बाढ़ की वजह से अब तक 19 राजस्व ग्राम के 3,545 परिवार में लगभग 19,212 जनसंख्या प्रभावित है। इसके अलावा 16 प्राथमिक, 2 उच्च प्राथमिक विद्यालय 3 सार्वजनिक शौचालय 4 आगनवाड़ी केंद्र 1 प्राथमिक स्वस्थ केंद्र, 1 ग्राम सचिवालय, 1 मॉडल शौचालय, 5 पानी की टंकी, 6 पंचायत घर और 1 होमोपैथिक हॉस्पिटल भी बाढ़ की वजह से प्रभावित हैं।

खीरी जिले की लखीमपुर तहसील के अलावा धौरहरा, पलिया, निघासन और गोला इलाके के हजारों गांव हर साल बाढ़ की विभीषिका हर साल झेलते हैं। बरसात के दिनों में खेतों में तैयार फसल में बाढ़ का पानी भरने से फसल नष्ट हो जाती है। वहीं बरसात में विकराल रूप धारण करने वाली नदियां कटान करते हुए हजारों हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन निगल जाती हैं।

सदर तहसील का गांव अहिराना। दो साल पहले तक इस गांव में करीब 200 परिवार रहते थे। आधे से ज्यादा गांव पिछले साल नदी में समा गये। जो बच गये वे इस साल बह गये। पड़ोस के गांव नरहर और गूम में भी नदी कटान जोरों पर है। यहां रहने वाले लोगों की जो जमीन है वह अहिराना गांव के नाम पर दर्ज है। वहीं लोगों के आधार, राशन कार्ड अहिराना गांव के निवासी होने का सबूत हैं। लेकिन अहिराना अब उनका घर नहीं रहा।

इस गांव को लेकर एसडीएम श्रद्धा सिंह ने बताया क‍ि इस साल यहां के 12 परिवार प्रभावित हुए हैं, जिसमें से 10 परिवारों को हमने बसाया है। वहीं 10 और परिवारों को बसाने की व्यवस्था की जा रही है।

गोला तहसील के गांव नया पुरवा में एक तरफ नदी कटान कर रही है तो वहीं दूसरी ओर बाढ़ का पानी गांव में भर गया है। हम जब इस गांव पहुंचे तो किसान सुशील घर के अंदर पलंग (चारपाई) पर बैठे खाना खा रहे थे। पूरे घर में बाढ़ का पानी भरा था। खाना घर की छत पर बना था। चारपाई के चारों ओर बाढ़ का पानी था। सुशील बताते हैं, "पक्का मकान नदी में समा चुका है। अब इस घर में परिवार के साथ रह रहा। जब बाढ़ आती है तो घर में पानी भर जाता है। बरसात में किसी तरह ऐसे ही जिन्दगी गुजरती है।"

"बाढ़ का पानी भरने के बाद बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है। गांव में बहुत तेज से कटान हो रहा है। कई लोगों के घर नदी में समा चुके हैं। खेती सब चली गई है। बैंक से कर्ज ले रखा है। अब कैसे रोजी रोटी चलेगी। सामान रिश्तेदार के घर रखा है। दो साल पहले तक नदी गांव से बहुत दूर थी। लेकिन अब गांव तक आ गई और कटान कर रही है।" सुशील आगे कहते हैं।

नया पुरवा गांव की ही सुमन ने बताया कि उनका पूरा घर नदी में समा चुका है। उनके दो बच्चे हैं। घर नदी में कटने के बाद अब रहने की भी व्यवस्था नहीं है। वे लोग एक जानने वाले के घर में रह रहा है।

अतिरिक्त योगदान मिथिलेश धर दूबे द्वारा।