स‍िल्‍चर/कछार (असम)। संसद में कानून पारित होने के चार साल से अधिक समय बाद, 11 मार्च 2024 को देश में सीएए यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू हो गया। इस कानून से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आकर यहीं बसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को नागरिकता मिलेगी। कानून बनने के बाद से सरकार का दावा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम उन हिंदू बंगालियों को राहत देगा जिन्हें असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी से बाहर रखा गया था।

भले ही सीएए के कानून के अनुसार बांग्‍लादेश से आये हिंदुओं को नागरिकता म‍िलेगी। लेक‍िन असम में पहले से ही रह रहे बांग्‍लादेशी ह‍िंदू अब भी परेशान हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि जिस तरह से यह प्रक्रिया व्यवहार में काम करती है उससे केवल कुछ बांग्‍लादेशी हिंदुओं को ही मदद मिलेगी। नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियम कहते हैं कि नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों को दो प्रकार के दस्तावेज देने होंगे। सबसे पहले अधिनियम की अनुसूची ए1 के तहत, उन्हें यह साबित करने वाले दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे कि वे बांग्लादेश, अफगानिस्तान या पाकिस्तान से आए हैं। दूसरा उन्हें ऐसे दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे जो दर्शाते हों कि वे अधिनियम की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में आ गए थे।

ऐसे में यहां पहले से रह रहे या 2014 के बाद के आये बांग्‍लादेशी हिंदुओं को दस्तावेज जमा करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

असम के कछार में रहने वालीं श‍िप्रा का डर भी कुछ ऐसा ही है। वे कहती हैं क‍ि मेरे दिल में डर है कि अगर पुलिस आ गई और मुझे ले गई तो क्या होगा। हम रह तो रहे हैं लेकिन हमारे पास आधार नहीं है...और इसकी वजह से हमें सरकारी सुव‍िधाओं का लाभ नहीं म‍िल पाता। बुरा लगता है। एक डर का भाव अंदर रहता है। अब जब हम इस देश में रहते हैं तो हम इसकी नागरिकता चाहते हैं। अब, हम कह रहे हैं कि यदि कोई अवसर है तो हम सीएए के माध्यम से नागरिकता के लिए आवेदन करना चाहते हैं ताकि हम भारत के नागरिक बन सकें... हम इस देश में रहना चाहते हैं। मैं यहीं पैदा हुई हूं। बावजूद इसके मेरा नाम एनआरसी से बाहर क्यों रखा गया।

नागरिकता के संदर्भ में वे कहती हैं क‍ि हमें बच्चों के लिए भी ऐसा ही करना होगा। मेरी बेटी ने अपनी उंगलियों के निशान दिए लेकिन उसका आधार फ्रीज कर दिया गया है।' उसका एक बच्चा है और इस वजह से वह बैंक खाता नहीं खोल सकती। साथ ही उसके जन्म के बाद सरकार ने उसे जो पैसे दिए थे, वह भी आधार के कारण फंस गए हैं। उसके लिए कोई पोलियो टीकाकरण नहीं है...नर्स का कहना है कि उसे आधार कार्ड की आवश्यकता है...अगर मां के पास आधार कार्ड नहीं है तो बच्चे के पास कैसे होगा? यही मेरी बेटी की चिंता है...आधार कार्ड की वजह से इतनी मुश्किलें...एनआरसी में नाम नहीं, आधार कार्ड नहीं। यही कारण है कि हमें कष्ट हो रहा है।' हमें नागरिकता प्राप्‍त करने लिए मदद चाह‍िए।

मध‍िरना पॉल कहती हैं क‍ि उनके प‍िता 30 साल से असम में रह रहे हैं। लेकिन सीएए के अनुसार नागरिकता के ल‍िए आवेदन को उनके पास पर्याप्‍त दस्‍तावेज नहीं हैं। फोटो- उमर अल्ताफ

ये सवाल पूछे जाने पर क‍ि आपको कैसा लगता है कि आप विदेशी बन गई हैं?

श‍िप्रा थोड़ा रुकती हैं और फ‍िर कहती हैं क‍ि यह डर है कि सरकार ने मुझे बांग्लादेशी बना दिया है। अगर कोई आकर मुझे बांग्लादेशी कह दे तो क्या होगा...अगर आपका नाम एनआरसी में नहीं है तो आप बांग्लादेशी हैं। अगर हमें इस देश में रहना है तो नागरिकता के लिए आवेदन करना ही होगा।

अरुण लाल सरकार भी चिंत‍ित हैं। वे कहते हैं क‍ि मैं यहीं का निवासी हूं और मेरी शादी यहीं हुई है। मेरी पत्नी बहुत समय पहले भारत आई थी जब वह सात महीने की बच्ची थी। हमने यहीं शादी कर ली। दस्तावेजों में उनके पिता के नाम में कुछ गड़बड़ी होने की वजह से उनके अलावा उनके परिवार के सभी लोग एनआरसी की सूची में शामिल हो गए। इसलिए वह आवेदन नहीं कर सकती है और उसके पास इसके लिए कोई दस्तावेज नहीं है।

सरकार ने जो नियम बनाए हैं...मैं उनके लिए आवेदन करना चाहता हूं। लेकिन मैं दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा सकता।

अंजना रानी सरकार, अरुण लाल सरकार की वाइफ है। उन्हें एनआरसी से बाहर कर दिया गया है. अब विदेशी घोषित होने के बाद उनके पास सीएए नियमों में उल्लिखित दस्तावेज नहीं हैं

वे कहती हैं क‍ि जब मैं सात महीने की थी तब मुझे भारत लाया गया था। मेरी शादी यहीं हुई थी. सरकार जो दस्तावेज़ मांग रही है, वे मुझे कैसे मिलेंगे? मैं कैसे आवेदन कर पाऊंगी? अंजना परेशान होते हुए कहती हैं।

जैसा क‍ि न‍ियम में प्रावधान है क‍ि वर्ष 2014 से पहले आये लोगों को ही नागर‍िकता म‍िलेगी। मानिक दास (ये इनका बदला हुआ नाम है ताक‍ि उन्‍हें क‍िसी तरह की परेशानी ना हो), वे कहते हैं क‍ि मैं 2014 के बाद बांग्लादेश से भारत आया। मैं बांग्लादेश का नागरिक बनना चाहता हूं। मुझे बांग्लादेश से भागना पड़ा क्योंकि वहां मुसलमानों ने मुझे परेशान किया। इस वजह से मैं न तो शांति से रह सका और न ही काम कर सका, इसलिए मैं भारत भाग आया। अब मुझे भारतीय नागरिकता चाहिए। जो भी लोग 2014 से पहले भारत आए हैं उन्हें नागरिकता मिल रही है, लेकिन मेरे जैसे लोग जो 2014 के बाद आए हैं वे इसके पात्र नहीं हैं। हम चाहते हैं कि भारत सरकार मेरे जैसे लोगों के बारे में सोचें. दस्तावेज़ के रूप में मेरे पास बांग्लादेश का एक पहचान पत्र है। मेरा भारत सरकार से अनुरोध है कि हमें नागरिकता प्रदान की जाए।”

सबसे पहले, अधिनियम की अनुसूची ए1 के तहत, उन्हें यह साबित करने वाले दस्तावेज़ उपलब्ध कराने होंगे कि वे बांग्लादेश, अफगानिस्तान या पाकिस्तान से आए हैं। दूसरा, उन्हें ऐसे दस्तावेज़ उपलब्ध कराने होंगे जो दर्शाते हों कि वे अधिनियम की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में आ गए थे।

हालाँकि, विशेषज्ञों का कहना है कि बिना दस्तावेज़ वाले शरणार्थियों को इन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।

“असम में, एनआरसी से बाहर किए गए लोगों के पास नियमों की अनुसूची 1ए में निर्दिष्ट दस्तावेज नहीं होंगे,” गुवाहाटी स्थित वकील दीपेश अग्रवाल ने कहा, जिन्होंने विवादित नागरिकता वाले लोगों के कई मामलों का प्रतिनिधित्व किया था।

असम की बंगाली बहुल बराक घाटी के मानवाधिकार और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर विरोधी कार्यकर्ता कमल चक्रवर्ती ने दस्तावेजीकरण पर अग्रवाल की बात को दोहराया। उन्होंने कहा, "जो लोग 1971 के बाद आए, उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है।"

चक्रवर्ती ने एक विरोधाभास की ओर भी इशारा किया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम लोगों को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है कि वे अवैध रूप से भारत में आए हैं। उन्होंने कहा क‍ि अब अगर लोग घोषणा करते हैं कि वे बांग्लादेशी हैं, तो क्या उन्हें आपराधिक मामलों का सामना नहीं करना पड़ेगा?"

बारपेटा स्थित वकील और सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस, मानवाधिकार आंदोलन के सदस्य अभिजीत चौधरी ने इंडियास्पेंड को बताया कि असम में अपने नागरिकता अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों के पास नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत मांगे गए दस्तावेज़ नहीं हैं। उन्होंने कहा, "अब तक मैंने एनआरसी प्रक्रिया और निचले असम के जिलों के एफटी मामलों के दौरान कम से कम 15,000 से 20,000 दस्तावेजों की जांच की है।" "लेकिन, 20,000 लोगों में से केवल दो के पास अनुसूची IA में उल्लिखित ऐसे दस्तावेज थे।"

विडंबना यह है कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी दावा किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम अप्रभावी होगा। उन्होंने कहा, ''सीएए लागू करने के नियमों को अधिसूचित हुए चार दिन हो गए हैं।'' “असम में पोर्टल पर एक भी आवेदन नहीं है। सीएए असम में असफलता साबित होगा।”